युद्ध को चीन की धरती पर ले जाना जरूरी
अब से हजारों वर्ष पहले महाभारत का युद्ध हुआ था और उसमें कितनी जान हानि हुई थी इसके बारे में कोई गिनती नहीं है बस उस दिन से युद्ध हमारा गौरव का विषय हो गया। हमारे नेता हमारे सैनिकों को सीमा पर भेज के शहीद करते हैं और इसे देश की शान तथा लज्जा से जोड़ देते हैं।
जो आप तो लड़ता नहीं
कटवा किशोरों को मगर
आश्वस्त होकर सोचता है
शोणित बहा , लेकिन,
गई बच लाज सारे देश की
और तब सम्मान से जाते गिने
नाम उनके, देशमुख की लालिमा
है बची जिनके लुटे सिंदूर से
देश की इज्जत बचाने के लिए
या चढ़ा दिए जिसने निज लाल हैं
आज भारत का याद आ रहा है। लेकिन तब के युद्ध में और आज के युद्ध में बहुत बड़ा अंतर है। पिछले दिनों भारतीय सेना और चीन की सेना में पूर्वी लद्दाख में झड़प हो गई। हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए। इसके बाद कूटनीतिक एवं सैन्य स्तरीय वार्ताएं चली और दोनों पक्ष उस इलाके से पीछे हटने पर सहमत हो गए। पर, चीन ने उस सहमति का सम्मान नहीं किया और बड़ी संख्या में उसकी फौज वहां कायम रही। ऐसे हालात में मीडिया को एक व्यवस्थित तरीके से उस क्षेत्र के कथानक मुहैया कराने के स्रोत भी मौन हो गए। जो खबरें पहले पन्ने पर होती थी वह भी चली गईं। यह स्थिति चीनी सेना के दक्षिणी शिंजियांग सैन्य क्षेत्र के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन के कठोर और अड़ियल रवैया के कारण उत्पन्न हुई सी लगती है। लिन देपसांग से किसी भी तरह से पीछे हटने को तैयार नहीं है। उन्होंने इसे चीनी भू भाग होने का दावा करते हैं। हॉट स्प्रिंग के उत्तर कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां से चीन थोड़ा पीछे हटा है बेशक सीमित स्तर पर ही , लेकिन वह पीछे हटना समझौते के अनुरूप नहीं हैं। चीन उस क्षेत्र को लेकर बड़ा ही सक्रिय है क्योंकि वहीं से गलवान नदी के ऊपरी क्षेत्र की राह निकलती है। गोगरा इलाके में भी बात है इसलिए जो समझौता हुआ वह पूरी तरह पालन नहीं किया जा रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक हफ्ते पहले लद्दाख में सेना को संबोधित करते हुए कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा उपरोक्त स्थिति पर खुलकर बातचीत हुई और अभी भी बातचीत चल रही है लेकिन कितना समाधान हो पाएगा यह कहना मुश्किल है। इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती है लेकिन दुनिया की कोई भी ताकत हमारी 1 इंच जमीन नहीं ले सकता। मई में चीनी अतिक्रमण के बाद या पहली बार अधिकृत तौर पर कहा गया है कि चीन जहां तक घुस आया है उस इलाके को खाली नहीं करना चाहता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष में आरोप लगाया है कि सख्त नेता की छवि को कायम रखने के लिए इस मुद्दे पर भ्रम का सहारा लिया जा रहा है। चीन की हठधर्मिता और अड़ियल रवैये के सामने भारत के पास दो ही विकल्प और वह हैं चीन द्वारा आरंभ किया गया युद्ध और दूसरा भारत द्वारा छेड़ी गयी जंग। अगर चीन युद्ध आरंभ करता है तो उसका परिदृश्य पाकिस्तान की तरह एटमी आराम तक भी खिंच सकता है। चीन ऐसा कई बार इशारा भी कर चुका है।यदि भारत ने आगे बढ़कर चीनी कार्रवाई के चलते वर्तमान स्थिति को स्वीकार करने हो तैयार नहीं होता है संभव है कि चीन की शेरा इस स्थिति को अनिश्चित काल तक के लिए खींचेगी या फिर या फिर अपनी बात मनवाने के लिए भारत को पूरी तरह से उस क्षेत्र में पराजित करने के बारे में सोचे। भारत के मुख्य रक्षा पंक्ति बहुत ऊंचाई पर है और जो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर है 10 से 80 किलोमीटर दूर है। अब अगर युद्ध होता है तो संभावना है कि भारत के मुख्य रक्षा पंक्ति से आगे वह लड़ेगा। ऐसी स्थिति में हमारा मुख्य उद्देश्य चीन की सेना को रोकने के साथ उससे अधिक या बराबर की जमीन पर अधिकार का होना चाहिए ताकि सौदेबाजी की जा सके। शत्रु को पीछे धकेलने के लिए हमारे पास सेना की कमी नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह भारत के लिए फायदेमंद होगा क्योंकि चीनी सेना को भारतीय सेना की टुकड़ियों से दो दो हाथ करना होगा जो उसके सामने भी वर्चस्व वाली स्थिति में है।
अब अगर चीन बढ़त बनाकर रखना चाहता है यह हमारे ऊपर होगा कि उसे ऐसा करने से रोकें और इसके लिए जरूरी है कि हम सीधे घुसपैठ वाले बिंदुओं पर हमला करें। हमारे लिए एक और विकल्प है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वह हमला करें जहां उसकी मोर्चाबंदी कमजोर है और फिर सौदेबाजी हो। अगर हमें अपने देश का सम्मान बचाना है तो इसे युद्ध को दुश्मन के खेमे मेले जाना ही होगा। इसके बाद ही सौदेबाजी हो सकती है।