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Saturday, June 11, 2016

वो चाहते हैं की सिल दें जुबान    

अगर एक नजरिये से देखें तो यह बोलने की आजादी या कहें अभिव्यक्ति की आजादी का स्वर्ण युग है/ आप अपने स्मार्ट फोन से दुनिया के किसी भी कोने में बैठे किसी भी मीडिया को अपनी बात बता  सकते हैं/ यही नहीं लाखों ट्वीटस , फेस बुक अपडेट्स और ब्लाग्स राजाना सामने आते हैं/ कोई भी आदमी जो इंटरनेट का इस्तेमाल करता है खुद प्रकाशक बन सकता है और उँगलियों के पोरों पर गिन कर ज्ञान के भण्डार में प्रवेश कर सकता है/ लेकिन दुनिया भर से जो खबरें मिल रहीं हैं वह बेहद निराशा जनक हैं/ दुनिया भर में वाक्स्व्तंत्रता या सीधे कहें की बोलने की आजादी पर अंकुश बढ़ रहे हैं और इसके खिलाफ आवाज उठाना तो दूर जागरूक  लोग भी इस स्थिति को नजरअंदाज कर रहे है/  बोलने की आजादी पर तितरफा हमले हो रहे हैं/ पहली तो  कई देशों सरकारें हैं जो  शीतयुद्ध के जमाने की पापंदियाँ लागू कर रहीं हैं या नए कानून बना डालें हैं/ सोवियत संघ के पतन के बाद रूस में बोलने की आजादी मिल गयी थी पर पुतिन के काल में वही पुराना रवैया अपना लिया गया/ सभी टेलीविजन चैनल सरकार के नियंत्रण में हैं और असुविधाजनक सवाल पूछने वाले पत्रकारों को अब तो यातना गृह में नहीं भेजा जा रहा है पर उनकी ह्त्या कर डी जा रही है/ शी जिनपिंग ने जबसे सत्ता संभाली तबसे वहाँ सोशल मीडिया पर लिखने वाले कई लोग जेल भेज दिए गये/ विश्वविद्यालयों में बहस पर बंदिशें लग गयी हैं/ मध्य पूर्व में अरब बहार के बाद जब अत्याचारी शासकों को हटाया गया तबसे फिजां में आजादी की बहार है पर सीरिया और लीबिया अभी भी बेहद खतरनाक जगहें बनी हुई हैं/ मिस्र में शासक ख़म ठोंक कर कहरे हैं कि “ जो मैं कहता हूँ वही सुनें बाकी किसी की नहीं/ दूसरी तरफ से रोक वो लोग लगा रहे हैं जो शासक तो नहीं है पर बेहद क्रूर हैं/ मक्सिको और बँगला देश के ब्लॉगरों की ह्त्या इसकी मिसाल है/ लेखकों, पत्रकारों और कार्टूनिस्टों पर जेहादी और कट्टरपंथी तत्वों के जुल्म  बढ़ते जा रहे हैं/तीसरा हमला उस विचार से हो रहा है जिसके तहत यह कहा जा रहा है की किसी की भावनावों को आघात पहुँचाने का हक़ किसी को नहीं है/ यह सुनाने में बड़ा निर्दोष सा लगता है पर इसके मायने बड़े घातक  हैं/  क्योंकि किसकी भावना किस से जुडी है वह कोई नहीं जनता/ इसके जद धर्म  से लेकर राजनितिक पार्टी तक आती है, नालावाद से लेकार गुलामी तक शामिल है, आरक्षण से लेकर जातियों और गुटों तक जुड़े हैं/  दिलचस्प बात यह है की दुनिया के हर देश में बोलने की आजादी को कयाम रखने के लिए क़ानून हैं पर जो चलाक शासक हैं वे इसपर लगाम के लिए इज्जतदार शार्टकट निकाल लेते हैं/ चीन में हाल ही में तिब्बत की आजादी के लिए लड़ने वालों को जातीय विद्रोह भड़काने के आरोप में जेल में दाल दिया गया/ सऊदी अरब में ब्लासफेमी के मामले में कोडे से पिटाई होती है, भारत में , जाती, धर्म या नसला के मामले में दुर्भाव फैलाने वालों को तीन महीने की जेल होती है/ किसी भी देश में आवाज पर बंदिश के विरोध में मानवाधिकार वाले आवाज उठाते हैं तो वहाँ शासन यही कहता है कि भारत, फ्रांस और स्पेन जैसे मुल्को में भी आतंकवाद भड़काने या दुर्भाव फैलाने के लिए सजा का प्रावधान है/ अभी मानवाधिकार दिवस के अवसर पर “ इकोनॉमिस्ट” पत्रिका द्वारा किये गए एक सर्वे में बताया गया है कि कई देश बोलने की आजादी का सशर्त समर्थन करते हैं/ यदि शब्द तकलीफ पैदा करतें हैं तो चाहे वह शासक हो या कोई अन्य ताकतवर आदमी शब्दों पर लगाम लगाएगा ही/ इस्लामी देशों का एक समूह इस बात की कोशिश में लगा है कि इस्लाम का अनादर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अप्राद माना जय और जो हालात दिख रहे हैं उससे लगता है कि वे कामयाब होंगे/ कहा जता है कि कुशासन के खिलाफ बोलने की आजादी सबसे बड़ा हथियार है/ गलती या ज्यादती करने वाले शासको की जम कर आलोचना है और क्योंकि उदारवादी समाज के पास इससे बड़ा कोई हथियार नहीं है/ अमर्त्य सेन ने सही कहा है की “ जिस देश में बोलने की आजादी होगी वहाँ विचारों का अकाल नहीं होगा”/ ... और चाणक्य का मानना था की “ जहाँ विचार कायम रहेंगे वहां व्यभिचार नहीं हो सकता/” जीवन के सभी क्षेत्र में बोलने की आजादी बुरे में से अच्छाई को निकाल लेती है/ विज्ञानं का विकास तबतक नहीं हो सकता जबतक अंध विश्वासों को चुनौती ना दी जाय / जब विश्व विद्यालयों में वाम पंथी या दक्षिणपंथी शिक्षक ही रखे जायेंगे तो यह तय है की छात्र स्वतन्त्र और निष्पक्ष विचारों वाले नहीं होंगे/ कानून में बोलने की आजादी को चरम स्वीकृति मिलनी चाहिए , अपवाद विरल हो सकते हैं/ बहस मुबाहिसे में तर्कों का सहारा लिया जाना चाहिए ताकत का नहीं/

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