अभी पिछले अमरीका जो हुआ जिसे कुछ लोग आतंकवादी घटना कह रहे हैं और कुछ लोग नफरत का इज़हार बता रहे हैं/ अगार उस घटना का या उस तरह की अन्य घटनाओं का आपराधिक मनोवैज्ञानिक अध्ययन करें उससे प्राप्त निष्कर्ष को यदि ठीक से उपयोग में लाया जाय तो इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति , खास कर भारत जैसे संवेदनशील सामाजिक परिवेश में, रोका जा सकता है/ अमरीकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ 1966 से 2012 के बीच वहाँ सामूहिक नरसंहार 90 घटनाएं घटीं/ ऑर्लैंडो की घटना को अंजाम देने वाले अब्दुल मतीन से लेकर हसन खालिद तक के बयानों को अगर ध्यान से देखें तो उनमें कई ऐसे संकेत मिलेंगे जिससे भविष्य में ऐसे नर संहार रोके जा सकते है/ अपराध शाश्त्र के मुताबिक़ हर घटना का मनो विज्ञान अलग अलग है पर उनमे कुछ ना कुछ समानता है/ ये समानताएं लोगों की भीतर व्याप्त विशिष्ट मनोभावों को खतरनाक स्वरुप लेने से रोक सकती हैं/ पहली बात जिन लोगों ने इन घटनाओं को अंजाम दिया वे मुख्य तौर पर पुरुष थे/ वे 20 से 40 साल की उम्र सीमा के बीच थे और उनके सामने कई वर्षों से कई समस्याएँ पैदा हो रहीं थीं/ ये समस्यां आर्थिक , सामाजिक और भावनात्मक थीं/ ऐसे लोग तेज दिमागवाले होते हैं पर आत्मकेन्द्रित और अन्तर्मुखी होते हैं साथ ही बुरी तरह से भीत्ग्रस्त और घरेलू उत्पीडन के शिकार होते है/ ऐसे लोगों में एक खूबी होती है की वे समाज में घटित हो रही घटनाओं की नक़ल करने में दिलचस्पी लेते हैं/ बस यहीं से उनपर नकारात्मक प्रभाव पढ़ना आरभ हो जाता है/ ऐसा आदमी या नौजवान या बालक जब अनुशाशान्हीन्ता का प्रदर्शन करने लगता है और इस कारण से उसे स्कूल या किसी पद से हटाया जता है तो वह हिंसक होने लगता है/ स्थान उच्छेद के समय भी ऐसी ही प्रवृति जनम लेती है/ जिस समाज में बेरोजगारी , ड्रग और धार्मिक कट्टरवाद का चलन ज्यादा होता है उस समाज में इसका भय ज्यादा होता है/ सरकार या समाज सेवी संस्थाओं को खासकर पुलिस को ऐसी आच्रंगत स्तिथियों का विश्लेषण करते रहना चाहिए और प्राप्त आंकड़ों के आधार पर कदम उठाना चाहिए/ ऑर्लैंडो में जो हुआ वह या , कश्मीर में जो अक्सर होता है वह इसी मानसिकता का नतीजा है/ वैसे सभी लोगों की नफरत की शुरुआत ऐसी कथाओं से होती है जिसमें हिंसा के माध्यम से बदला लेने की बात कही गयी है/ आतंकवादी संगठन अक्सर ऐसी ही स्थितियों का लाभ उठाते हैं और इन्टरनेट या अन्य माध्याम से दूरदराज में अपने समर्थक तैयार कर लेते हैं/ उन्हें इससे मतलब नहीं है कि वे समर्थक उनके आदर्शों को पूरा करने में कितने सहाक हैं, उन्हें मतलब है की वे समर्थक आतंक फैलाने के उनके उद्देश्य को कितना पूरा करते हैं/
विश्व मानव के ह्रदय निर्द्वेष
मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का
कहता लड़ना नहीं समुदाय है
फैलती लपटें विषैली व्यक्तियों के सांस से
हर समाज में ऐसे समुदाय होते हैं जो अपराध प्रवण होते हैं और जो अपराध विमुख होते हैं/ लेकिन दोनों समुदायों में हिंसक विसंगतियां पैदा होती हैं/ हाँ दोनों समुदायों के हालात को अलग अलग विश्लेषित करने की जरूरत है/ कुछ समुदाय सफेदपोश होते हैं लेकिन आपराधिक वृति उनमे ज्यादा होती है और कुछ समुदायों का ये लोग हिंसा के लिए उपयोग करते हैं/ भारत में जहां इस प्रकार के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की सुविधा नाहीं है वहाँ यह पुलिस का कर्तव्य है की वह इस तरह के परिवर्तनों को रेखांकित करे और तदनुसार सुधार की व्यवस्था करे/ मनोभावों में बदलाव ही सारे अपराध की जड है/ भारत में जो वर्मान हालत हैं उसमें ऐसी घटना का भय ज्यादा है/ बम्बई और पठानकोट की घटना अभी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है/ भारत में जहां कई स्थितियों में हिंसा को जायज बताया गया है और जहां का भगौलिक वातावरण हिंसा को बढ़ावा देने वाला है वहाँ डर है कि सामाजिक संघर्ष और आतंकवाद को प्रोत्साहित करने के कारक पैदा हो जाएँ/ अभी से सचेत होना जरूरी है वरना नतीजा भयानक हो सकता है/ जंग केवल फ़ौज ही नहीं लडती समाज भी लड़ता है/
समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल ब्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध
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