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Monday, November 8, 2010

ओबामा बस मेहमान हैं


ओबामा का यह मानना है कि भारत हमेशा पाकिस्तान का भला चाहेगा, क्योंकि पाकिस्तान की कामयाबी में भारत का हित छुपा है। मुंबई में स्टूडेंट्स के सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने माना कि पाकिस्तान अमरीका के लिए काफी अहमियत रखता है। हालांकि वहां आतंकी समूह सक्रिय हैं और खुद पाकिस्तान सरकार भी यह बात जानती है। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ मजबूत, शांतिपूर्ण और स्थिर पाकिस्तान चाहते हैं। उन्होंने कहा कि एक समृद्ध, शांतिपूर्ण और स्थिर पाकिस्तान सुनिश्चित करने में सबसे ज्यादा दिलचस्पी किसी देश की हो सकती है तो वह है भारत। अगर पाकिस्तान अस्थिर है तो उसका नुकसान भारत को झेलना होता है। कश्मीर की सरहद पर असंतोष की आग भड़काना पाकिस्तान की नीति रही है, लेकिन उकसावा एक ऐसा खेल है, जो बहुत जल्द नियंत्रण के बाहर जा सकता है। खासतौर पर तब, जब आतंकवाद भी इसी खेल का हिस्सा हो लेकिन पाकिस्तान ने कई कारणों से अस्थिरता में ही अपना हित खोज निकाला है। भारत के लिए सुरक्षा का मतलब है, हिमालय के समूचे इलाके में अमन और चैन, जिसमें हिंदुकुश के पहाड़ों से लेकर अरुणाचल प्रदेश की निचली पहाडिय़ां भी शामिल हैं। यदि अमरीका को लगता है कि भारत के साथ किसी भी तरह का संबंध महत्वपूर्ण है तो उसे भारतीय हितों के साथ अपनी रणनीतियों का मेल करना होगा।
ओबामा भारत के दौरे पर आये हैं। उनकी यात्रा से किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं है। मुंबई में एक दिन बिताने के पीछे ओबामा का मकसद यह नहीं है कि विद्यार्थियों से गपशप की जाए। उनका मकसद था निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ तगड़ी डील साइन करना। इस अवसर पर उतारी जाने वाली तस्वीरें अमरीका में सबूत के तौर पर दिखाई जाएंगी कि देखिए हमारे राष्ट्रपति मुंबई की होटल ताज में अपना फर्ज निभा रहे हैं, आगरा में मिशेल ओबामा के साथ ताजमहल के सामने फोटोग्राफरों के लिए पोज नहीं दे रहे हैं।
भारतीय स्वभाव से ही भावुक होते हैं और यह उनके अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी नजर आता है। हम या तो बहुत उतावले हो जाते हैं या बहुत ठंडे पड़ जाते हैं, लेकिन हमें शांत रहने का महत्व नहीं पता। भारत और अमरीका दोनों को ही एक - दूसरे की जरूरत है, लेकिन भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का शुक्रिया अदा करें कि अमरीका को आज भारत की ज्यादा जरूरत है। यहां एक बात गौर करने की है कि भारत के लिए अहम मुद्दों पर अमरीका शिखर यात्रा के उपलक्ष्य में अपने घोषित रुख बदलेगा, ऐसी उम्मीद न पहले थी, न अब है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का सवाल हो या आतंक विरोधी लड़ाई में पाकिस्तान के साथ अमरीका की कुटिल मित्रता का, वह सचाई तभी स्वीकार करेगा, जब खुद उसके हितों पर चोट पड़ेगी। चुनाव प्रचार में ओबामा भारत का हौआ खड़ा करते रहे हैं।
आउटसोर्सिग के नाम पर हमारी सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए वीजा की मुश्किलें भी पैदा की गयीं। पराजय के बाद कोई कारण नहीं कि वह भारत के खिलाफ यह संरक्षणवादी रवैया बदलेंगे। इसलिए महाशक्ति मेहमान का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए हमें भूलना नहीं चाहिए कि भारत सिर्फ अपनी ताकत के बूते आगे बढ़ सकता है। अब हमारे पास एक विशाल और उभरते बाजार की ताकत भी है, जिसकी भाषा अमरीकी राष्ट्रपति सबसे बेहतर समझते हैं।

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