पिछले दिनों संसद में बड़ी तेजी से कामकाज ठप्प होता रहा फिर भी नाम के लिये ही सही कामकाज हुआ, पर मंगलवार (२२ नवंबर) को तो ऐसा लगा कि बैठक शुरू हुई और स्थगित हो गयी। विपक्ष ने संसद को चलने ही नहीं दिया। संसद को चलने देने की प्रणव मुखर्जी के साथ हुई बैठक भी बेकार चली गयी। प्रधानमंत्री ने विपक्ष को मनाने के लिये 2 जी घोटाले की कई स्तरीय जांच का हुक्म दे दिया यहां तक कि लोक लेखा समिति की जांच भी बैठा दी लेकिन विपक्षी दल संयुक्त संसदीय दल से कम में मानने को तैयार नहीं था और उन्होंने सरकार की हर कोशिश पर पानी फेर दिया। विपक्ष की हरकतों से यह साफ जाहिर हो रहा है कि उसे संसद की कार्यवाही को चलने देने या 2 जी घोटाले में जांच से कोई खास मतलब नहीं है बल्कि वह सरकार की फजीहत करके अधिक से अधिक राजनीतिक लाभ लेना चाहता है।
भारत एक ऐसा देश है जो बिना कामकाज के संसद को चलने देने का खर्च नहीं उठा सकता है। इसके लिये कोई एक सांसद दोषी नहीं है। संसद में बवाल करने का लगता है रिवाज चल पड़ा है। एक तरफ कुछ सांसद हैं कि किसी को नहीं बोलने देने पर आमादा हैं और दूसरी तरफ कुछ सदस्य हैं, चाहे वे थोड़े से ही हों , जो बड़ी अच्छी - अच्छी कामकाजी बातें करते हैं। अब अगर दोनों को..क्रिटिकली अनालाइज.. करें तो ऐसा नहीं लगता कि संसद की कार्यवाही फिर से शुरू ना की जा सके बशर्ते दोनों पक्षों के नेता ऐसा चाहें।
इस मामले में एक सुझाव हो सकता है कि दोनों पक्षों के चुनिंदा लोग बैठ कर लोक लेखा समिति और संसदीय जांच समिति की जांच क्षमताओं और निष्कर्षीय उपयोगिता पर बातें कर लें और जो ज्यादा उपयोगी हो उसे जिम्मा सौंप कर काम शुरू करें। कम से कम संसद पर गरीब करदाताओं के होने वाले खर्च का तो उपयोग हो। इसके अलावा इस विषय पर एक दिन दोनों सदनों में पूर्ण बहस हो उससे प्राप्त निष्कर्ष पर कदम आगे बढ़ाया जाय। हालांकि यह ऐसा मसला नहीं है कि आनन-फानन में सुलझ जाये पर संसद को काम करने तो दिया ही जा सकता है। अगर संसद में सरकार को लेकर विपक्ष मुखर है तो यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह कुछ ऐसा वातावरण तैयार करे जिससे कार्यवाही फिर चल सके वरना यह तो इतिहास में दर्ज होती घटना है और इतिहासकार इसे नकारात्मक नजरिये से भी पेश कर सकते हैं तथा लोकतंत्र पर सवाल उठा सकते हैं।
Friday, November 26, 2010
संसद को चलाना सरकार की जिम्मेदारी है
Posted by pandeyhariram at 12:05 AM
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