आज बिहार के चुनाव का अंतिम दौर है और अबतक जो मतदान के आंकड़े रहे हैं वे लगभग 50 प्रतिशत थे। आशा है कि आज भी उतना ही होगा। यहां मतदान के आंकड़ों पर बहस नहीं की जा रही है बल्कि मकसद है उसके नतीजों से। भारतीय चुनावों की बेहद प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में लोग जिस.. हवा.. की बुनियाद पर विश्लेषण करते हैं, वह कभी भी अपनी दिशा बदल सकती है। लेकिन तमाम वैधानिक चेतावनियों के बावजूद यहां जोखिम उठाया जा रहा है और एक पूर्वानुमान है कि नीतीश कुमार बिहार में भारी बहुमत के साथ लौट रहे हैं।
जिन्होंने बिहार को हाल में नहीं देखा या बिहारीपन को शिद्दत से महसूस नहीं किया है वे नहीं समझ सकते हैं। बिहार में फिलहाल कोई ..हवा.. या ..मंद बयार.. नहीं बह रही है, वहां तकरीबन एक ..आंधी.. का मंजर है, जो लगता है कि इस राज्य के राजनीतिक समाजशास्त्र को नए सिरे से लिख डालेगा। नीतीश की आंधी ने न केवल लालू, बल्कि राहुल गांधी की कांग्रेस को भी किनारे कर दिया है। अगर पिछले साल उत्तरप्रदेश ने हिंदी पट्टी में कांग्रेस के भाग्योदय का संकेत दिया था तो अब बिहार इसकी पुष्टि कर सकता है कि पैराशूट पॉलिटिक्स की अपनी सीमाएं हैं। राहुल गांधी की मुट्ठी भर रैलियां किसी जमीनी सियासी संगठन की भरपाई नहीं कर सकतीं। नीतीश कुमार ने राजनीति का नया.. एसएसएस.. रचा है : ..सड़क, शिक्षा, सुरक्षा..। जगमगाते हाईवे और पक्की गंवई सड़कें अब बिहार का नया गौरव हैं।
नौवीं क्लास में पढऩे वाली लड़कियों के लिए साइकिलें महिला सशक्तीकरण का प्रतीक बन गयी हैं। लेकिन बीते पांच सालों के नीतीश राज की सबसे बड़ी उपलब्धि है कानून-व्यवस्था। बॉलीवुड बिहार को चोरों और अपहर्ताओं की धरती बताकर उसका मखौल उड़ाता रहा, लेकिन नीतीश ने उसे गलत साबित कर दिया है। राज्य में फैले गिरोहों में से कई धर लिए गये हैं और कई गुमशुदा हैं। अब किसी गैंगस्टर को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस अफसरों को मुख्यमंत्री के घर फोन नहीं लगाना पड़ता।
अबसे बारह-तेरह साल पहले जानेमाने लेखक और पत्रकार अरविंद एन दास ने लिखा था, ..बिहार विल राइज फ्राम इट्स ऐशेज.. यानी बिहार अपनी राख में से उठ खड़ा होगा।
एक बिहारी की नजर से उसे पढ़ें तो वो एक भविष्यवाणी नहीं एक प्रार्थना थी। लगभग पिछले एक वर्ष में जिन्हें बिहार जाने का मौका मिला हो वे यकीन के साथ कह सकते हैं बिहार में सब कुछ बदल चुका है और बिहार भी ..शाइनिंग इंडिया.. की चमक से दमक रहा है। परेशानियां अभी भी हैं, लोगों की शिकायतें भी हैं लेकिन कुछ नया भी है। अर्थव्यवस्था तरक्की के संकेत दे रही है। हर दूसरा व्यक्ति कानून व्यवस्था को खरी- खोटी सुनाता हुआ या अपहरण उद्योग की बात करता नहीं दिखायी पड़ रहा है।
दोपहर को स्कूल की छुट्टी के बाद साइकिल पर सवार होकर घर लौटती छात्राएं मानो भविष्य के लिए उम्मीद पैदा कर रही हैं। डॉक्टर मरीजों को देखने घर से बाहर निकल रहे हैं। उन्हें ये डर नहीं है कि निकलते ही कोई उन्हें अगवा न कर ले। किसान खेती में पैसा लगाने से झिझक नहीं रहा है क्योंकि बेहतर सड़क और बेहतर कानून व्यवस्था अच्छे बाजारों तक उसकी पहुंच बढ़ा रही है। कम शब्दों में कहूं तो लगा मानो बिहार में उम्मीद को इजाजत मिलती नजर आ रही है। इस चुनाव में नीतीश कुमार समेत सभी राजनीतिक खिलाडिय़ों के लिए बहुत कुछ दांव पर है। लालू-राबड़ी दंपत्ति का पूरा राजनीतिक भविष्य इस चुनाव से तय हो सकता है।
लेकिन बिहारियों के लिए दांव पर है उम्मीद। उम्मीद कि शायद अब बिहार का राजनीतिक व्याकरण उनकी जात नहीं विकास के मुद्दे तय करेंगे, उम्मीद कि बिहारी होने का मतलब सिर्फ भाड़े का मजदूर बनना नहीं रहेगा, उम्मीद कि भारत ही नहीं दुनिया के किसी कोने में बिहारी कहलाना मान की बात होगी। और नीतीश कुमार का अर्थ है एक उम्मीद, वह उम्मीद जिसकी इजाजत बिहारियों को पिछले पांच वर्षों में मिली है।
Sunday, November 21, 2010
बिहार का चुनाव खत्म और एक कयास
Posted by pandeyhariram at 1:35 AM
Labels: bihar election
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