हरिराम पाण्डेय
29 अगस्त 2011
पिछला पखवाड़ा भ्रष्टïाचार आंदोलन की भेंट चढ़ गया और इस परेशानी में कोई यह नहीं देख पाया कि देश की अर्थ व्यवस्था कैसे डूब रही है और अब उसका असर भ्रष्टïाचार से ज्यादा विकराल हो चुका है। गत गुरुवार से सरकार भ्रष्टïाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे अण्णा हजारे की मनुहार में लगी थी और उधर रिजर्व बैंक ने चेतावनी दी कि 'आर्थिक विकास की दर 8 प्रतिशत से नीचे जा सकती है।Ó दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं जहां यदि आर्थिक विकास की दर 7 प्रतिशत से ज्यादा हो जाय तो वे रोमांचित हो उठेंगे पर जहां तक भारत का सवाल है यहां 2008 में आर्थिक विकास की दर 9 प्रतिशत थी जो पिछले साल गिर कर 8 प्रतिशत हो गयी और अब यह 7 प्रतिशत से नीचे जाने वाली है। यह स्थिति भारत के लिये बेहद चिंताजनक हो सकती है। आर्थिक विकास की दर में गिरावट का मतलब होगा एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे घुटने के लिये मजबूर हो जायेगी और इसका परिणाम एक बड़े उथल पुथल के रूप में सामने आ सकता है। यही नहीं कई विकसित देशों की अर्थ व्यवस्था भी इससे प्रभावित होगी , क्योंकि उनका बाजार भारत और चीन जैसे विकासशील देशों पर निर्भर है। कई विशेषज्ञ भारत की इस डूबती माली हालत के बारे में बहुत पहले से चिंतित हैं। औद्योगिक देशों के 'डबल डिपÓ के पहले से कई विशेषज्ञ भारतीय अर्थ व्यवस्था में गिरावट के प्रति शंकित थे। पिछले साल के आखिर से निजी निवेश घटने लगा था। पिछले साल से महंगाई आसमान छू रही है और मुद्रास्फीति की दर 10 प्रतिशत के आस पास घूम रही है और इस अवधि में रिजर्व बैंक कम से कम 11 बार ब्याज दरों में इजाफा कर चुका है। विगत चार दशकों में सबसे बड़े जन- आंदोलन से निपटने में लगी सरकार को यह दिखा ही नहीं कि आर्थिक दुरवस्था धीर- धीरे हम पर हावी होती जा रही है। लेकिन हजारे के आंदोलन में शामिल लोगों का यकीन है कि यदि भ्रष्टïाचार का मसला हल हो जाता है तो आर्थिक समस्याएं भी हल हो जाएंगी। लोग भ्रष्टïाचार से इतने परेशान लग रहे हैं कि उन्हें हर समस्या की जड़ में भ्रष्टïाचार ही दिखायी पड़ रहा है और वे इसके लिये सत्ता प्रतिष्ठïान को दोषी मान रहे हैं लिहाजा जनता परिवर्तन चाहने लगी है। भारत के सामने चुनौतियां गंभीर हैं क्योंकि एक तरफ जनता का सारी गड़बडिय़ों के लिये सरकार को दोषी मानना और दूसरी तरफ बिगड़ती अर्थव्यवस्था और तिस पर अमरीका तथा यूरोप में बिगड़ती माली हालत। हालांकि भारत इन देशों में बहुत ज्यादा निर्यात नहीं करता इसलिये वहां की आर्थिक दुरवस्था का इस पर ज्यादा असर पडऩे की आशंका नहीं है लेकिन अपनी निवेश की जरूरतों पर तो यह विदेशी पूंजी पर निर्भर है ही और उसमें गिरावट आनी शुरू हो गयी है। भारत में भ्रष्टïाचार विरोधी लहर आने से और देश के नौजवानों को उसका समर्थन मिलने के कारण वे बदलाव अब नहीं लाये जा सकते हैं जिनसे नौजवानों में खुशहाली लायी जा सके। इसका कारण है कि सरकार विपक्ष और इन कार्यकर्ताओं के भय से कठोर राजनीतिक - आर्थिक सुधार लाने में हिचकेगी और इसके प्रतिफल में जो भी बचा है वह शेष हो जायेगा। यहां तक कि इस आंदोलन के पहले भी कहा जा रहा था कि सरकार गरीबी उन्मूलन और बेहतर शिक्षा जैसे सुधार नहीं ला पा रही है जिसके कारण पढ़े- लिखे लड़के भी किसी काम के नहीं हो पा रहे हैं साथ ही भूमि सम्बंधी कानून भी नहीं बना पा रही है सरकार। परंतु आंदोलन से हफ्ते भर पहले सरकार ने भूमि सम्बंधी कानून में बदलाव के लिये एक विधेयक पेश किया था जिससे किसानों को मालिकाना हक मजबूत होने के आसार बढ़े थे और उम्मीद की जाने लगी थी कि विदेशी निवेशक भारत की धरती पर लौटेंगे। इसी को देखते हुए गोल्डमन शैस ने भारत की रेटिंग बढ़ा दी थी। लेकिन अब सरकार कई महीनों तक कोई कदम नहीं उठा सकेगी। इसके साथ ही चूंकि अगले साल यूपी में चुनाव होने वाले हैं इस लिये सरकार अगले साल के शुरू में भी कोई कठोर कदम नहीं उठा सकती। लेकिन 2014 में लोकसभा सभा के चुनाव हैं अतएव बिना सुधार किये सरकार रह नहीं सकती है। अब इसमें कौन सी राह चुनें यह तय करना कठिन है क्योंकि हर राह में नौजवान रोड़े बन कर खड़े हैं। भारत की आबादी में इस समय नौजवानों की संख्या पूरी आबादी में से आधी है और उनकी आकांक्षाओं को हवा दी गयी है। ऐसा पहले नहीं था। लेकिन इसके भय से हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना भी अक्लमंदी नहीं होगी।
Wednesday, August 31, 2011
अजीब सांसत में पड़ी सरकार
Posted by pandeyhariram at 9:44 AM
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