40 के दशक के प्रतिष्ठित दार्शनिक बट्रेंड रसल ने सत्ता की व्याख्या करते हुये कहा था कि वे स्वयं तानाशाही और कम्युनिज्म के विरोधी हैं पर गांवों के विकास के लिये कम्युनिज्म और सोशलिज्म का तरीका ही सरल है।
लेकिन गांधी जी ने उसी अवधि में ग्राम विकास के.. न्यूक्लियर डिजाइन.. का समर्थन किया है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई के दौरान भारत का विचार फला-फूला और विकसित हुआ। यह विचार ऐसे आजाद भारत का विचार था, जो अमीरों से छीनकर आर्थिक विकास का हामी नहीं था बल्कि कुटीर उद्योग और ग्राम विकास के आधार पर आर्थिक प्रगति के लिए एक सुरक्षित, सहिष्णु और समतावादी घर होता। लेकिन आजादी के बाद हालात और विचार दोनों बदल गये। वास्तविकता नहीं, भूगोल को प्राथमिकता दी जाने लगी। यहां भूगोल से मंतव्य है आकार का। यानी विकास में आकार का महत्व बढऩे लगा और अंग्रेजों द्वारा तैयार किये गये चार मेट्रो शहर ही विकास के मानक बनने लगे। देश का बाकी हिस्सा पिछडऩे लगा। हमारे नेता और अर्थशास्त्री यह नहीं देख पाये कि हमारी आबादी का तीन चौथाई हिस्सा गांवों और झोपडिय़ों में रहता है। वह वहां रहने के लिये इसलिये अभिशप्त हैं कि उनमें मेट्रो बसाने की कुव्वत नहीं है। भारत तब तक कमजोर रहेगा, जब तक उसकी ताकत चार परंपरागत महानगरों तक सीमित रहेगी। जब गरीबों और साधनहीनों ने अवास्तविक उम्मीदों के साथ इन शहरों की तरफ बढऩा शुरू किया तो वे शहर से ज्यादा जख्म बनकर रह गए।
यह तर्कसंगत ही है कि चारों मेट्रो शहरों को उनका आधुनिक स्वरूप देने में अंग्रेजों का महत्वपूर्ण योगदान था, जबकि भारत की ऐतिहासिक राजधानियां चाहे वह लखनऊ हो या मैसूर, पटना हो या जयपुर, ब्रिटिश राज के दौरान पतन के दौर से गुजर रही थीं।
आधुनिक भारत का पुनर्निर्माण आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के अपने पुराने केंद्रों के इर्द-गिर्द हो रहा है। यही वह भारत है जो हमारे सामाजिक और आर्थिक इतिहास की शीशे की छतों को भेदता हुआ ऊपर बढ़ा जा रहा है। इसने मार्क्सवाद की धारणा को उलटकर रख दिया है। अमीरों से छीनकर गरीबों में बांटने की बजाय उसने अपनी ही हांडी से मक्खन निकालने की कला सिखाई है।
भारत का नया नक्शा अब दर्जनों ऐसे नये इलाकों से पटा पड़ा है, जिनके कारण श्रमशक्ति का पलायन गैरजरूरी हो जाता है। हमारा आने वाला कल बिहार, यूपी या राजस्थान के छोटे कस्बों में है। एक दशक से भी कम समय में बिहार का गया या यूपी का मऊ, कोलकाता या नोएडा को चुनौती देने लगेगा। इन क्षेत्रों में एक ऐसा आर्थिक साम्राज्य तैयार हो रहा है जिसके इर्द-गिर्द भारतीय अपने नए भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। धीरे धीरे हम आर्थिक महाशक्ति होने की दिशा में बढ़ रहे हैं। यहां कुछ क्षण के लिये अपने निकटतम पड़ोसी चीन की समृद्धि से तुलना करें तो पता चलेगा कि मार्क्सवाद या समाजवाद के बिना भी विकास का ढांचा मजबूत और कारगर हो सकता है। हमारे व्यक्तिवादी विकास की खिल्ली उड़ाने वाले हमारे जज्बात को नहीं समझते। यह कोई मूल्य आधारित फैसला नहीं है, यह केवल मौजूदा हकीकत का आकलन है।
Thursday, October 21, 2010
भारत का विचार और ग्राम विकास
Posted by pandeyhariram at 12:26 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment