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Wednesday, October 12, 2016

युद्ध का परिणाम अंतिम ध्वंस

युद्ध का परिणाम अन्तिम ध्वंस है !

ईश जानें, देश का लज्जा विषय
तत्त्व है कोई कि केवल आवरण
उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का
जो कि जलती आ रही चिरकाल से
स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी
नायकों के पेट में जठराग्नि-सी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र संघ से कहा है कि पाकिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवाद निर्यातक देश है। पाकिस्तान भी अक्सर भारत के कश्मीर में मानवाधिकार के हनन की बात करता रहता है। भारत भी बलोचिस्तान में मानवाधिकार के हनन का मसला उठाता है। दोनों तरफ से आरोप –प्रत्यारोप चल रहे हैं। इसे साबित करने के लिये खून खराबे हो रहें हैं, इंसानियत शर्मसार हो रही है पर कोई भी यह नहीं सोचता कि कुछ खामियां हममे भी हो सकती हैं। हम भारतीय और पाकिस्तानी मानसिकता में एक ही तरह के लोग हैं इतिहास के एक निर्मम क्षण में हम दोनों अलग हो गये। खून की लकीर खींच कर जमीन बांट दी गयी। पर इस नजरिये से सोचा नहीं जा रहा है।

लड़ना उसे पड़ता मगर।

औ' जीतने के बाद भी,

रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ;

वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में

विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता।

पिछले हफ्ते भारतीय वायु सेना ने अपना 84 वां स्थापना दिवस मनाया। इस जश्न में रॉयल एयर फोर्स की रेड एरो बटालियन भी शामिल हुई थी। दनिया की सबसे अच्छी वायु सेना में भारतीय वायु सेना का भी नाम लिया जाता है। इस सेना का दिलचस्प इतिहास है। आजादी के पहले जो लोग इस फौज में शामिल हुये थे, एयर मार्शल अर्जन सिंह भी उनमें एक थे, ये लागे जिस इलाके पर बम गिरा कर टार्गेट प्रैक्टिस करते थे ‘बागी आदिवासी इलाका’ कहा जाता था। आज वह पाकिस्तान का वजीरिस्तान और खैबर पख्तूनवा है। इन दिनों ‘जर्बे – अजब’ (पैगम्बर हजरत मोहम्मद की तलवार ) नाम का ऑपरेशन चला कर इस इलाके पर बमबारी कर रहा है। यह बात केवल पाकिस्तान की नहीं है भारतीय वायु सेना ने 1966 में एजल पर बमबारी की थी। अतएव इन दिनों जब मोदी जी ने पाकिस्तानी वायु सेना द्वारा अपनी ही जनता पर बमबारी या हवाई हमले की बात उठाई है और उन्होंने यह बिल्कुल सही काम किया है पर वे यह नहीं जानते कि उनकी वायुसेना ने भी अतीत में क्या किया है? इसका अर्थ है सरकार को हिंसा का एकाधिकार है। आज राष्ट्र –राज्य की जो अवधारणा है उसमें सरकार को ही हिंसा का या कहें अपनी जनता के खिलाफ या अन्य के खिलाफ ताकत का उपयोग करने की आजादी है। खासकर जब वह अपनी ही जनता पर शक्ति का उपयोग करती है तो बाहर से यानी किसी विदेशी देश से उसमें हस्तक्षेप नहीं होता। बेशक कुछ मामलों में उसकी निंदा कर दी जाती है। कई बार इतिहास पढ़ने पर हैरत होती है कि अगर नाजियों के अत्याचार के विरुद्ध दुनिया ने हस्तक्षेप किया होता तो क्या वह पोलैंड पर हमला कर सकता था? उस समय ब्रिटेन , अमरीका और फ्रांस ने केवल आलोचना की थी। क्या उस समय दुनिया ने मानवाधिकार की रक्षा के नाम पर नाजी हुकूमत को उलटने की बात सोचा था। नहीं।  नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया विश्वयुद्ध की आग में झुलसने लगी और अस विश्वयुद्ध की शुरुआत जर्मनी ने की थी।

युद्ध को पहचानते सब लोग हैं,

जानते हैं, युद्ध का परिणाम अन्तिम ध्वंस है!

 बहुत पुरानी बात नहीं है। वियतनाम के हाथों पतन के बाद भी अमरीका और राष्ट्र संघ ने ख्मेर रुज का समर्थन करना बंद नहीं किया था। पोल पोट के काल में यहांजो सामूहिक हत्याएं हुईं थीं उन्हें नजर अंदाज कर दिया गया था। ख्मेर रुज एक कम्युनिस्ट तानाशाही था जिसे जिसे कम्युनिस्ट वियतनाम ने पलट दिया और उसे रूस का समर्थन हासिल था। इसका मुख्य मददगार चीन था और पूंजीवादी अमरीका उसे समर्थन दे रहा था। हम इतिहास भूल जाते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध लगभग 80 हजार भारतीय सैनिक मारे गये ो। बंगाल के अकाल में लाखों लोग मरे थे। फिर भी हम नहीं बदले। जापान की कैद में भारतीय सैनिकों पर जापानियों के सितम की गाथ तो सबने पढ़ी पर कोहिमा और इम्फाल से भागते हुये एक जापानी सैनिक डायरी को कहां प्रचारित किया गया जिसमें उसने लिखा था कि ‘लगभग अपाहिज जापानी युद्धबंदियों की सेवा करते उसने भारतीय सैनिकों को देखा।’ जो लोग पाकिस्तान से युद्ध की बात कर रहे हें उन्हें यह समझना चाहिये, पर शायद ही वे समझें। सोशल मीडिया पर चीन का वहिष्कार करने की बात करने वाले शायद यह नहीं समझते कि ये चीनी लोग वही हैं जो सास्कृतिक क्रांति में शासन के शिकार हुये थे, ये जनता वही है जो थ्येन एन मान चौक पर गोलियों से भून दी गयी थी। हम इतिहास को भूल जाते हैं। हम आजादी के दौरान बंटवारे को भूल जाते हैं यही हाल पाकिस्तान के साथ भी है। दोनों नहीं समझ पा रहे हैं कि जंग से क्या हासिल होगा।शासन हमारी इस स्थिति का फायदा उठाता है। युद्ध ना हो यही कल्याणकारी है। जो ललकार पाकिस्तान की हुकूमत को सुनायी जा रही है उसके पीछे की पीड़ा को अगर वहां की जनता को सुनाने की कोशिश की जाय तो जनकल्याण ज्यादा होगा।

विश्वमानव के ह्रदय निर्द्वेश में

मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का

चाहता लड़ना नहीं समुदाय है

फैलती लपटें विषैली व्यक्तियों की सांस से

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