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Thursday, June 2, 2016

अब भविष्य की ओर देखें मोदी जी

सात सौ दिन बीत गये, ये दिन एक तरह से भविष्य की भूमिका की तरह से देखे जा सकते हैं/ अलबत्ता इन दीनो में जो कुछ भी हुआ उससे मोदी जी को अपनी ताक़त और कमज़ोरियों का भी पता चल गया होगा/ भारत की विदेशों में बेहतर  तस्वीर बनी, अंतरराष्ट्रीय फोरम मे भारत मोदी जी के कारण स्थापित हो गया, पाकिस्तान की हेकड़ी कम हुई, चाहबाहार का मामला सुलझा, दो दो बार सूखा के बावज़ूद माली हालत लड़खड़ाई नहीं हालाँकि महँगाई नहीं कम हुई, उल्टे बढ़ती ही गयी/ जीने के लिए ज़रूरी चीज़ें भी सर्वा सुलभ नही हो सके/ यद्यपि सरकार के शीर्ष पदों पर पारदर्शिता बढ़ी है और भ्रष्टाचार घटा है/ आती आत्मविश्वास के कारण मोदी की पार्टी दिल्ली चुनाव हार गयी थी, चुनावी जंग में प्रभावी रणनीति के नहीं होने वाला/ मोदी जी संसद के लिए नये थे/ वे संसदीय चौपड़ पर संख्यायों की किताबी चालें चलते है जबकि संसद में चालें सौदेबाज़ी के आधार पर चली जातीं हैं/  इसलिए संसद के अनुभवी खिलाड़ियों की चालों की काट समझने में उन्हे देश का पैसा और समय बर्बाद करना पड़ा/ यही मुश्किल अफ़सरशाही से व्यवहार के दौरान भी आई/ एक राज्य का मुख्य मंत्री दरअसल  तानाशाह हुआ करता है लेकिन केंद्र में उसे काबिनेट के साथ चलना होता है/ मोदी जी का विश्वस्तअफ़सर समूह कामों को करता तो है पर उस गति से नहीं जिस गति से वे चाहते हैं/ अफ़सरशाही मेधावी लोगों का समूह है पर वे कम को जल्दी निपटने के पक्ष मे नहीं होते/ उनकी सक्रियता में होने वाली देरी विपक्ष के लिए हथियार बन जाती है/  यही कारण है की सरकार को यह समझने में दो साल लग गये की बैंकों के क़ानून में भारी सुधार की ज़रूरत है/ उत्पादन क्षेत्र धीमी गति से चल रहा है और सरकार श्रम क़ानूनो मे बदलाव करना चाहती हैलेकिन  साहस  नहीं  कर पा रही है/ मोदी जिद्दी सुधारक नहीं है/ विकास की गति बेहद धीमी होने के कारण भी मोदी जी जानते हैं पर लाचार है/ अभी कुछ दिन पहले प्रधान मंत्री ने कई  योजनाओं का एलान किया और उसके लागू होने में आने वाली दिक्कटोंको भी वे समझते हैं पर जो सिस्टम उन्हे विरासत में मिला है उसे अचानक बदल देना संभव है क्या/ अब सरकार के पास बस टीन साल ही बचे है/ उनके मंत्री कुच्छ कर दिखाने के लिए जी जान से लगे हैं/ मेक इन इंडिया और स्वच्छभारत इत्यादि योजनाओं का सुपरिणाम जल्दी ही दिखने लगेगा/ सरकार यह नहीं समझ पा रही है की विधेयकों को पास कराने के लिए बहुमत नहीं थोड़ी सौदेबाज़ी और थोड़ी सादिच्छा की ज़रूरत है/ कांग्रेस साथ नहीं देती उसे किनारा करें और अन्या दलों से सहयोग लें/ समय कम है भविष्य की ओर देखना ज़रूरी है/

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