शनिवार को खबर आयी कि जे एन यु में कन्हैया कुमार के भाषण के वक्त जो देश विरोधी नारे लगे वे सच थे/ देश यानी राष्ट्र और राष्ट्रीयता के बारे उन दिनों से एक लम्बी बहस चली आ रही है/ कुछ ज्ञान गुमानियों का कहना है की राष्ट्र की जो आधुन्की परिभाषा है वह अंग्रेजों की दें है/ उसके पहले राष्ट्र की कोई अवधारणा नहीं थी/ यहाँ यह बता देना जरूरी है कि राष्ट्र कोई छूकर या देख कर समझा जा सके/ यह एक भावना है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है/ एक जीवन शैली है और उसकी सरहदें हमारे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी हमारी जिंदगी/ यह एक आदर्श है कि लोग सरहदों को मिटा कर , संस्कृतियों को नजरंदाज कर एक कुटुंब की तरह जीवन व्यतीत करें/ भारतीय वांग्मय में कहा गया है कि “वसुधैव कुटुम्बकम/” पर पश्चिमी संस्कृतियाँ और मध्य पूर्व की संस्कृतियाँ इसे स्वीकार नहीं करतीं हैं/ वहाँ की संस्कृतियाँ गुलामी और उपनिवेशवाद को बढ़ावा देती हैं/ हमारी सबसे बड़ी कमी है कि हम अधिकाँश भरिय अछे लोग हैं/ हम चीजों को सही करने के लिए संघर्ष नहीं करना चाहते/ अछे लोगों की चुप्पी सबसे ज्यादा खराब होती है/ इस पूरी प्रक्रिया को समझाने के लिए इतिहास में थोड़ा पीछे जाना होगा/ ईस्ट इंडिया कंपनी तिजारत के लिए भारत आयी और अपने साथ ले आयी उपनिवेशवाद/ उसने बंगाल में पैर जमाये/ पलासी का युद्ध हुआ और बंगाल पर आधिपत्य हो गया/ कुछ लोग कह सकते हैं कि उससे क्या हुआ? बंगाल सबसे पहले पश्चिमी सिक्षा के संपर्क में आया इससे बंगाल को कई लाभ भी मिले/ अतएव अंग्रेजी शाशन से लाभ ही हुआ/ बेशक शिक्षा मिली पर यह भी मानसिक गुलामी का एक तंत्र विकसित हुआ/ अंग्रेजो की गलत नीतियों के कारण बंगाल में अकाल पडा और लाखों लोग मारे गए/ यह मानवजनित संकट था/ जिन कारणों से अकाल पडा वे कारण भी गुलाम बनाने के तरीकों में से एक था/ गाँव के गरीब लोगों का जीवन अंग्रेजो के लिए कोई मायने नहीं रखता था/ वे गरीब लोग जानवरों से भी बदतर जीवन जी रहे थे/ जिस सत्ता ने भारतियों को कुचला उसपर शासन किया उनके लिए भारतियों का कोई मोल नहीं था/ अंग्रेजो ने बड़ी चालाकी से भारतीय चेतना में एक दरार पैदा कर डी जिसने एक ऐसी आत्मछलना को जन्मा दिया जिसने परम्परावादी हिदुओं और नव्य हिदुओं को कुतरने लगी/ परम्परावादी खुद को यूरोप के विरुध्ध स्तापित करना चाहते थे और दूसरी और हिन्दू जो आधुनिकताकातर थे वे खुद को यूरोपियों से बढ़कर यूरोपीय साबित करने में लग गए/ हम यह नहीं सोच पाए कि जो हमें छल रहा है वह अत्याचारी है , सनकी है, इसका विरोध होना चाहिए/ हमारे देश में राष्ट्रवाद की भावना थोड़ी कमजोर है/ जो हमपर जुल्म करतें हैं हम उनका विरोध नहीं करते/ यही करान है कि राष्ट्रवाद एक हास्यास्पद शब्द बन गया है और कम्मुनिस्ट इसे हवा दे रहे हैं/ राष्ट्रवाद को अभिव्यक्त करने के स्पष्ट तरीकों के अभ्हाव में हम संकट के समय कपोतमति अपनाते हैं/ जब साप आता है तो कबूतर आँखें बंद कर लेता है और सझता है साप चला गया/ ठीक उसी तरह हममे से अधिकाँश लोग संकट के समय अपनी जान की परवाह करते हुए कोने में दुबक जाते हैं/ ये नहीं समझ पाते कल जान को भी ख़तरा हो जाएगा/ एक एन जी ओ के अध्ययन के मुताबिक “ अधिकाँश भारीयों से जब यह पूछा गया की अगर उनके समीप कोई आतंकी हमला होता है तो वे क्या करेंगे? 90 प्रतिशत लोगों का उत्तर था कि हम भाग जायेंगे/” यह सर्वे बेहद निराशा जनक है/ क्योंकि यह जवाब देने वाले लोग 19 से 32 वर्षों के नौजवान थे/ यही भारत का भविष्य है/ पलासी के युध्ध और बंगाल के अकाल से लेकर 15 अगस्त 1947 तक अंग्रेजों से लड़ते या उनकी नीतियों या उनके जुल्मोसितम के कारण जितने भारतीय मारे गए उसका अगर एक सतांश भी एक साथ अंग्रेजों पर पिल पड़ते तो सौ साल पहले वे भारत से भाग लिए होते/ यहाँ चुनाव हमें करना है कि हम अड़ जाएँ और जमकर मुकाबला करें या खुद को हालत के हवाले कर दें/ अगर खुद को हालत के हवाले करतें हैं तो उसकी जो कीमत चुकानी पड़ेगी उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है/ दोष कन्हैया जैसे लोगों का नहीं है वे तो हमारी कम्जोरिओं के कारण पनपते हैं/
Wednesday, June 15, 2016
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