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Monday, June 13, 2016

सड़क पर दौड़ती मौत

सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 10 जून को जारी अपने मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा है कि 2015 में देश में  1.46 लाख लोग सड़क दुर्घटना में मारे गए/ यह 2014 की तुलना में 5 प्रतिशत ज्यादा है/ इतने लोग तो किसी युध्ध में नहीं मारे गए/ अगर समग्र सड़क दुर्घटनाओं को देखा जय तो गत वर्ष यह संख्या 5 .01 लाख तक पहुच जायेगी/   इस आंकड़े को अगर ध्यान से देखा जय तो पता चलेगा की 374 लोग रोजाना सड़क दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं/ इसमें 77 प्रतिशत गलतियाँ चालकों की होती है और इसका कारण अनुमोदित सीमा ज्यादा तेज रफ़्तार में ड्राइविंग है/ मन्त्रालय ने इस संख्या को देखते हुए मंत्रिमंडल को लिखा है कि रोड सेफ्टी और अन्य सावधानियों के लिए गाईडलाइन तय करने के लिए एक प्रबंधन परिषद् का गठन किया जय/ रोड एक्सिडेन्ट्स के आंकड़ों को देख कर लगता है कि हमारा भारत सड़क यात्रा के मामले में दुनिया का सबसे जोखिम भरा मुल्क है/ सड़क पर चलता हुआ हर आदमी कब गाड़ियों की चपेट मैं आ जाय कोई नहीं जानता/ सरकारी आंकड़े जो बता रहे है उससे कहीं ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं/ क्योंकि ये आंकड़े अस्पतालों में भारती किये गए मामलो के आधात पर तैयार होते हैं/ 2014 में दिल्ली आई आई टी की एक रपट के मुताबिक़ सड़क दुर्घटनाओं में महज 25 प्रतिशत मामले ही अस्पतालों तक पहुँचते हैं/ जहां तक इन दुर्घटनाओं में मरने वालों का सवाल हैतो यह संख्या 1970 के मुकाबले 2015 में 6 प्रतिशत बढ़ी है/ आकडे बताते हैं की गत वर्ष मरने वालों में 54 .1 प्रतिशत लोग 15 से 34 वर्ष की उम्र के थे यानी मोटरों के काले टायरों ने कोलतार की काली हाईवे पर हजारों ऐसे  नौजवानों को सोख लिया जो देश के विकास में सहायक हो सकते थे/ यह राष्ट्रीय स्वस्थ्य के लिए आपात स्थिति कहा जा सकता है/ इसपर रोक के लिए सबसे जरूरी है सड़कों पर मजबूत पुलिस व्यवस्था , पैदल चलने वालों को चलाचल नियमों का पालन करने पर मजबूर करने और मोटर साइकिल सवारों को हेलमेट का प्रयोग करने के बाध्य करने जैसी व्यवस्था को कठोरता पूर्वक लागू करना अनिवार्य है/ इसके बाद जरूरी है दुर्घटना के कारणों की सख्ती से जांच/ हमारे देश में दुर्घटना के लिए पहली नजर में ड्राईवर दोषी माना जाता है जबकि इसके लिए रोड की डिजाइन , सड़क का रख रखाव और उनके प्रति सड़क पर चलने वालों की इमानदारी/ कई बार ऐसा भी देखने में आता है की दुर्घटना के लिए सड़क पर चलने वाले लोग या सड़क के किनारे रहने वाले लोग जिम्मेदार होते है/ हेलमेट नहीं लगाना, सिग्नल को अनदेखा करना और जेब्रा क्रासिंग को नहीं मानना आम बात है/ क्योंकि आंकड़े बताते हैं की गत वर्ष मुंबई जैसे महानगर में 23 हजार 4 सौ 68 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए यही नहीं दिल्ली जैसे चौकस महा नगर में आलोच्य अवधी में 1622 लोग मारे गए/ यह संख्या साफ़ बताती है की महानगर के वासियों ने भी सड़क सुरक्षा नियमों का अनदेखा किया और नियम पालन करवाने वाली एजेंसी ने कर्त्तव्य पालन में कोताही की/ सन 2007 में सुंदर कमीटी ने रोड सेफ्टी मैनेजमेंट बोर्ड गठित करने का सुझाव दिया था ताकि सरकार को सड़क सुरक्षा के उपाय बताये जाएँ पर वह ठन्डे बसते पडा रहा/ वर्तमान सड़क यातायात विभाग  ने एक बोर्ड बनाने का अनुरोध मंत्रिमंडल को भेजा है और संभवतः सरकार इसके लिए तैयार भी है/ परन्तु, ऐसा बोर्ड जो केवल सुझाव दे इससे क्या लाभ/ एक और दंतहीन अधिकारहीन दफ्तर के खुल जाने से कोई उपलब्धि तो होगी नहीं/ जब तक एक विधेयक के जरिये एक नये कार्यालय का गठन नहीं होगा तबतक कुछ नहीं हो सकेगा/ वर्षों पुराने मोटर क़ानून को सुधारने और सड़क सुरक्षा को ठीक करने के लिए यह जरूरी है/ क्योंकि मोटर वाहनों को मंजूरी देने , ड्राइवरों को लाइसेंस जारी करने में जारी भ्रष्टाचार को रोकना भी सरल नहीं है/ यही नहीं मोटर कंपनियों की गाड़ियों के स्पेयर पुर्जे, उनके बेशुमार बढ़ते दाम  और वाहनों के रखरखाव में  इजारेदारी पर भी अंकुश लगाना जरूरी है/ क्योकि केवल इन कारकों से गाडी रखना महंगा हो जाता है और पैसा बचाने की गरज से लोग छोटी मोती मरम्मत नहीं करवाते जो बाद में जानलेवा बन जाती है/ एक अनुसंधान के मुताबिक़ 2046 तक दुर्घटनाओं की तादाद बढ़ेगी बशर्ते उसपर अभी से लगाम नहीं लगाया गया/

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