हरिराम पाण्डेय
30 अगस्त 2011
हाल के वर्षों में देश का सबसे बड़ा जनांदोलन खड़ा कर देने वाला अण्णा का अनशन समाप्त हो चुका है। टीवी चैनल, सोशल मीडिया और जहां भी आप देखें जीत का जश्न चल रहा है। गोपाल अग्रवाल ने एस एम एस किया 'मैं बेवजह आजादी के किस्से पढ़ रहा था, मैं तो आज 15 अगस्त 1947 को जी के देखा। एक हाथ में सेल फोन और एक हाथ में पोस्टर, मैं तो 64 साल के बाद हिंदुस्तान को जवान होते देखा। कल तक सिर्फ सिगरेट में चिंगारी को जलते देखा, आज दिल में ज्वाला जला के देखा। Ó यह बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न था। यह उल्लास स्वाभाविक है। आखिर, हर तरह से ताकतवर और ओवर स्मार्ट लोगों से भरी सरकार जनता की शक्ति के सामने हथियार डाल दे, यह नजारा सामान्य तो नहीं है। यह पल देश की आजादी के बाद पैदा हुई पीढ़ी के लिए खासा रोमांचक ही नहीं अभूतपूर्व भी है जिसने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गयी आजादी की लड़ाई नहीं देखी।
इस उत्साह और जोश के बावजूद यह सोचना भोलापन होगा कि लड़ाई खत्म हो गयी है। सच्चाई यह है कि लड़ाई अभी शुरू ही हुई है और अण्णा की अद्भुत संकल्प शक्ति के बावजूद इस लड़ाई का आने वाला दौर उससे कहीं ज्यादा कठिन होगा जो हमने अब तक देखा है। सबसे पहले तो यह बता देना जरूरी है कि सरकार और पूरी राजनीतिक बिरादरी, इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो अब तक अण्णा के लिए समर्थन जताने में आगे रहे हैं, चीजों को उस रूप में नहीं लेगी जिस रूप में लेने की उम्मीद जनता उनसे करती है। नेता खुद अपनी आमदनी के अवैध स्रोत बंद करना भला क्यों चाहेंगे? 12 दिन के अनशन के दौरान देश ने सरकार और उनके वार्ताकारों की तरफ से जो उलझन और संदेह देखा, प्रदर्शनकारियों और मीडिया में भ्रम फैलाने की जो कोशिशें उनकी ओर से की गयीं , खुद विपक्ष ने जिस तरह से प्राइवेट और पब्लिक स्टैंड में फर्क बनाए रखा- ये बातें यह साफ करने के लिए काफी हैं कि ये लोग अपने विशेषाधिकार आसानी से नहीं छोड़ेंगे, बल्कि, ये पूरी ताकत से इसे तब तक रोके रखेंगे जब तक कि इनका वश चलेगा। अब आगे चुनौतियां विशाल हैं, क्योंकि आम आदमी की उम्मीदें आसमान छू रही हैं। उम्मीदों का यह रूप आंदोलन के नेताओं के लिए डरावना हो सकता है। उम्मीदें जगाना आसान है, गरीबों की उम्मीदें पूरी करना अलग बात है।
इसलिए यह बेहद जरूरी है कि आंदोलन ने क्या हासिल किया है और यह क्या हासिल करना चाहता है, इस बारे में लोगों को शिक्षित करने का अभियान बड़े पैमाने पर शुरू किया जाए। यह आंदोलन की कामयाबी का मूल आधार होगा। उम्मीदों को पूरा करने में नाकामी से लोगों का भरोसा टूटेगा और आंदोलन को मिले जन- समर्थन में तेजी से कमी आएगी। इन सबके अलावा आंदोलन को आगे चलते रहने के लिए पैसों की भी जरूरत होगी। अब तक ऐसा लगता है कि आम लोगों के बीच से पैसा जुटाना मुश्किल नहीं है। लेकिन, हमें याद रखना होगा कि जहां कहीं भी पैसा आता है, वहां से घोटाले और आरोप- प्रत्यारोप भी दूर नहीं रह पाते। इसलिये सावधानी जरूरी है।
Wednesday, August 31, 2011
अभी आंदोलन जारी है, लेकिन सावधानी जरूरी है
Posted by pandeyhariram at 9:47 AM
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