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Thursday, October 6, 2016

भारत के लिए एक नयी भूमिका

भारत के लिये एक नयी भूमिका

हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने हथियारों के निर्यात पर पाबंदियां लगा दी हैं तबसे कोई सामूहिक विनाश के शस्त्रों और सरकारों से इतर हिंसा करने वाले समुदायों (नन स्टेट एक्टर्स) उतने विस्तार से नही उठा रहा है जितने विस्तार से 2004 में राष्ट्र संघ सुरक्षा पीरषद में प्रस्तुत संकल्प संख्या 1540 में उठाया गया था। संकल्प या प्रस्ताव पर भारत ने आरंभ में क्षोभ जाहिर किया पर बाद में उसने आपत्तियां उठानी छोड़ दीं। जबकि भारत अक्सर आतंकवाद का शिकार होता आया है। इसके बाद से भारत ने संकल्प 1540 के निर्देशों या व्यक्त विचारों को मजबूती से पालन करने में जुट गया। उसने सामूहिक विनाश के शस्त्र से जुड़े राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद प्रस्ताव के  अधिनियम 1540 (वर्ष 2005) को लागू करने की तरफ भी कदम बढ़ाया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत एक ऐसी जिम्मेदार शक्ति के रूप में दुनिया के सामने प्रतिष्ठित होने लगा जो विश्व में शांति तथा सुरक्षा के लिये प्रयत्नशील हो। यद्यपि भारत ने वैश्विक अप्रसार काल के अलगाव के साये से निकलना आरंभ कर दिया है पर इसे प्रासंगिक निर्यात नियंत्रण काल से जुड़ने में वक्त लगेगा और इसे एक लम्बा सफर तय करना होगा। राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1540 के उद्देश्य भारत के अप्रसार उद्देश्यों और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा हितों से मेल खाते हैं। यह भारत को एक अवसर प्रदान कर रहा है जिससे भारत एक जिम्मेदार और प्रभावशाली वैश्विक शक्ति के रूप में खुद को  स्थापित कर सके। अपनी छवि को और उज्ज्वल करने के लिये भारत को अपने तकनीकी ज्ञान और अधिनियम 1540 के प्रवाधानों के जरिये स्वयं को परमाणु अप्रसार के क्षेत्र में नेतृत्व करने का प्रयास करना चाहिये। यहि नहीं तकनीकी ज्ञान को  प्राप्त कर चुके राष्ट्रों  और वंचित देशों के बाच जो एक खास किस्म का विभाजन है उस खाई को पाटने का भी​ प्रयास करना चाहिये। इस बारीक राह पर चल कर भारत राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद संकल्प 1540 को आगे बढ़ाने के लिये ख्याति प्राप्त कर लेगा और साथ ही परमाणु अप्रसार को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे अपनी परमाणु ताकत या हथियारों की धौंस दिखाने वाले राष्ट्र अपने आप पस्त हो जायेंगे। इस मामले में भारत को दक्षिण एशिया में अपने निकटतम पड़ोसी की ओर ध्यान देना चाहिये। भारत अक्सर आतंकवाद का शिकार होता रहा है। उन  आतंकवादियों का अड्डा या पनाहगाह  परमाणु हथियारों के जखीरे रखने वाले सनकी देश  पाकिस्तान में है। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा है। खतरा तब और बढ़ जाता है जब यह डर हाता है कि कहीं सामूहिक विनाश के हथियार आतंकियों के हाथ न लग जाएं। भारत को हर हाल में सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तानी शस्त्रागार में रखे वे सामूहिक विनाश के शस्त्र उन आतंकियों के हाथ ना लग जाएं। भारत को इसके लिये राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद के अधिनियम 1540 की कमिटी से जुड़ने की कोशिश करनी चाहिये साथ ही एशिया और प्रशांत क्षेत्र में निरस्त्रीकरण एवं शाति से सम्बद्ध राष्ट्रसंघ सी समिति को भी अपने साथ लेकर चलना चाहिये। जिससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बल मिलेगा। इस बार तो सार्क की बैठक रद्द हो गयी पर इसके सदुपयोग हो सकता है। कई विश्लेषक इसमें हजार कमियां ढूंढते हैं इसके बावजूद इसे एक निरपेक्ष और निर्गुट तंत्र की तरह उपयोग में लाया जा सकत है। ऐसा पहले हुआ है परंतु वर्तमान में दक्षिण एशिया की भू राजनैतिक या कहें क्षेत्रीय स्थितियों को देखते हुये ऐसा तत्काल होना थोड़ा कठिन लगता है। अधिक व्यापक सफलता के लिये भारत को दूसरी तरफ भी देखना होगा। खासकर अफ्रीकी देशों के बढ़ते अनुरोधों पर भी सोचना होगा। भारत का उस क्षेत्र से अतीत में निकट सम्पर्क रहा है और इसके कारण वह सहायता में उसे प्राथमिकता दे सकता है। इस संदर्भ में 2020 में  भारत –अफ्रीका फोरम की बैठक  के कार्यक्रम में भारत महाविनाश के शस्त्रों पर विचार को शामिल कर सकता है और दोनो के बीच सहयोग के लिये काई उपाय कर सकता है। तदर्थ रूप में फिलहाल महाविनाश के शस्त्र के लिये जो कार्यक्रम है उसे ही अपनाया जा सकता है। भारत की यह कोशिश सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिये उसके दावे को बल प्रदान कर सकती है। इन पहलों को या उपायों को अपना कर भारत विकसित देशों की सुरक्षा में भागीदार होने का गौरव प्राप्त कर सकता है जो उसके लिये एक नयी भूमिका होगी। यह नयी भू​मिका पाकिस्तान की सारी शैतानियत की हवा निकाल देगी और भारत को एक गोली भी नहीं चलानी होगी।

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