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Wednesday, June 22, 2016

भारत को नयी रणनीति अपनानी चाहिये

बंगलादेश में इन दिनों गैर मुस्लिमो की या काजें वहाँ के अल्पसंख्यकों की खुलेआम ह्त्या का दौर शुरू हो गया है है/ इससे वहाँ भारी आतंक व्याप्त हो गया है/ जी लोगों को मारा जा रहा हैं हिन्दुओं के अलावा बौध्ध और इसाई भी हैं/ इसके कारण वहाँ अल्पसंख्यकों में भगदड मच गयी है / उनमें से अधिकाँश का रुख भारत की ओर है/ लिहाजा भारत में विशेषतः बंगाल में  शरणार्थियों और घुसपैठियों की संख्या तेजी से बढ़ने का ख़तरा हो गया है/ इसके पहले यहाँ और उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों में बंगलादेशी मुस्लिम आकर बस चुके हैं जो धीरे देश के लिए समस्या बनते जा रहे हैं/ हालांकि शरणार्थियों को शरण देना मानवीयता है पर मानवीयता का धर्म निबाहने के पूर्व भारत सरकार को इसके परिणामो के  बारे में सोचना होगा/ यह किसी से छुपा नहीं है कि कई दशक से बंगलादेश में अल्पसंख्यकों का कत्लेआम चल रहा है/ पकिस्तान के बर्बर सैनिकों से धर्मनिरपेक्ष मुक्ति वाहिनी के युद्ध के बाद 1971 में बंग्लाश आजाद हुआ/ उस समय जो संविधान बना वह धर्म निरपेक्ष यहा और बंगलादेश एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्रा था/ पर 1975 में तत्कालीन  नेता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रह्मान  की ह्त्या के बाद   वह देश इस्लामीकरण की रह पर चल पडा/ उसके संविधान में संशोधन कर उसे इस्लामी राष्ट्र घोषित कर दिया गया/ संविधान पर आस्था नहीं बल्कि अल्लाह पर आस्था की घोषणा की गयी/ अंततः 1988 में इस्लाम को बंगलादेश का राष्ट्रिय धर्म घोषित कर दिया गया/ इस बीच, जिन लोगों ने बंगलादेश मुक्ति संग्राम का विरोध किया था उन्हें समाज में वापस जगह मिल गयी/ इस्लामी देश बनाने के क्रम में धीरे धीरे वहाँ हिन्दुओं का सफाया होता गया/ 1947 के बाद के पूर्वी पाकिस्तान और 1971 के बाद से  आज के बंगलादेश में 1947 में जहां हिन्दुओं की आबादी 25 प्रतिशत थी वहाँ आज मात्र 10 प्रतिशत रह गयी है/ किसी ज़िंदा कौम की आबादी में 70 वर्षों  15 प्रतिशत की गिरावट ख़ुद में एक भयानक दास्ताँ बयान करती है/ इतिहास के इस आलोक में बंगलादेश में वर्तमान में अल्पसंख्यकों की ह्त्या पर भारत का द्रवित होना और यहाँ शरणागत के लिए दरवाजे खोलना  स्वाभाविक है/ परन्तु इसका पक्ष यह भी है की इस्लामी कट्टरपंथियों को अगर यह महसूस हुआ की भारत यहाँ से बाग़ रहे अल्पसंख्यकों को स्वीकार कर रहा है तो वे बंगलादेश को अल्पसंख्यक विहीन करने पर तुल जायेंगे/ वहां के कट्टरपंथियों का उद्देश्य सभी अल्पसंख्यक समुदाय और धर्म निरपेक्ष विचार वाले मुस्लिमों को खदेड़ना है/ वे इसे पकिस्तान से भी कट्टर स्वरुप देना चाहते हैं/ अगर ऐसा होता है तो क्षेत्रीय सुरक्षा के नजरिये से भारत के लिए एक बड़ा ख़तरा पैदा हो जाएगा/ ऐसे हालात में भारत के लिए यह जरूरी होगा की वह बंगलादेश में सत्तारूढ़ दोस्ताना रुखवाली आवामी लीग सरकार और संगथान को इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ पूरी मदद दे/ ताकि बंगलादेशी अल्पसंख्यकों की पूरी हिफाजत हो सके/ बंगलादेश में एक स्थायी औत धर्मानिरपेक्ष  विचारों वाली सरकार भारत के पक्ष में है/ इधर बंगलादेशी सरकार ने वहाँ कट्टरपंथियों की धरपकड़ शुरू कर डी है/ आशा है की वहाँ की जनता में कानून और व्यवस्था पर भरोसा लौटेगा/ इन सब तथ्यों के मद्देनजर  भारत सरकार को वहाँ के शरणार्थियों को स्वीकारने के लिए बहुत ज्यादा उतावलापन नहीं दिखाना चाहिए/ हकीकत तो यह है कि भारत सरकार ने 31 दिसंबार को या उससे पहले आये शर्णार्थियो को अनिश्चित काल तक भारत में रहने की सुविधा देने की घोषणा की है/ लेकिन उसे अतिशय सहानुभूति पूर्ण नहीं होना चाहिए और यह तो कभी प्रदर्शित नहीं करना चाहिए कि वह उन्हें स्वीकार्य है/ इसके विपरीत भारत सरकार को चाहिए की वह कट्टरपंथियों से मुकाबले में ढाका  को मदद करे/यही नहीं दिल्ली को ढाका पर दबाव देना चाहिए की वह राजनितिक तौर पर भी कट्टरपंथियों से निपटे/ जबकि प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजेद ने कभी भी खुलाम खुल्ला कतार्पंथी तत्वों को चेतावनी देती नहीं सुनी गयीं हैं उलटे उन्हें यह कहते सूना गया हया है की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना मानसिक विकृति है/ बँगला देश में कई बार ऐसा पाया गया है की राजनितिक लाभ के लिए नेता धर्म का सहारा लेते हैं और इसक जरिये विरोधियों का सफाया भी शामिल है/ एक अमरीकी समाज शास्त्री के शोध के मुताबिक़ जिन देशों में 20 प्रतिशत से ज्यादा है वहा मुस्लिम वृद्धिदर बहुत तेज है और धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है/ पकिस्तान और इंडोनेशिया के बाद भारत भारत में मुस्लिम आबादी का अनुपात सबसे ज्यादा है/ अगर भारत के पड़ोस में कट्टरपंथियों का वर्चस्व बढ़ रहा है तो वैसी स्थिति में बंगलादेश की स्तिथि का बारात पर क्या असर होगा यह सब जानते हैं/

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