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Sunday, August 21, 2011

विश्वव्यापी मंदी का आतंक

हरिराम पाण्डेय
5 अगस्त 2011
तीन दशक पहले अमरीका में मंदी आयी थी और उसके बाद हाल में आयी और अब जो आर्थिक हालात हैं उससे लगता है कि पिछली मंदी दोगुनी हो जायेगी और सारी दुनिया में आर्थिक गति में अवरोध का आतंक ब्याप गया है। विगत दो हफ्तों से अमरीका की आर्थिक स्थिति के बारे में जो निराशाजनक खबरें मिल रहीं हैं उससे लगता है कि स्थिति और शोचनीय हो गयी और इसके पहले उतना सुधार नहीं हुआ जितनी उम्मीद की गयी थी। इसके पहले जब मंदी आयी थी , जिसे आर्थिक इतिहासकार महामंदी- 1 बताते हैं, उसके बारे में सबका मानना था कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इसका मुकाबला करे और स्थिति को पटरी पर ले आये। यकीनन सरकार ने कुछ ऐसा ही किया और हालात सुधर गये। अब जब महामंदी 2 आयी है तो इसके बारे में राजनीतिक दलों में एक दम भिन्न मत हैं। वे सरकारी खर्चों में कटौती पर जोर दे रहे हैं। अब लगभग दो महीनों की कड़ी कवायद के बाद आने वाले दशक में खर्चों में भारी कटौती के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी है। विश्लेषक बता रहे हैं कि अमरीका में आर्थिक स्थिति में सुधार को लेकर पैदा हुई आशंका और यूरोजोन में कर्ज के संकट की वजह से वहां के बाजार में निराशा की स्थिति पैदा हुई है।
उनका कहना है कि अगले कुछ हफ्तों तक वैश्विक बाजार की हालत इसी तरह से डावांडोल रहेगी। एक्शन इकोनॉमिक्स फोरकास्टिंग के डेविड कोहेन का कहना है, वैश्विक अर्थव्यवस्था में आ रही सुस्ती को देखते हुए निवेशकों ने सांस रोक रखी है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि एक बार यूरोजोन की सारी राजनीतिक आशंकाएं खत्म हो जाएं और अमरीका के वित्तीय मुद्दे हल हो जाएं तो बाजार को वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकास का सहारा मिलेगा। उनका कहना है, लेकिन अमरीका के बाहर के पिछले दो हफ्तों के आंकड़े निराशा पैदा करने वाले रहे हैं और इसने चिंता जगायी है कि अमरीका में मंदी से उबरने की गति उससे कहीं अधिक धीमी होगी जितना लोग अनुमान लगा रहे थे। पिछले कुछ समय से कई यूरोपीय देश कर्ज चुकाने के संकट से जूझ रहे हैं और चिंता जताई जा रही है कि स्पेन और इटली भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। इटली यूरोजोन की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। हालांकि बीते सोमवार अमरीका में कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाने को लेकर हुए समझौते का विश्व अर्थव्यवस्था और शेयर बाजारों पर सकारात्मक असर देखने को मिला था। अमरीका के ऋण संकट को लेकर समझौते ने पूरी दुनिया के बाजार को राहत दी थी। यूरोप में सरकारों की ऋण संबंधी समस्याओं, बैंकों पर दबाव और विकास दर कमजोर होने की संभावनाओं की वजह से यूरोप शेयर बाजार के व्यापारियों की चिंता का केंद्र बन गया है। इसी कारण यूरोपीय शेयर बाजारों में बैंकों के शेयरों में खास गिरावट देखने को मिली है। और यही हाल रहा तो आने वाले समय में यूरोप में आयात की मांग घटेगी। अमरीकी शेयर बाजार में 80 प्रतिशत शेयर 10 प्रतिशत दौलतमंद अमरीकियों के हैं। वहां के 20 प्रतिशत कुल राष्ट्रीय खर्च के 40 प्रतिशत के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। शेयरों की कीमतों में गिरावट का मतलब उनकी दौलत में गिरावट है।अमरीकी बाजारों का सीधा असर एशियाई और भारतीय शेयर बाजारों पर देखने को मिल रहा है। शुक्रवार की दोपहर बीएसई सेंसेक्स 480 अंकों से ज्यादा नीचे आ चुका है। सभी सेक्टोरियल इंडेक्स भारी गिरावट पर कारोबार कर रहे हैं। मेटल और आई टी सेक्टर तकरीबन 4 फीसदी टूट चुका है। वहीं एनएसई का निफ्टी भी 144 अंकों का गोता लगाकर 5188 पर बना हुआ है। एक अर्थशास्त्री माइकल नीमिरा ने कहा कि शेयरों के भावों में गिरावट का अर्थव्यवस्था पर असर पडऩा स्वाभाविक है। तेल और खाद्य पदार्थों के बढ़ते दाम से उपभोक्ता परेशान हैं।

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