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Saturday, October 16, 2010

जय हो, हम हैं कामयाब!!


महासप्तमी के दिन कामनवेल्थ गेम्स में 101 मेडल लेकर भारत ने खेल के विजय का अभियान शुरू किया। तमाम आशंकाओं और आलोचनाओं के बीच भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि वह बड़े से बड़े आयोजन की मेजबानी करने में सक्षम हैं। आयोजन से पहले जो एक-दो देश छोटी-मोटी बातों के लिए नाक-भौंह सिकोड़ रहे थे, वे भी हमें ओलम्पिक की मेजबानी का दावेदार मानने लगे हैं। छोटी-मोटी शिकायतों को छोड़ दिया जाए तो कमोबेश तमाम मेहमान हमारे लिए प्रशंसा के भाव और संतुष्टि के साथ लौटे हैं। मैदान के बाहर हमने अतिथि देवो भव: की अपनी परंपरा निभाई, तो मैदान के भीतर मेहमानों को जबरदस्त चुनौती देकर हमारे खिलाडिय़ों ने अपने धर्म का पालन किया। एक सौ एक पदक जीतकर हमारे खिलाडिय़ों ने कामनवेल्थ गेम्स का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। शूटर, पहलवान और वेटलिफ्टर कामनवेल्थ गेम्स में हमें पदक दिलाते रहे हैं, लेकिन इस बार अन्य स्पर्धाओं में भी हमारे खिलाडिय़ों ने अपनी मौजूदगी का सशक्त अहसास कराया। इसमें खास बात यह थी कि पदक विजेताओं में अधिकांश खिलाड़ी गांवों से जुड़े थे और पदक जीतने की लालसा में उन्होंने प्रशिक्षण और सुविधाओं के अभाव को आड़े नहीं आने दिया। पर इस सबके बीच यह बात तो साफ हो ही गई कि जितनी ऊर्जा और संसाधन हमने आयोजन पर खर्च की है, अगर उसका पांच-दस प्रतिशत भी खिलाडिय़ों के प्रशिक्षण पर लगाया जाय तो वे एशियाई और ओलम्पिक खेलों में भी इसी तरह पदकों की झड़ी लगा सकते हैं।

अधूरी तैयारियों को जुगाड़ के सहारे पूरा करके सफल आयोजन का सबसे बड़ा सबक यही है कि अगर हमने सब कुछ योजना के मुताबिक किया होता तो हमें किसी फेनेल या हूपर के तीर न झेलने पड़ते। गलतियों से हमने कुछ सीखा इसके लिए सबसे अच्छा रास्ता तो यही होगा कि लंदन ओलम्पिक के लिए खिलाडिय़ों को तैयार करने में अभी से जुट जाना होगा।
बुद्धिजीवियों का एक वर्ग कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन को लेकर शुरू से ही बहुत क्रिटिकल रहा। इसमें पूर्व खेल मंत्री और कांग्रेस एम पी मणि शंकर अय्यर भी शामिल हैं जिन्होंने खेल की तुलना सर्कस शो से की थी। खेल शुरू होने से पहले मीडिया आयोजन की खामियां खोज रहा था। मगर अब खेल की सफलता ने वह कर दिखाया है, जिसकी किसी को उम्मीद न थी। आम लोगों ने जी भरकर प्रतिस्पर्धाओं का लुत्फ उठाया।

यह भरोसा मिला कि आने वाले सालों में भारत बड़े इंटरनेशनल इवेंट्स ऑर्गनाइज कर सकता है। इस बार रेकॉर्ड कायम करने वाली भारत की मेडल संख्या ने उनमें यकीन भरने का काम किया है कि वे स्पोर्ट्स में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा जैसे ताकतवर और स्पोर्टिंग नेशंस को भी बराबर की टक्कर दे सकते हैं। देश की गरीब जनता की जरूरतों को भुलाकर एक सर्कस शो पर करोड़ों रुपये फूंकने की दलील देने वाले गेम्स के आलोचक आगे की बजाय पीछे देखते हुए ऐसा कर रहे हैं। वे यह नहीं समझ रहे कि भारत के एक बड़ी ताकत बनने का दावा सिर्फ आंकड़ों में ही नहीं कैद रहना चाहिए। इसे तमाम क्षेत्रों में दिखाई देना चाहिए।
कामनवेल्थ गेम्स की कामयाबी ने यही किया है। उसने भारत के भविष्य की तस्वीर पेश की है - आत्मविश्वास से भरा, बुनियादी सुविधाओं से लैस, सफलता का जश्न मनाता हुआ भारत। खेलों का औपचारिक अंत हो गया, मगर हमारे पास इस सफल आयोजन का कीमती अनुभव रह गया है। यह अनुभव भविष्य में और बड़े आयोजनों की सफलता का सबब बनेगा। हमारे पास हमारे खिलाडिय़ों की हैरतअंगेज कामयाबियों के नजारे रह गए हैं, जो नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनेंगे। हमने खेलों में 70 हजार करोड़ रुपये झोंके, मगर कमाए कितने, इसका हिसाब शायद कोई न लगा पाए। करोड़ों लोगों के दिलोदिमाग में पैठे अनुभव का हिसाब कोई लगाए भी तो कैसे ?

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