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Friday, October 28, 2016

यू पी में झगड़ा भारी

यूपी में झगड़ा भारी

उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यंत्री अखिलेश सिंह यादव ने राज्यपाल से भेंट कर सरकार के कामकाज की जानकारी दी। उसके पहले  यानी मंगलवार को उन्होंने बिहार के एक मंत्री से टेलीफोन पर कहा कि ‘यदि अभी सफाई नहीं होगी तो बहुत देर हो चुकी होगी। ’ दूसरी तरफ सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने मंगलवार को ही कहा कि ‘तमाम मतभेदों के बावजूद हम एक हैं। ’ पार्टी के अंदरूनी झगड़े के सोमवार को चौराहे पर आ जाने के सार्वजनिक प्रभाव को बचाने का मुलायम सिंह का यह प्रयास कहा जा सकता है। पर इसके साथ यह भी प्रतीत होता है कि हर मतभेद के बावजूद मुलायम और अखिलेश का एक दूसरे के बिना नहीं चल सकता है। देश भर में समाजवादी पार्टी में विभाजन की अटकलों का बाजार गर्म है। मंगलवार को इनहीं अटकलों पर धूल डालने के लिये मुलायम सिंह ने एक विशेष प्रेस कांफ्रेंस की और बताया कि हम सबी एकजुट हैं। उधर भीतर ही बीतर इस मतभेद को मिटाने के प्रयास चल रहे हैं। इसका कारण यह है कि बाप और बेटा दोनों यह समझते हैं कि अगर वे पार्टी को तोड़ते हैं और अलग- अलग विधान सभा चुनाव लड़ते हैं तो उनकी हैसियत खत्म हो जायेगी। पार्टी का वजूद घट जायेगा। ऐसी स्थिति में अखिलेश चाहते हैं कि 35 वर्ष से चली आ रही यह पार्टी अभी भी चलती रहे और मुलायम चाहते हैं कि अखिलेश मुख्यमंत्री रहें। अखिलेश प्रांत में पार्टी के स्वरूप के बिमब हैं और पार्टी की इमेज के क्षरण के बावजूद अखिलेश की छवि को कोई असर नहीं पहुचा है। वे प्रदेश के नौजवानों तथा महिलाओं के बाच उसी तरह लोकप्रिय हैं जैसे पहले थे। लोग अखिलेश को एक अच्छा नेता समझते हैं जो प्रदेश का विकास चाहता है पर लोगों के दिमाग में यह बात बैठ गयी है कि शिवपाल सिंह यादव तथा पिता मुलायम सिंह यादव की लगातार टोका टाकी से वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं। अखिलेश का मान जनता में इसलिये और बढ़ गया कि वे खुल्लम खुल्ला अपने चाचा शिवपाल सिंह का विरोदा कर रहे थे और इस राह में रोड़े अटकाने के लिये उनहोंने अपने पिता तक को नहीं छोड़ा। लेकिन चाहे जितना मतभेद हो अखिलेश अकेले चलन का फैसला नहीं कर सकते हैं क्योंकि चुनाव लड़ने के लिये उनहें पार्टी का खास कर जमी जमाई पार्टी -समाजवादी पार्टी -  का बैनर चाहिये और सादा ही पार्टी की चुस्त दुरुस्त मशीनरी। उधर मुलायम और शिवपाल सिंह यादव इस पार्टी के संस्थापकों में से हैं और अबी बी पार्टी पर उनकी अच्छी पकड़ है। बेशक अखिलेश सिंह को अच्छा समर्थन हासिल है पर पार्टी की लगाम अभी मुलायम तथा शिवपाल के हाथों में है। क्योंकि पिछले चुनाव का टिकट उन्होंने ही बांटा था। इसी लिये अखिलेश बेचैन हैं कि इस बार टिकट बंटवारे में उनकी बात ज्यादा चले। लेकिन इस झगड़े का चरित्र देख कर महसूस होता है कि पार्टी की विरासत हासिल करने की यह रस्साकशी है। चाहे जो हो मुलायम फिलहाल लगाम छोड़ने के मूड में नहीं दिखते हैं। यही कारण है कि उन्होंने सोमवार को भी सभा में अखिलेश सिंह को झिड़का और भाई शिवपाल सिंह की तरफदारी की। मुलायम सिंह की बात से यह भी लगता है कि वे अखिलेश सिंह के भीतर कायम यह मुगालता भी खत्म कर देना चाहते हैं कि उन्हें नौजवानों का समर्थन हासिल है। मुलायम ने सोमवार को कहा था कि ‘कोई उन्हें कमजोर ना समझें और इस भ्रम में ना रहे कि नौजवान उनके साथ नहीं हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में कई नौजवान नेताओं को टिकट दिये थे। ’ सियासत में बेहद पटु और संगठन की चातुरी के बेहतरीन खिलाड़ी मुलायम सिंह नहीं चाहेंगे कि पार्टी के लगाम उनके हाथ से निकल जाये। लेकिन सबके बावजूद ,मुलायम यह भी नहीं चाहेगे कि अखिलेश पार्टी से बाहर निकल जायें क्योंकि स्वास्थ्य और बीमारी के बारे में कोई कह सकता है और मुलायम सिंह की उम्र हो गयी। इसलिये उन्होंने झंडा तो अखिलेश को सौंप दिया परपार्टी चलाने के लम्बे अनुभव के कारण वे शिवपाल सिंह को भी नहीं छोड़ सकते हैं। यही कारण है कि उनहोंने घोषणा की कि वे अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटायेंगे नहीं पर साथ ही साथ उन्होंने चेतावनी दी कि अखिलेश सही राह पर चलें।  उधर अखिलेश सिंह यादव ने स्पष्ट खंडन किया है कि वे पार्टी में विखंडन चाहते हैं। फिर भी जो हो चुका उसे मिटाया नहीं जा सकता हां जो कटुता आगयी है उसे खत्म करना आसान नहीं है। 

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