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Tuesday, November 9, 2010

नहीं रहा बादशाहत का डर


आखिर दुनिया के चलाने वाले ताकतवर देशों में से सबसे बड़े महाबली ने माना कि भारत एक महाशक्ति है। यह सबूत है इस बात का कि दुनिया को चलाने वाले क्लब का भारत अब एक नॉर्मल मेंबर है। इतना नॉर्मल कि अमरीकी राष्ट्रपति का दौरा कोई सनसनी पैदा नहीं करता। रिश्तों में से सनसनी का खत्म हो जाना थोड़ा फीका जरूर लगता है, लेकिन नॉर्मल रिश्ते होते ही ऐसे हैं। फिर दुनिया अगर इससे यह मतलब लगाती है कि दोनों देश करीब आकर किसी मोर्चेबंदी में लगे हैं, बिजनेस को अगर लगता है कि भारत पर ज्यादा दांव लगाना चाहिए और आम लोगों को लगता है कि उनमें हेलमेल बढऩा चाहिए, तो यह उनकी मर्जी है।
भारत के लोग सदियों से दुनिया भर में फैलते रहे हैं। लेकिन सरकारी तौर पर दुनिया से जुडऩे की कोशिश भारत ने काफी देर से शुरू की। यहां यह कहने का इरादा है, लेकिन जब मजबूरी में भारत को अपने खिड़की-दरवाजे खोलने पड़े तो एक दूसरी ही दुनिया से उसका मुकाबला हुआ। यह दुनिया हमारे काबू में आने लायक थी।

हमारी सरकारों, सियासतदानों, अर्थशास्त्रियों और विद्वानों को यह पता ही नहीं था कि भारत क्या है और भारतीय क्या कर सकते हैं। वे न सिर्फ गलतफहमियों के अपने बनाए संसार में भटक रहे थे, बल्कि उन्हें भारत की काबिलियत पर भी यकीन नहीं था। वे भारत को एक नाकारा मुल्क समझ रहे थे, जबकि खुद उनका सोच दिवालिया हो चुका था।
यहां यह कहने का इरादा है कि भारत ने दुनिया से जुडऩे की शुरुआत मजे में नहीं की। इसके लिए वह मजबूर हुआ, क्योंकि सरकार का दीवाला निकलने जा रहा था। उस वाकये के 20 साल बाद आज भारत इस हैसियत में आ गया है कि जल्द ही ओबामा जैसे लीडर यहां छुट्टियां बिताने आया करेंगे और इंडिया के पास उनके लिए फुर्सत नहीं होगी। इस दौरान न तो भारत गुलाम बना और न ही इसकी इकॉनमी पर मल्टिनेशनल्स का कब्जा हुआ। ऐसी बड़ी कंपनियों की तादाद उंगलियों में गिनने लायक है, जो विदेशियों के हाथों चली गयीं, लेकिन जिन विदेशी कंपनियों पर भारतीयों ने कब्जा जमाया, उनकी हैसियत ज्यादा ऊंची है। भारतीय कंपनियां दुनिया भर में फैल रही हैं। अमरीका में भारतीय होना गौरव की बात हो गयी है। भारत की ताकत अमरीका को अक्सर चैलेंज करती लगती है और ग्लोबल मीडिया में भारत का नाम बेअदबी से नहीं लिया जाता। भारत के भविष्य को लेकर दुनिया किसी गलतफहमी में रहना नहीं चाहती।

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