तीन दिन पहले अमरीका के ऑर्लैंडो में एक सिरफिरे ने 50 लोगों को मौत के घाट उतार दिया/ वह खुद को इस्लामिक स्टेट संबध कहता है/ आई एस ने भी इसे स्वीकार किया है/ लेकिन किस इलाके के कमांडर ने ऐसा करने को कहा यह साफ़ नहीं है/ इस खून खराबे जो कारण समझ में वह है समलैंगिको के प्रति नफरत/ यह भी साफ़ नहीं है कि वह आई एस का सदस्य है या नहीं/ इसके पहले कैलिफोर्निया में एक सिरफिरे ने गोलिया चला कर 14 लोगों को मार डाला था/ इसके पहले नवम्बर में पेरिस में भी कुछ इसी तरह का हमला हुआ था/ बाद में आई एस ने उन्हें भी अपना समर्थक मना था/ ऐसी कई घटनाएं सामने आयी है/ हलानी आई एस ने ने जो संकेत दिए हैं उससे यह पता चलता है कि इन हमलों के निर्देश नहीं दिए गए थे/ आई एस की यह रणनीति है कि वह दुनिया के हर क्षेत में अपने ऐसे दो चार लोग तैयार करता है जो उससे सीधे नहीं जुड़े हैं बल्कि विचारों से जुड़े हैं और उनके मन में किसी ख़ास कौम के बारे में ऐसी घृणा पैदा करते हैं कि वे ऐसे कार्यों को खुद ब खुद अंजाम दें, या कुछ ना कुछ उनके लिए करते रहे/ वह दूर दराज के इलाकों में रहने वाले अपने सिरफिरे समर्थकों को प्रेरित करता रहता है/ इससे प्रेरित वो लोग होते हैं जो किसी खास कौम से नफरत करते हैं और उसे सबक सिखाने की सोचते हैं/ गार्डियन में जसन बर्क ने लिखा है कि “ आई एस रिमोट से अपने समर्थकों को प्रेरित करता है और पूरी दुनिया को खौफ में रखना चाहता है”/ यह नए तरह का खतरा विश्व के सामने उपस्थित हुआ है/ क्योंकि ऐसे संगठनो के कार्यकर्ता संगठन या उसके आदर्शों के प्रति समर्पित नहीं होते बल्कि नेता के प्रति समर्पित होते है/ ऐसे लोग जिन्हें आतंकवाद की भाषा में “ लोन एक्टर्स” कहतें हैं संगठन से मदद नहीं लेते ये अपने दोस्तों या परिवार वालों से मदद लेते हैं/ आतंकवादी संगठनो को ऐसे लोग बड़े मुफीद होते हैं, क्योंकि दुनिया की कोई भी जांच उनके गिरेबा तक नहीं पहुंच सकती और संगठन जहां चाहे वहां तबाही ला सकते हैं/ आतंकवादियों के संगथान से भले ही सरकार लड़ ले, लेकिन विचारों से प्रभावित इन एकाकी लोगो से लड़ना नामुमकिन है/ यह फिनोमिना एक तरह से विकास का दंड भी है/ बड़े पैमाने पर लोगों का निर्वासन और आव्रजन इन दिनों देखने को मिल रहा है और इनमे से बहुत से लोग होते जो दूसरी संस्कृति या सभ्यता में घुल मिल नहीं पाते और इसका दोष वहाँ के निवासियों को देते हैं/ साथ ही दूसरे देश से आये लोगों में अपने धर्म और संस्कृति के प्रति भावुकता की हद तक लगाव होता है और वे दूसरों को अपने से हीन मानते है/ यही नहीं वे अपनी पहचान को स्थापित करने के लिए व्याकुल हो जाते है/ पहचान को स्थापित करना मनुष्य की स्वभावगत कमजोरी है/ दुनिया की बड़ी से बड़ी लड़ाई के मूल में पहचान की पीड़ा ही रहती है/ यह भावना बाद में ग्रंथि बन जाती है/ आतंवादी संगठन भले ही आधुनिकता का विरोध करते हों पर वे इसका लाभ पूरी तरह उठाते है/ इन्टरनेट और सोशल मीडिया के बल पर वे कुछ नौजवानों में व्याप्त इस ग्रंथि को नफरत में बदल देते हैं और बाद में उस नफरत की आग में मनगढ़ंत और भड़काने वाली ख़बरों का इंधन डालते हैं जिससे इसी किस्म के दुष्परिणाम सामने आते हैं/ डर इस बात का है कि दुनिया के कई कोणों में न जाने कितने लोग इस प्रकार से तैयार किये जा रहे हों जो किसी भी बात पर भड़क कर ओरलैंडो जैसी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं/ कुछ लोगों का तर्क है की अमरीका में चूंकि हथियारों पर पाबन्दी नहीं है इसलिए यह घटना घटी/ लेकिन भारत जैसे देश में जहां हथियारों पर सख्त पाबन्दी है वहाँ भी ए के 47 और ए के 56 जैसे हथियार आतंकियों को मिल जाते हैं/ जरूरी नहीं की ऐसे लोगों को तैयार करने के लिए धार्मिक कट्टरता ही आधार बने/ ये संगठन धर्मं का इस्तेमाल महज दिमाग के भीतर प्रवेश के लिए करते हैं/ इसके बाद तो वे नौजवानों को हथियार बना देते हैं/ ऐसा भारत में भी हो सकता है इसलिए सरकार और समाज को सदा सतर्क और सावधान रहना चाहिए.
Wednesday, June 15, 2016
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