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Friday, October 1, 2010

लोकतंत्र के अनुरूप है अयोध्या फैसला


अयोध्या पर फैसला आ गया। काफी इंतजार के बाद यह निर्णय आया। इसमें जितने कानूनी पेंच थे, उससे कहीं ज्यादा सियासी और भावनात्मक मसला था यह। फैसला बड़ा ही विवेकपूर्ण और सबके पसंद का कहा जा सकता है। इसके बावजूद अगर किसी के मन में कोई दुर्भावना आती है, तो यह हमारी भारतीय संस्कृति और मिश्रित समाज व्यवस्था के प्रतिकूल है। यह फैसला भारतीय लोकतंत्र के पूरी तरह अनुरूप है।
वो कहते हैं तुम्हारा है
जरा तुम एक नजर डालो,
वो कहते हैं, बढ़ो, मांगो
जरूरी है, न तुम टालो
मगर अपनी जरूरत बिल्कुल अलग है इससे,
ठहरो, हमें सांचों में न ढालो।

इस फैसले को लेकर पूरा देश सहमा-सहमा सा था। अब जो निर्णय हुआ है उसे राजनीतिज्ञ... सांप-सीढ़ी... का खेल नहीं बनायें। हमें देखना है कि हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत अदालत का सम्मान हो। हमारे देश में धर्म निरपेक्षता और लोकतंत्र की बात केवल संविधान के अंतर्गत ही नहीं है बल्कि हम इसे अपने जीवन में भी चरितार्थ करते हैं। हमें दुनिया को दिखाना है कि हम सबसे पहले इस देश के नागरिक हैं। हम हिंदू या मुसलमान होने की शर्तों से अलग सबसे पहले भारतवासी हैं। यहां अब यह चर्चा भी बेहद जरूरी है कि एक आम भारतवासी के जीवन में रामजन्मभूमि या बाबरी मस्जिद का उतना महत्व नहीं, जितना कई और चीजों का।
हमें फुरसत कहां है रोटी की गोलाई के चक्कर से
न जाने किसका मंदिर है, न जाने किसका मस्जिद है
न जाने कौन उलझाता है, सीधे सच्चे धागों को।

पिछले चार सौ वर्षों में देश में जितने भी सार्थक और रचनात्मक प्रयास हुए हैं, वे सब मेल-मिलाप और सद्भावना की नजीर हैं। अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पड़ी इलेक्ट्रानिक मीडिया की नजर इतनी कमजोर क्यों है कि उसे यही नहीं दिखता कि केवल अयोध्या या फैजाबाद का जुड़वा शहर ही नहीं बल्कि सारे भारतीय समाज की आपसी सद्भावना में पर्याप्त नमक और चीनी है।
हम भारतीयों को बार-बार शपथ लेकर यह बताने की जरूरत हरगिज नहीं कि हम एक हैं। वैसे कथित रूप में तरक्की पसन्द पश्चिमी चश्मा पहने लोगों को हमारी यह सद्भावना रास नहीं आती। वे किसी भी कीमत पर गोस्वामी तुलसीदास और मीर अनीस के समन्वित स्पंदन को महसूस नहीं कर सकते।
अगर हिंदू आंधी हैं और मुसलमान तूफान हैं
तो आओ, दोनों यार मिलकर कुछ नया कर लें
तो आओ, एक नजर डालें कई अहम सवालों पर
कई कोने अंधेरे हैं, मशालों को दीया कर लें।

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