पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने कश्मीर पर दावे और पाकिस्तान के विभाजन का दशकों पुराना.. साई वार (मनोवैज्ञानिक जंग).. छेड़ दी है। एक तरफ जहां उन्होंने.. स्वीकार किया है कि पाकिस्तान ने कश्मीर में लडऩे के लिए भूमिगत उग्रवादी समूहों को प्रशिक्षित किया और संकेत दिया कि उन्हें कारगिल घुसपैठ पर कोई अफसोस नहीं है।... दूसरी तरफ मुशर्रफ ने आगाह किया है कि देश में एक बार फिर तख्तापलट के आसार हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में इस समय काफी सियासी उठापटक मची है। इसलिए देश की कमान सेना को सौंप देनी चाहिए। उन्होंने कहा...पश्चिम हर बात का दोष पाकिस्तान पर मढ़ता है। भारतीय प्रधानमंत्री से कोई नहीं पूछता कि आपने अपने देश में परमाणु हथियार क्यों बनाए ? क्यों आप कश्मीर में बेकसूर लोगों को मार रहे हैं ? सन् 1971 में बंगलादेश के लिए भारत के समर्थन के कारण पाकिस्तान का विभाजन हुआ और कोई व्यथित नहीं हुआ।... अमरीका और जर्मनी ने बयान दे दिया कि उनका कोई सरोकार नहीं है। भारत में उग्रवाद फैलाने के बारे में पाकिस्तान के किसी सर्वोच्च नेता की यह पहली स्वीकारोक्ति है। मुशर्रफ का यह बयान लंदन से सक्रिय राजनीति में लौटने की उनकी घोषणा के बाद आया है।
मुशर्रफ ने कहा कि चूंकि नवाज शरीफ कश्मीर मुद्दे के प्रति असंवेदनशील थे और दुनिया ने भी इस विवाद से आंखें फेर ली थीं इसलिये यह कदम उठाना पड़ा। मुशर्रफ का मानना है कि पश्चिम कश्मीर मुद्दे के समाधान की लगातार उपेक्षा कर रहा है, जबकि यह पाकिस्तान में प्रमुख मुद्दा है। हमें कश्मीर मुद्दे के हल के लिए पश्चिम से, खासकर अमरीका और जर्मनी जैसे महत्वपूर्ण देशों से उम्मीद थी।
मुशर्रफ ने लंदन में अपनी नयी पार्टी.. ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग.. की शुरूआत की और सन् 2013 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद का चुनाव लडऩे का ऐलान भी किया। मुशर्रफ की दिली ख्वाहिश है कि वह राजनीति की खींचतान में शामिल हों और एक बार फिर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनने की कवायद में शरीक हो जाएं। नौ साल तक पाकिस्तान की राजनीति का केंद्र बिंदु रहे जनरल मुशर्रफ राजनीति के मैदान में दांव खेलने की इच्छा का इजहार कई बार कर चुके हैं। लेकिन फिलहाल उनकी दाल गलती नहीं दिख रही। उन्होंने कहा है कि यह बात पक्की है कि वह एक बार फिर पाकिस्तान जायेंगे और सियासत में भाग लेंगे।
अब सवाल उठता है कि राष्ट्रपति पद का या प्रधानमंत्री पद में से किसका चुनाव लड़ा जाए। पाकिस्तान में निर्वाचित सरकार का तख्तापलट कर पिछले दरवाजे से सत्ता के गलियारों में दाखिल हुए इस सैन्य जरनल को शुरू में अवाम ने काफी पसंद किया। लेकिन जल्द ही उनकी लोकप्रियता में गिरावट आने लगी और लोग उनसे उकता गए। सुप्रीम कोर्ट से उलझना उनके लिए काफी नुकसानदायक रहा। जनरल मुशर्रफ ने कहा कि उनकी वापसी में सुरक्षा का मसला जरूर है और उनकी पत्नी और बच्चों को यह चिंता ज्यादा सताती है। उन्होंने कहा कि इन्हीं चिंताओं के मद्देनजर मैं वापसी की तारीख तय नहीं कर रहा हूं।
पूर्व राष्ट्रपति ने दृढ़ स्वर में कहा कि इसके बाद भी बहुत जल्द वह अपनी आगे की रणनीति का खुलासा करेंगे। मगर जनरल मुशर्रफ स्वदेश वापस आते हैं तो उन्हें कानूनी पेचीदगियों का सामना करना पड़ सकता है और हो सकता हे जेल की हवा खानी पड़े।
Tuesday, October 5, 2010
मुशर्रफ ने शुरू की बक-बक
Posted by pandeyhariram at 4:38 AM
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