जेल में बंद चीनी असंतुष्ट राजनीतिज्ञ लियु जियोबो को इस वर्ष का नोबेल प्राइज दिया जाना संभवत: प्रतिगामी प्रमाणित हो सकता है। जियो बो...चार्टर 08... शीर्षक के एक लोकतांत्रिक घोषणापत्र के सह लेखक हैं। उस घोषणा पत्र पर चीन के 300 से अधिक विद्वानों, साहित्यकारों ओर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने हस्ताक्षर किये हैं और उस घोषणापत्र को 10 दिसम्बर 2008 को आनलाइन प्रकाशित किया गया था। इसी दिन राष्ट्रसंघ के मानवाधिकार घोषणा की 60 वीं जयंती थी। यह घोषणापत्र सोवियत संघ के जमाने के चेकोस्लोवाकिया के चार्टर 77 की तरह है। इसमें चीनी संविधान द्वारा प्रदत्त गारंटी को लागू करने और मानवाधिकार तथा लोकतांत्रिक संस्थानों को स्वतंत्रता देने की सिफारिश की गयी है। जियाबो के इस घोषणापत्र में चेतावनी दी गयी है कि शासन में परिवर्तन के अभाव में राष्ट्रीय संकट पैदा हो सकता है। हालात में सुधार के लिये उसमें संगठन बनाने की आजादी, स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना और एक दलीय शासन प्रणाली की समाप्ति सहित 17 सुझाव दिये गये हैं। अब जियाबो को नोबेल प्राइज दिये जाने के बाद चीन को शर्म आने की जगह वहां विरोध और गुस्सा बढ़ता हुआ देखा गया।
गत 8 अक्टूबर को चीन के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय पत्र..ग्लोबल टाइम्स.. ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि... जियाबो की सजा के विरोध का आधार कानूनी नहीं है। बल्कि पश्चिमी देश चीन पर अपने मूल्यों को थोपना चाहते हैं। लेकिन वे कामयाब नहीं हो सकेंगे। उल्टे नोबेल कमेटी ने अपने को ही नीचा कर लिया। कमेटी ने यह निर्णय बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं किया। लेकिन वह ओर वे सियासी ताकतें, जिनका वह प्रतिनिधित्व करती है, सब मिलकर चीन के भविष्य के विकास को अवरुद्ध नहीं कर सकतीं। चीन की कामयाबी की कहानी नोबेल प्राइज से कहीं ज्यादा प्रगल्भ है।...
पत्र के उसी अंक में रेनमिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शी इन होंग ने अपने एक लेख में कहा है कि....नोबेल कमिटी कहने के लिये तो स्वायत्त है और स्वतंत्र है लेकिन उसके इस कार्य ने चीन विरोधी ताकतों को मदद पहुंचायी है। इससे उसकी साख को आघात पहुंचा है और लोगों में उसके प्रति गुस्सा भड़का है।...
वैसे कथित रूप से चीन में सियासी सुधार की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। हालांकि इसके कोई लक्षण कहीं नहीं दिख रहे हैं पर वह ऐसा कहता चल रहा है। लेकिन चीन में राजनीतिक सुधार का अर्थ एक दलीय शासन प्रणाली को खत्म करना नहीं है, जैसा मानवाधिकार संगठन कहते या चाहते हैं। चीन में राजनीतिक सुधार का अर्थ है एक दलीय शासन प्रणाली की कमियों की पड़ताल और उन्हें समाप्त किया जाना। चीन में बोलने की आजादी का अर्थ सरकार की रचनात्मक समीक्षा है। अब जनता को भय हो गया है कहीं चीन का विकास न रुक जाय। चीनी असंतुष्ट नेता को इनाम दिये जाने का समय चीनी नेताओं का अनुसार गलत है, क्योंकि अभी चीन में राजनीतिक और सामाजिक सुधार के दौर शुरू हुये हैं और वहां की जनता तथा सरकार के गुस्से से कहीं वह अवरुद्ध न हो जाये। अगर ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा हानि उन लोगों को होगी, जो चीन में राजनीतिक सुधार के पक्षधर हैं।
Tuesday, October 12, 2010
चीनी असंतुष्ट राजनीतिज्ञ को नोबेल : कहीं नतीजे प्रतिगामी न हो जाएं
Posted by pandeyhariram at 3:06 AM
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