महाशक्तियां मोदी को कम कर के ना आंकें
ब्रिक्स का शोर थम गया और इसी के साथ एक नयी फुसफुसाहट चारों तरफ सुनी जा रही है कि ‘क्या मोदी जी आतंकवाद और पाकिस्तान पर कुछ ज्यादा नहीं बोल गये? क्या मोदी जी का पाकिस्तान पर इस तरह हमला हानिकारक होगा? क्या यह नही दिखाता है कि भारत की अपेत्र्क्षाएं बहुत ज्यादा है और वह अपने छोटे पड़ोसियों को सताना चाहता है? ’ इसके निष्पक्ष उत्तर की जरूरत है। निष्पक्ष इसलिये कि मोदी जी की हर बात एक तरह से प्रिज्म से गुजरती है। बाहर निकलते ही देश के राजनीतिक दलों द्वारा उसके कई अर्थ निकाले जाने लगते हैं। अपने देश में विदेश नीति के मामले में इन दिनो कूटनीति और सुरक्षा के परीक्षित सिद्धातों को सियासत के कारण ताक पर रख दिया जा रहा है। अपी बातों में पाकिस्तान का नाम लिये बगैमोदी जी ने ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान को ‘खास जजीरा या आधार पोत’ कहा। उन्होंने कहा कि दुनिया भर का आतंकवाद इस आधार पोत से जुड़ा है। उनहोंने कहा कि पाकिस्तान ऐसे विचारों का सम्पोषण करता है जिससे समझा जा सके कि राजनीतिक हित के लिये आतंकवाद जरूरी है। चूकि माहेदी जी ने यह बात ब्रिक्स के प्रतिबंधित सत्र में कही इस लिये इसके लिखित बयान कहीं जर्वजनिक नहीं किये जा सके लेकिन क्या कहा गया इसे बताने के लिये नेताओं पर पाबंदी नहीं थी। मोदी जी ने अपने भाषण के दौरान पाकिस्तान को अलग थलग करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि आतंकवाद पाकिस्तान का ‘दुलरुवा’ औलाद है। और यह औलाद मां बाप के चरित्र का भी बयान करता है। इसी के साथ मोदी जी ने पाकिस्तान का नाम लिये बगैर बताया कि वह कैसे हर वक्त हमारे काम काज में दखल देता है। इसके पहले देश के किसी प्रदानमंत्री ने दुनिया के सामने पाकिस्तान पर इतने प्रहार नहीं किये थे जितने मोदी जी ने गोवा में 16 अक्टूबर को किये। हालांकि उन्होंने इसे दुनिया भर के लिये कहा पर निशाना पाकिस्तान ही था। उन्होंने साफ कहा कि आतंकवाद का पोषण करने वालों को यह समझ लेना चाहिये कि वह अपनी हरकत से बाज आ जाये वरना सभ्य दुनिया में वह अलग थलग कर दिया जायेगा। अब इसमें समस्या यह है कि इतनी बड़ी बड़ी बातें हुईं और सब देशों ने सैद्धांतिक रूप से इसे माना भी लेकिन यहां भी वही चीज दिखी कि जहां महाशक्तयों का हित जुड़ा था वहां केवल सबकुछ छिछले तौर पर कहा सुना गया। ब्रिक्स में ही देखें, उसमें जो घोषणापत्र जारी हुआ उस पत्र में आतंकवाद पर पांच पैराग्राफ हैं पर कहीं भी किसी देश का नाम नहीं है। यहां तक कि परोक्ष तौर भी कुछ नहीं कहा गया है। पाकिस्तान पर निशाना साधने के लिये या कहिये कि मोदी जी पर मरहम लगाने के लिये घोषणा पत्र में यह तो कहा गया है कि आतंकवादथ् केखिलाफ सबको एकजुट होना चाहिये और हर देश को अपनी रक्षा के लिये आतंकवादियों या उनके अड्डों पर हमला करना कर्त्तव्य है। पर इससे यह कहीं नहीं जाहिर होता है कि मोदी जी ने ो किया वह जायज था या उनकी कार्रवाई का किसी ने किसी रूप में समर्थन किया हो अथवा उचित बताया हो। ब्रिक्स के अंत में मोदी जी ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में भी कहा कि , जो देश आतंकवाद को समर्थन देते हैं या उसका उसका पोषण करते हैं वे भी हमारे लिये उतने ही घातक हैं जितने खुद आतंकवादी। मोदी जी ने जो कहा वह यकीनन पाकिस्तान को ही लक्ष्य करके कहा पर यह सब किसी औपचारिक घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बन सका। लेकिन यही जरूरी था। अतएव पाकिस्तान को अलग थलग करने की गोवा में मोदी की सारी कोशिशें व्यर्थ हो गयीं। उड़ी हमले के बाद भारत को यह दुनिया को बताना होगा कि आतंकवाद के मामले में हरबार पाकिस्तान का नाम लेना जरूरी नहीं है। यह तो दुनिया ने समझ लिया है। सच भी है कि 1990 के बाद ने पाकिस्तान के खिलाफ कभी फौज का उपयोग नहीं किया। बेशक कुछ गोपनीय कार्रवाई की गयी। इसबार जो हुआड उससे बौद्धिक समुदाय को यह समझ लेना चाहिये कि पाकिस्तान हरवक्त जो बोलता रहता है कि सेना के प्रयोग से युद्ध भड़क उठेगा , यह गलत है। ब्रिक्स सम्मेलन में जहां चीनी प्रधानमंत्री भी उपस्थित थे, मोदी को अवसर मिल गया यह बहताने का कि पाकिस्तान के मामले में भारत की नीति बदल चुकी है। हालांकि भारत को यह उम्मीद नहीं है कि ब्रिक्स देशों के नेता इसमें कोई मदद करेंगे पर कूटनीति में यह जरूरी होता है कि महाशक्तियां खास कर चीन और रूस अच्छी तरह समझ लें कि अगर वह देश अपना रवैया नहीं बदलेगा तो भारत छोड़ेगा नहीं। इससे हो सकता है वे महाशक्तियां पाकिस्तान को सलाह दे कि रास्ता बदल दो। अब जरूरी है कि मोदी पाकिस्तान पाकिस्तान चिल्लाना बंद करें और महाशक्तियों को बतायें कि वे पाकिस्तान पर दबाव डालें कि ताकि वह अपना रवैया बदल दे। चीन के विदेश मंत्री या राष्ट्रपति का यह कहना असरदार नहीं होगा कि ‘आतंकवाद के कारण पाकिस्तान ने बहुत कुर्बानियाहं दी हैं।’ जरूरी है कि इस विचार को बदला जाय। भारत का हमला आतंकवादी संगठनों पर हुआ था और यह पाकिस्तान राष्ट्र के लिये कुर्बानी कहना तो आतंकवाद का समर्थन करने की तरह है।
0 comments:
Post a Comment