अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत आने की तारीख जैसे - जैसे नजदीक आती जा रही है कश्मीर में भयावहता बढ़ती जा रही है। इनके पहले राष्ट्रपति की हैसियत से बिल क्लिंटन भारत आये थे और कश्मीर में भारी कत्लेआम हुआ था। अब फिर ओबामा के संदर्भ में कश्मीर चर्चा का विषय बन चुका है। हैरत इस बात की है कि कश्मीर जब भी खबरों में लौटता है तो भारतीयों के दिमागों में लौट आता है और धीरे धीरे जबानी मारामारी का माहौल बन जाता है। फिर यह किस्सा उसी मोड़ पर आकर खत्म हो जाता है, जहां पहले भी दसियों बार हुआ है - एक ठंडापन और नए धमाके का इंतजार। आपका चाहे जिस किसी भी पॉलिटिकल आइडियोलॉजी से नाता हो, आप भारत के नाम पर मरने को तैयार रहते हों या देश की सीमाओं को नहीं मानते हों, आपसे महज इतना कहना है - कश्मीर को वहां मत छोडि़ए, जहां वह है। इस समस्या को यहीं खत्म कीजिए, क्योंकि इसके साथ भारत आगे नहीं चल सकता। यह एक ऐसी चट्टान है, जो भारत की तकदीर को डुबो देगी।
राजनीतिक शतरंज के खिलाडिय़ों ने कश्मीर की भौगौलिक स्थिति और सीमाओं को लेकर हमेशा एक भ्रामक स्थिति बनाए रखी। आमतौर पर जब लोगों से पूछा जाता है कि कश्मीर कहाँ है, तो वे कहते हैं,.. यह रहा.. और भारत के मानचित्र के..सिर.. की ओर इशारा करते हैं। अरुंधति राय, गिलानी और ना जाने उन जैसे कितने.. देसी- विदेशी.. लोग कश्मीर की आजादी का फतवा देते सुने जाते हैं। पर क्या कश्मीर इस लायक है? कश्मीर बहुत छोटा है आजादी के लिए।
कश्मीरियों की यह आम शिकायत रहती है कि शेष भारत वाले कश्मीर और कश्मीरियों को सही से समझते नहीं। किसी हद तक यह सही भी है। कश्मीर के विषय में कई मिथकों में से एक मिथक यह तोडऩे की आवश्यकता है कि कश्मीर भारत का एक उत्तरी राज्य है। जी नहीं, कश्मीर एक राज्य नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर राज्य का एक छोटा सा हिस्सा है केवल 6.98 प्रतिशत हिस्सा। यहां तक कि यह कहना भी गलत है कि..कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है.., क्योंकि कश्मीर तो भारत का सबसे उत्तरी भाग है ही नहीं। वह श्रेय लद्दाख सूबे को जाता है। और यदि भारत का आधिकारिक मानचित्र देखा जाए तो गिलगित और अक्साई-चीन उससे भी उत्तर में हैं। न लद्दाख, न गिलगित, न अक्साई चीन कश्मीर का हिस्सा हैं। जिस क्षेत्र को पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है, और हम पाक-अधिकृत कश्मीर, वह क्षेत्र भी दरअसल कश्मीर नहीं है। कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के इस अन्तर को हमेशा छुपाया क्यों गया है, और इस अन्तर को उजागर करना क्यों आवश्यक है?
दरअसल राज्य का यही छोटा हिस्सा भारत के लिए दर्दे-सर बना हुआ है, क्योंकि इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र ने पूरे राज्य को और पूरे क्षेत्र को अपहृत कर रखा है। राज्य का यह भाग जो राज्य का केवल 7 प्रतिशत है, स्वयं को एक गैर मुस्लिम देश का भाग मानने में आनाकानी करता है। राज्य के दक्षिण में जम्मू है, जो हिन्दू-बहुल है, जहां के लोग पंजाब-हिमाचल जैसे हैं, और उत्तर में लद्दाख है जहां बौद्ध और शिया मुस्लिम रहते हैं, कुछ कुछ तिब्बत से मिलता जुलता। दोनों क्षेत्रों को भारत का भाग होने में कोई दिक्कत नहीं है। केवल कश्मीर है, जहां गैर-मुस्लिमों के पलायन के बाद अब 97 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। यही वह हिस्सा है जो आग का गोला बना हुआ है। वह खूबसूरत वादी, जिसे कभी जन्नत कहा जाता था, और जिसे अलगाववाद ने जहन्नुम में तब्दील कर दिया है। इस राज्य की विविधता, भारत की विविधता में तो घुलमिल जाएगी, पर हरे-झंडे ले लेकर पत्थर बरसाते अलगाववादियों के कश्मीर में कैसे चलेगी?
अगर आप भारत का भला चाहते हैं, अपने और अपनी संतानों को एक बेहतर जमाने में ले जाना चाहते हैं, अगर आपको भारत से प्यार है और उसकी तरक्की पर आपको गर्व महसूस होता है, तो अपने जज्बातों पर काबू रखिए। अपनी आज के सोच से कल के भारत की किस्मत खराब मत होने दीजिए। भारत को अपनी कैद से आजाद होने दीजिए, क्योंकि इस देश और दुनिया के इतिहास में हमारी जिंदगी, हमारी समझ एक छोटा-सा टुकड़ा है। देश हमसे बड़ा है और यह तब भी रहेगा, जब हम नहीं होंगे। हमारी खुदगर्जी क्यों इससे बड़ा होने का दावा करे?
Wednesday, November 3, 2010
फिर बढ़ती जा रही है कश्मीर में भयावहता
Posted by pandeyhariram at 2:33 AM
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