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Sunday, August 21, 2011

गैरजरूरी गोपनीयता में लिपटा 'राजवंशÓ

हरिराम पाण्डेय
10 अगस्त 2011
देश की लगभग 85 प्रतिशत आबादी किसी ना किसी रूप में मीडिया से जुड़ी है। सियासत की मसालेदार खबरों के अलावा यदि सबसे लोकप्रिय आइटम कोई मीडिया में है तो वह है क्रिकेट। लेकिन कुछ दिनों से यह देखने को मिल रहा है कि देश की अंग्रेजी और इलेक्ट्रानिक मीडिया कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बीमारी की जांच करने में लगी है। विभिन्न संदर्भों में इस बात को इतना प्रचारित किया जा रहा है कि यह अब निजी बतरस से लेकर सोशल नेटवर्किंग में 'चटरस (चैटिंग का रस)Ó का सिलसिला बन गया है। विगत एक बरस से मीडिया देश में व्याप्त कथित भ्रष्टïाचार के मामलों में हस्तक्षेप के कारण जनता में लोकतंत्र के पहरुआ के तौर पर उभर कर आया है, खास कर घोटालों का पर्दाफाश करने और सियासी क्लास से जवाब तलब करने के अपनी भूमिका के कारण उसे काफी शोहरत मिली है। ऐसे में जहां तक सोनिया जी की बीमारी का सवाल है मीडिया ने कम्बल ओढ़ कर घी पीने वाली भूमिका अपनायी है। भारत के लगभग सभी मीडिया घरानों के दल न्यूयार्क अस्पतालों की खाक छान रहे हैं जिनमें से किसी एक में सोनिया जी गुमनाम तौर पर भर्ती हैं। कांग्रेस में गांधी परिवार से जुड़े लगभग हर स्रोत को टटोला जा रहा है कि उन्हें क्या बीमारी है या उनका क्या उपचार चल रहा है। कांग्रेस या सरकार का कहना है कि वह एक निजी मामला है तथा उसे गोपनीय रखा जाय। इस मसले को लेकर देश में और मीडिया में बहस चल रही है। वैसे कांग्रेस के नेतृत्व का मामला दरअसल गांधी परिवार का निजी मसला है भी नहीं। जो देश का पूरी तरह स्वीकृत नेता हो और जो शासन नहीं कर रहा हो पर असल में उसी के हाथों शासन की डोर हो वह कभी निजी हो भी नहीं सकता। भारत सोवियत संघ नहीं है जहां यूरी आंद्रोपोव की बीमारी आखिर तक रहस्य बनी रही और उसे सरकारी गोपनीयता का जामा पहना दिया गया या भारत उत्तर कोरिया भी नहीं है जहां हर सूचना क्लासीफायड होती है। लोकतंत्र में नेताओं के स्वास्थ्य के बारे में अस्पतालों से जिम्मेदार डाक्टर दैनिक बुलेटिन जारी करते हैं और साथ ही परिवार की गोपनीयता के हक की भी हिफाजत करता है। जहां तक भारत का सवाल है यहां जब देश के सर्वोच्च परिवार की बात आती है तो मीडिया की खोजी पत्रकारिता की धार कुंद हो जाती है और सब कुछ हैंडआउट पर जा टिकता है। जबकि मीडिया इस हकीकत से भी अच्छी तरह वाकिफ है कि कई अवसरों पर देश को गुमराह किया जा चुका है। सोनिया जी की ही बात लें , कई मौकों पर जब वे उपस्थित नहीं हो सकीं तो कहा गया कि उन्हें वाइरल बुखार है या वे अपनी मां को देखने इटली गयी हैं वगैरह- वगैरह, हालांकि कोई भी प्रमाणिक तौर पर पक्की जानकारी नहीं दे पाया। राहुल गांधी के साथ भी यही हुआ। कांग्रेस महासचिव अपने जन्म दिन के अवसर पर देश में थे ही नहीं। कहां गये थे पता नहीं। यहां तक कि सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी भी उनके यात्रा कार्यक्रमों की जानकारी नहीं दे पायी। सुरक्षा के नाम पर बात टाल दी गयी। गांधी परिवार ने न जाने क्यों अपने को गैरजरूरी गोपनीयता के पर्दे के पीछे छिपा रखा है। इसके कारण तरह- तरह की अफवाहें फैल रही हैं, साजिशों की अटकलें लगायी जा रहीं हैं। महत्वपूर्ण लोगों की बीमारी के बारे में अफवाहें तभी फैलती हैं जब सूचनाओं को अवरुद्ध कर दिया जाता है। अफवाहों को नजरअंदाज भी कर दें तो सोनिया जी की लम्बी गैरहाजिरी का असर सरकार के कामकाज पर भी पड़ेगा। रोगी के स्वास्थ्य के बारे में सही सूचना और परिवार की गोपनीयता के मध्य संतुलन के लिये कई उपाय हैं जो कामयाब भी रहे हैं।

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