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Thursday, October 14, 2010

पाकिस्तान की आग को भारत में फैलने से रोकें


पाकिस्तान में हाल में भीषण बाढ़ आयी थी। उससे भारी नुकसान हुआ था। इसके पहले भी वहां भूकंप आया था और जान- ओ- माल का जो नुकसान हुआ था वह इस बाढ़ से कहीं ज्यादा था।
अब पूछा जा सकता है कि आज इतने दिनों के बाद खासकर महाष्टमी के दिन पाकिस्तान की इस विपदा के विश्लेषण की क्या गरज आ पड़ी ?
प्रश्न समीचीन है लेकिन गरज इसलिये है कि इस बाढ़ ने पाकिस्तान को सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक रूप से एक ऐसे तिराहे पर खड़ा कर दिया है कि वहां भारी विपर्यय की आशंका बढ़ती जा रही है और वह मुल्क विखंडन के कगार पर पहुंच रहा है। अगर ऐसा होता है तो वहां के संकट का सबसे खराब असर हमारे देश पर पड़ेगा।
अगर पुराणों को मानें तो इसी दिन मर्यादा के प्रतीक राम और पुराणों के सबसे बड़े आतंकी रावण में घनघोर युद्ध चल रहा था। आज हमारा देश भी उसी तरह के एक युद्ध में खड़ा है। हमें आतंकियों के मुकाबिल होना है। इसलिये जरूरी है कि व्यूह रचना के पहले उनके बार में जान लें।
भूकम्प से बहुत बड़े नुकसान के बावजूद वह संकट एक खास भौगोलिक क्षेत्र में ही सीमित था। दूसरी बात कि उस समय वहां मुशर्रफ का शासन था और आरंभिक भ्रष्टाचार को किसी तरह से काबू कर लिया गया और राहत कार्य में सेना तथा सिविल अफसरों को झोंक दिया गया था। दूसरे कि उस भूकंप से सेना के कार्यरत अफसरों के परिजनों पर कोई ज्यादा आंच नहीं आयी थी।

जहां तक बाढ़ का सवाल है तो वह विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में फैला हुआ था। कहा जा सकता है कि वह पाकिस्तान के इस पार से उस पार तक फैला हुआ था। बाढ़ ने पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया। खासकर पंजाब और पख्तूनकावा में तो बाढ़ से भारी नुकसान हुआ। यह वही इलाका है जहां से पाकिस्तान की सेना और पख्तून तालिबानों की भर्ती होती है। अब बाढ़ ने सेना और तालिबानों को अलग- अलग ढंग से प्रभावित किया है। सेना के जवानों के परिवार इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। खेती चौपट हो गयी है। अब परिजन चाहते हैं कि वे छुट्टी लेकर आयें तथा खेती तथा घर की सुध लें लेकिन देश की स्थिति को देखते हुये उन्हें छुट्टी मिल नहीं पाती। इससे सेना के जवानों और उनके परिजनों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। अब इस असंतोष के कारण सेना विद्रोहियों से मुकाबले से पैर पीछे खींच रही है साथ ही निचले तबके के फौजियों में तालिबानों के प्रति सहानुभूति बढ़ती जा रही है और सेना के तालिबानीकरण की राह प्रशस्त हो रही है।
बाढ़ की स्थिति पर ओसामा बिन लादेन के संदेश में इस तरह के उकसावे का जिक्र भी था। बाढ़ का जेहादियों पर दूसरे तरह का असर पड़ा है। उन्होंने मानवीय सहायता कार्य को बढ़ा दिया है और यह साबित करना चाह रहे हैं कि जेहादी ही सही हैं सरकार उनके मुकाबले क्रूर तथा असंवेदनशील है। सरकार जहां कृषि से हुई हानि का अंदाजा लगाने में नाकामयाब रही वहीं सेना के नैतिक बल को दृढ़ करने भी सफल नहीं हो सकी।
पाक सरकार और उसके अंतरराष्ट्रीय समर्थक समझते हैं कि रुपया ही सब कुछ है तथा वे रुपया दे भी रहे हैं लेकिन इससे दूरदराज के गांवों में रह रहे सैनिकों के परिवारों की समस्या का समाधान नहीं हो सका है। इसका परिणाम होगा कि पाकिस्तान में अस्थायित्व बढ़ेगा और साथ ही आतंकवाद को भी जनसमर्थन मिलेगा। ऐसे में भारत पर असर पडऩा लाजिमी है। भारत सरकार को चाहिए कि वह इस तथ्य पर गौर करे और अपने देश पर इसके असर को रोकने के लिये कमर कस ले।

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