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Sunday, August 21, 2011

इंडिया को भारत बनाना जरूरी

हरिराम पाण्डेय
15 अगस्त 2011
आज भारत का स्वाधीनता दिवस है। चारों तरफ उत्सव और कार्यक्रमों का जोर है। विभिन्न लेखों के जरिये स्वाधीनता दिवस और आंदोलन की महत्ता के बारे में बताने की कोशिश की गयी है। चंद अंग्रेजी अखबारों में कुछ ज्ञान गुमानियों ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को यूरोपीय पुनर्जागरण से प्रभावित बताया है। लेकिन यह कथन भ्रामक है और ऐसे भ्रामक विचारों के कारण ही आज भी हमारे देश में दो देश हैं एक है भारत और दूसरा इंडिया। हमारे स्वराज्य और स्वतंत्रता की अवधारणा 5-6 सौ बरस पहले के यूरोपीय पुनर्जागरण काल की देन नहीं है। ऋग्वेद का एक पूरा सूक्त (1.80) स्वराज्य की कामना है-'माययाव धीरर्चनु स्वराज्यंÓ। ऋग्वेद के 1.80.7 सूक्त के सभी 16 मंत्रों के अंत में 'अर्चन् अनु स्वराज्यमÓ है यानी स्वराज्य प्राथमिक आवश्यकता है। स्वराज समाज संगठन व शासन से जुड़ा स्वभाव है। स्वराज के अभाव में स्वभाव का दमन होता है। स्वराज से प्रकृति संस्कृति बनती है। भारत में वैदिक काल से ही स्वछंद, स्वरस, स्वानुभूति का स्वस्थ स्वतंत्र वातावरण था। धरती माता और आकाश पिता थे। लेकिन विदेशी हमलावरों ने भारत का अवनि - अंबर आहत किया। शिक्षापद्धति ने हमारी सोच को विकृत कर छद्म स्वाभिमान के भाव से भर दिया। नतीजा हुआ कि हमारी सामाजिक मेधा में गुलामी का आवरण चढ़ गया। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण भारतीय संविधान सभा में भारत के नामकरण पर हुई बहस है। संविधान सभा ने भारत का नाम 'इंडियाÓ रखा। इंडिया बनाम भारत के सवाल पर संविधान सभा में 18 सितम्बर 1949 को बहस हुई। वोट पड़ा। 'भारतÓ को 38 और इंडिया को 51 वोट मिले और इस प्रकार भारत हार गया तथा इंडिया जीत गया। भारत विश्व का प्राचीनतम राष्ट्र है। जो भारत है, उसका नाम भी भारत है। लेकिन गुलाम मानसिकता के नेताओं ने एक नये राष्ट्र की कल्पना की। एक राष्ट्र के भीतर राष्ट्र के रूप, स्वरूप, दशा, दिशा, नवनिर्माण, भविष्य और नाम को लेकर दो धाराएं जारी हैं। पहली धारा भारतीय और दूसरी इंडियन। महात्मा गांधी, डॉ0 राममनोहर लोहिया, डॉ0 हेडगेवार, बंकिमचंद्र और सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रवादी धारा के अग्रज हैं। कांग्रेस पर सम्मोहित एक और धारा यहां प्रभावित है और वह धारा इंडियावादी है। दुर्भाग्य से आज 'इंडियावादीÓ समूह का वर्चस्व है। आज भी अपने देश के मानस पर गुलामी का असर है और जब तक हम इस असर से मुक्त नहीं होंगे हमारा सोच स्वतंत्र नहीं हो सकता और गुलाम सोच का इंसान या समूह या राष्टï्र कभी भी अपने स्व का विकास नहीं कर सकता। हमें इंडिया को भारत बनाने के लिये एक नयी क्रांति का शंख फूंकना चाहिये।

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