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Sunday, October 30, 2016

गहरी साजिश की अाशंका

गहरी साजिश की आशंका  

शनिवार को  जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने देश के समग्र राजनितिक और सामाजिक वातावरण पर बात करते हुए शंका जाहिर की कि चारों तरफ एक गंभीर षड्यंत्र चल रहा है लोगों को भ्रमित करने का उन्हें डराने का / अगर आप अपने चारो तरफ के हालात का जायजा लें तो महसूस होगा की बात में सच्चाई है/ जिस तरह से इन दिनों गो हत्या विरोध साथ ही गोरक्ष्कों को आतंकी कहने के बयान, सर्जिकल स्ट्राइक , एल ओ सी के आर पार गोलीबारी, सोशल मिडिया पर घायल  सैनिकों की या मृत सैनिकों की तस्वीर और लोगों से जय हिन्द कहने की अपील परमाणु युध का बनावटी  डर , तीन तलाक का मसला और हिन्दू धर्म फे बारे में कोर्ट का फैसला / यह सब मिलजुल कर  निहायत भ्रामक वातावरण बना कर देशवासियों के मन में भय पैदा कर रहा है/ देश के सबसे बड़े प्रान्त उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं/ उसके पहले सांप्रदायिक ताकतों को हवा देने के प्रयास को भी उसी कड़ी में गिना जा सकता है/  राजनीतिज्ञ क्या सोचते हैं पर समाज में डर  और जोखिम की मनोवैज्ञानिक अवधारणा को अगर देखें तो पता चलेगा कि एक निहित स्वार्थ के कारण यह सब फैलाया जा रहा है/ विख्यात सामाजिक मनोविज्ञानी अम्बोर्स पिअर्से ने अपनी पुस्तक “ डेविल्स डिक्शनरी “ में लिखा है कि “ मष्तिष्क तो केवल आर्गन है जो सोचता है तो हमें लगता है की हम सोच रहे हैं/ हमारा जो भी फैसला होता है वह हमारी भावनाओं और अचेतन में मौजूद दलीलों के आधार पर होता है/  सबकी पृष्ठभूमि में कायम रहने की जद्दोजहद होती है/ जबसे हम बचपन में होश संभलते  हैं तबसे  मरने के दिन तक हमारी कोशिश कायम रहने की होती है , न कि आई  ए एस अफसर बनाने की या वैज्ञानिक बनाने की या फिर बड़ा बनाने की/ ये सब तो उस कायम रहने की कोशिशें हैं/ “  अतएव हम खतरे के संकेतों को भांपते रहते हैं और आनन फानन में उन्हें या जोखिम को भांप लेते हैं/ हम सभी “ वास्तविकताओं “ को समझने में देर नहीं करते और इसके लिए कई तरह के मानसिक शार्टकट अपनाते हैं/ हमहरे अवचेतन में जो चीजें जितनी ज्यादा होंगी हम उस के प्रति हर खतरे को तत्काल भांप लेंगे/ मसलन आपके पास दौलत है और आप उसे बहुत शिद्दत से चाहते हैं तो आपको हर खतरा उसी के प्रति दिखेगा/ समाज वज्ञानिक पॉल  स्लोवाक के इकोनोमिस्ट पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक मुताबिक “ अवचेतन में व्याप्त चाह मनुष्य की हर समस्या पर हावी दिखती है/ भारत में इन दिनों हिन्दू आबादी  के अवचेतन में अन्य सम्प्रदाय के प्रति खतरा व्याप्त है और वह हर बात को उसी फ्रेम में देखता है/” यह भाव दुश्चिंता को न केवल बढ़ा देता है बल्कि अंतर व्यक्तिक संपर्क से उसका प्रसार भी करता है/ उदाहरण के लिए देखें “ सरकार कहती है की समस्या काबू में हैं और रहत महसूस करने लगते हैं जब कि समस्या वहीं है जहां थी/ भारत में आज करोड़ों लोग इसके शिकार हैं/ सोशल मीडिया में इन दिनों एक बात चल रही है है “ हम कैसे मनाएं दिवाली क्योंकि पटाखों की बारूद चीन की बनी है जहाँ की गोलियां हमारे जवानों पर चलती हैं/” इसमें कितना सच है यह कोई नहीं जनता पर बाजार में चीन विरोधी वातावरण तो बन ही गया है/ पिछले महीने पिऊ रिसर्च के निष्कर्ष में कहा गया था कि चार में से तीन भरिय कहते हैं कि अर्थ व्यवस्था अच्छी है या खराब है पर किसी के पास कोई तार्किक कारण नहीं है/ हालाँकि देश की 45 प्रतिशत आबादी को ठीक से दो जून का भोजन नहीं मिलता है/ हमारे पास भीति की एक भावना है जिसका उपयोग राजनीतिज्ञ  करते हैं/ भय अच्छी बात है और यह इंसान के भीतर होना चाहिए पर स्वर्थी तत्वों द्वारा इसका दुरूपयोग नहीं  होना चाहिए/

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