पाक में एक और तख्तापलट की सुगबुगाहट
हाल में टाइम्स अखबार में सिरिल अलमिडा के एक लेख में पाकिस्तान में सेना और राजनीतिक नेतृत्व में भारी तीखेपन का खुलासा हुआ है। उसमें कहा गया है कि ‘ सरकार ने सेना को चेताया है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने के कारण दुनिया में उसे बिरादरी बाहर किया जा रहा है। ’ पाकिस्तान के पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ ने यहां तक कहा है कि जब भी आतंकी शिविरों या आतंकी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाती है तो आई एस आई उनके बचाव में आ जाती है। लेख में तो यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान में इस मसले को लेकर कई बार पंजाब के मुख्य मंत्री और आई एस आई प्रमुख में कहासुनी भी हो गयी है। यहां बताना उचित होगा कि शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई हैं। पाकिस्तान के विदेश सचिव ऐजाज चौधरी ने एक मीटिंग में कहा कि चीन सहित कई देशों ने पाकिस्तान से कहा है कि वह हाफिज सईद, मसूद अजहर, लश्करे तैयबा , जैशे मोहममद और हक्कानी ग्रुप इत्यादि पर कार्रवाई करे तथा पठान कोट हमले की जांच पूरी कर ले। लेकिन दूसरी तरफ वहां की फौज जो खुद को देश का रक्षक बताती है वह इससे गुरेज कर रही है। सेना पाकिस्तान पर एक तरह से विगत 33 सालों से शासन कर रही है। पाकिस्तानी फौज के प्रमुख अबी भी देश के सबसे ताकतवर इंसान हैं और सेना ही वास्तविक शासक है। पाकिस्तान में जो बी राजनीतिक नेता सेना से इत्तफाक नहीं रखता है उसे खत्म कर दिया जाता है या उसका तख्ता पलट दिया जाता है। जुल्फीकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो की मिसाल सामने है। नवाज शरीफ का तख्ता उनके पहले कार्यकाल में पलट दिया गया था। नवाज शरीफ ने ही जनरल राहील शरीफ को सेना प्रमुख बनाया। हालांकि राहील शरीफ ने उनका तख्ता नहीं पलटा लेकिन विदेशी मामलो सहित भारत , अफगानिस्तान और अमरीका जैसे देशों के मामलात अपने हाथ में ले लिया है। उसमे नवाज शरीफ या उनकी सरकार की कुछ नहीं चलती। पाकिस्तानी फौज ने वजीरिस्तान में आतंकियों के खिलाफ जर्बे अज्ब अभियान चलाया। नवाज शरीफ इस अबियान के पक्ष में नहीं थे। क्योकि वे आतंकियों से वार्ता का वायदा करके ही गद्दी पर पहुंचे थे। हलांकि सेना ने उस अभियान में केवल ‘शैतान आतंकियों ’ को ही मारा ‘साधु आतंकी बचे रह गये। ’ सेना के नियंत्रण वाला एक और संगठन आई एस आई भारत के खिलाफ एक हल्का फुल्का युद्ध आरंभ कर चुका है। जिन आतंकी संगठनों और नेताओं से उसका अच्छा संबंध है वह सब ‘साधु आतंकी ’ कहे जाते हैं। दुनिया में जितनी आतंकी घटनाएं होती हैं सबसे परोक्ष या प्रत्यक्ष सम्बंधह पाकिस्तान का होता है। सार्क सममेलन का टल जाना बी पाकिस्तान की प्रतिष्ठा पर आघत पहुचाया है। इसके बाद कश्मीर पर अपने देश की स्थिति बताने तथा उस जानकारी पर दुनिया को यकीन दिलाने के लिये पाकिस्तान ने अपने 22 सांसदों को बिबिनन देशों में भेजा है। उन देशो के नेताओं में से कुछ ने तो बस कूटनीतिक चुपपी सादा रही और कुछ देशों ने प्रतिगामी प्रतिक्रियायें दीं। पाकिस्तान सरकार का यह भी कहना है कि इन देशों में से किसी ने भी बारत के सर्जिकल हमले को गलत नहीं बताया। रूस के राहष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतीन और अमरीकी सीनेट के एक सदस्य ने तो खुल्लम खुल्ला भारतीय कार्रवाई का समर्थन किया। पाकिस्तान को मुस्लिम देशों से सदा समर्थन मिलता रहा है पर इस बार किसी मुस्लिम मुल्क ने पाकिस्तान के समर्थन में बयान नहीं दिया। उल्टे सऊदी अरब ने अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज’ इस बार मोदी जी को दिया और यही नहीं अबू दाबी के युवराज के शेख मुहममद बिन जायेद अल नहयान इस बार गणतंत्र दिवस समारोह मुख्य अतिथि होंगे। वर्तमान सेनाध्यक्ष राहील शरीफ इस साल नवम्बर में रिटायर कर रहे हैं। सरकार को सेनाध्यक्ष चुनना होगा। विश्लेषकों का मत है कि यही अवसर है जब सरकार आई एस आई पर दबाव दे सकती है कि वह आतंकियों को मदद देना बंद करे। अब डर है कि सर्जिकल स्ट्राइक का बदला लेने के लिये पाकिस्ताननी आतंकी बारत में खास कर कश्मीर में कोई बड़ी कार्रवाई कर सकते हैं। इसी आशंका के कारण पाकिस्तान सरकार चाहती है कि आतंकियों को काबू में रखा जाय। इधर पाकिस्तान की सेना भारत पर हमला नहीं कर सकती है अब एक ही रास्ता बचता है कि सेनाध्यक्ष राहील शरीफ प्रधानमंत्री पर दबाव डालें कि वह उनका कार्यकाल बढ़ा दें। अगर नवाज शरीफ उनकी बात नहीं मानते हैं तो एक और तख्ता पलट की प्रबल संभावना है।
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