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Wednesday, June 22, 2016

इसबार होगी उत्तर प्रदेश में जंग

देश में उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जसके बारे में सही ढंग से कुछ भी कहना कठिन है/ देश के लगभग सभी महापुरुषों भगवान् राम से लेकर नरेन्द्र मोदी तक की जन्मभूमि या कार्यभूमि रहा है यह प्रदेश/ परन्तु, देश की कोई पार्टी यह नहीं कह सकती कि इस प्रदेश को बुनियादी तौर पर सुधर देगी या समाज व्यवस्था को आधुनिक बना देगी/ या इसे सामान्य स्तर पर ले आएगी/ यहाँ जो हैं वे अपने लाभ के लिए सत्ता हथियाना चाहते हैं/ उत्तरप्रदेश में अगले साल चुनाव होने वाले हैं/ उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है/ यहाँ 403 विधान सभा सीटें हैं और 80 लोक सभाई क्षेत्र हैं/ अगर बिहार को इससे जोड़ दिया जाय तो यह देश की देश की राजनीति में वर्चस्व प्राप्त कर लेगा/ जब इन दोनों राज्यों पर कांग्रेस का शाशन था तो देश के शाशन पर भी वह कायम थी/ लेकिन कांग्रेस ने भी इसे पिछड़ा ही बनाए रखा/ अगर यू पी में अभी भी जातिवाद है तो इसका कारण केवल यह है कि इसमें महाराष्ट्र या पंजाब जैसी गतिशीलता नहीं आ सकी/ जब कांगेस ने वहाँ सत्ता छोड़ी तो जो दूसरे दल सत्ता में आये उन्होंने अपने सियासी स्वार्थ के लिए जातिवाद को और ताकतवर बना दिया/ बिहार की खुशकिस्मती थी की वहाँ 10 वर्षों तक एन डी ए का शाशन था/ अब उसका भी दुर्भाग्य है की वहाँ जातिवादी शाशन व्यवस्था का बोलबाला हो गया/ उधर यू पी में न भा ज पा, न ,स पा और  न ब स पा ने अपने शाशन काल में वहाँ की अवस्था सुधरने के लिए कुछ किया/ बीमारू घोषित किये गए 4 राज्यों में केवल यू पी ही अविकसित रह गया/ यह सम्प्रदायवाद का गढ़ बन कर रह गया/ चाहे वह मुजफ्फरनगर हो या दादरी या आजम गढ़ हजारों लोगों ने केवल इसलिए अपने घर बार छोड़ दिए ताकि अछे से रह सकें/ यू पी और बिहार को प्रति व्यक्ति आय का राष्ट्रीय औसत ह्गासिल करने में पसीने छोट जायेंगे/ अपराध की स्थिति किसी से छिपी नहीं है/ आने वाले चुनाव से भी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है/ भाजपा खुद को विजेता के रूप में पेश कर रही है/ 2014 में तो वह विजेता थी ही/ उसे 80 में से 71 सीटें मिलें थीं/ लेकिन विधान सभा और लोकसभा चुनाव के अलग अलग हालात होते हैं/ दिल्ली और बिहार इसका स्पष्ट उदाहरण है/ एनी पार्टियों की भांति भाजपा भी जाती और संप्रदाय के समीकरण बना रही है/ इसलिए लगता नहीं है की कोई नया विचार या किसी नयी नीति को पेश किया जाएगा और अगर ऐसा हुआ भी तो लागू नहीं होगा/ लोग भी अपनी अपनी विचारधारा  और राजनीतिक प्रतिबध्हता के आधार पर विधान सभा चुनाव में पार्टियों को विजयी बना रहे हैं/ यू पी में जो अभी स्थिति है उससे लगता है की वहाँ त्रिकोणीय युद्ध होगा/ कांग्रेस और जद(यू ) प्रभावी साबित नहीं होंगे/ इनके नेताओं के व्यक्तित्व और विचारों कोई बुनियादी अंतर नहीं है/ ऐसा महसूस होता है की यू पी में किसी एक पार्टी की सरकार शायद ही बने/ भाजपा एक बड़ी पार्टी बन सकती है/ अगर सपा और बसपा मिल जाते हैं तो भाजपा को विपक्ष में भी बैठना पद सकता है/ यह एक निराशा जनक स्थिति है/ भारतीय  राजनीती में यू पी एक असफल राज्य बन कर रह गया है/ यहाँ विभिन्न दलों में अपना स्वार्थ साधा/ दूसरे यह एक विशाल प्रदेश है/ इसे राज्य पुनर्गठन आयोग 1955 की सिफारिशों के मुताबिक़ विभाजित कर दिया जाना चाहिए/ लेकिन उत्तराखंड के अलावा किसी भी क्षेत्र को अलग पहचान नहीं मिली/ जबकि बुंदेलखंड और पूर्वांचल इसके योग्य हैं/ लेकिन 80 सीट्स का लोभ कौन छ्देगा और भी केवल सुशाशन के लिए/

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