19 अगस्त 2011
आज जन्माष्टïमी है। इस अवसर पर कृष्ण के जन्म पर चर्चा जरूरी है क्योंकि आज हम फिर एक विचित्र संक्रमण काल के चौराहे पर खड़े हैं। वर्तमान युग आधुनिक और उत्तर आधुनिक काल से आगे बढ़ कर एक वैश्विक काल में प्रवेश कर रहा है तथा यह एक संक्रमण काल है। तेज रफ्तार से बदलते वक्त में अक्सर परम्पराओं और मान्यताओं का क्षय होने लगता है और संस्कृतियों का टकराव आरंभ हो जाता है। ऐसे बदलाव में हमेशा कृष्ण सदृश किसी नायक की जरूरत पड़ती है। महाभारत की कथा का यदि हम समाज वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो पाएंगे कि वह उत्तर भारत में गंगा- यमुना के तटवर्ती इलाकों में भारी राजनीतिक और सामाजिक उथल - पुथल का दस्तावेज है और साहित्य में थोड़े अतिरंजित रूप में वह काल आज बचा हुआ है। पर यह तय है कि वह इस महाद्वीप में एक गहरे संक्रमण का काल था। कृष्ण इस संक्रमण काल के एक मात्र नायक हैं। महाभारत के सारे पात्र एक मिटती सभ्यता के चरित्र हैं। अतएव वे चाहे जितने तेजोदीप्त हों घटनाक्रम उन्हें लगातार निस्तेज बनाता जाता है। मानव सभ्यता कबीलों और गणों से होती हुई परिवार और कुलों के राज्य के स्वरूप पर पहुंच कर नये सिरे से खुद को गठित करने के मोड़ पर खड़ी है। इतना पारिवारिक कलह और बदलते मूल्यों से उपजता सामाजिक संघर्ष एवं उससे उद्भूत मानवीय पीड़ा सभ्यता के किसी संक्रमण काल में ही हो सकती है। कृष्ण के पास इन सबकी एक व्याख्या है और संक्रमण युग के उपयुक्त कर्म का एक दर्शन भी है। पाण्डवों से उनके सरोकार किसी मोह से प्रेरित न होकर अपने युगधर्म से प्रेरित थे। इस संदर्भ में यह स्पष्टï होता है कि गीता का संदेश न अध्यात्मिक पाठ है और ना कोरा कर्म का ज्ञान है बल्कि विषाद ग्रस्त अर्जुन के माध्यम से एक नये समाज और नयी व्यवस्था के निर्माण का संदेश है। मानवता के समूचे संकट काल को कृष्ण ने अपने भीतर इस तरह से धारण कर रखा था कि गांधारी ने युद्ध खत्म होने के बाद कृष्ण को शाप देते हुए कहा था कि 'तुम चाहते तो युद्ध रुक सकता था।Ó अब पुत्रों के खोने से दुखी गांधारी यह भूल जाती है कि युद्ध रोकने के अंतिम कोशिश के रूप में कृष्ण ही दूत बनकर कौरव की सभा में गये थे। गांधारी कृष्ण को कारण मानने लगी थी जबकि मनुष्य कारण बन ही नहीं सकता। कारण तो इतिहास था जो करवट ले रहा था। कृष्ण तो महापरिवर्तन के द्रष्टïा हैं इसलिये परिवर्तन की अगुवाई करने वाले हर नेता को चाहे वह कोई हो उन्हें कहीं ना कहीं कृष्ण की जरूरत पड़ती है। कृष्ण की पूरी कहानी में इतने मानवीय तत्व और इतने अनुभव हैं कि इस कथा को समझे जाने की जरूरत है। आज हमारा समाज जिस मोड़ पर खड़ा है वहां भी परिवर्तन की आहट सुनायी पड़ रही है और ऐसे में कृष्ण ज्यादा प्रासंगिक हो जाते हैं। आज फिर नयी व्यवस्था की मांग हो रही है और व्यवस्था वहीं कायम रहने की जिद पर अड़ी है। यहां यह समझना जरूरी है कि समय सदा स्थिति सापेक्ष होता है और आज स्थितियों के सारे संदर्भ बदल गये हैं। आज समस्त मानवीय सम्बंध, परिवार का स्वरूप, सत्ता और सम्पत्ति का ढांचा, स्त्री पुरुष सम्बंध और सामाजिक संस्थाएं सब बदल रही हैं। इसी संक्रमण में जीवन की समग्रता का आकलन जरूरी है जैसा कृष्ण ने किया था। तभी विध्वंस के बगैर नये समाज का जन्म हो सकेगा। वरना विध्वंस को रोकना संभव नहीं हो पायेगा। इस विध्वंस को रोकने के लिये हमें कृष्ण के जीवन से प्रेरणा लेनी होगी।
Sunday, August 21, 2011
कृष्ण युगधर्म से प्रेरित हैं
Posted by pandeyhariram at 11:23 AM
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