दूरसंचार मंत्री ए राजा ने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद वे यह बताना चाहते थे कि उन्होंने संसद में शोर मचाने और काम काज रोकने का अवसर विपक्षी दलों के हाथों से छीन लिया। वैसे विपक्ष भी कम नहीं है। भाजपा अड़ी है कि इस्तीफे से काम नहीं चलेगा। कामनवेल्थ गेम्स घोटाला, टेलीकॉम घोटाला और आदर्श सोसायटी के मसलों की जांच के लिये जब तक संयुक्त संसदीय समिति (जे पी सी) का गठन नहीं होगा तब तक वह चैन से नहीं बैठेगी और शांति से संसद को चलने नहीं देगी। हालांकि खुद संसदीय समिति की उपयोगिता पर सवाल उठता आया है। इसमें कोई शक नहीं कि इतने बड़े घोटाले में सिर्फ एक मंत्री के इस्तीफे से बात नहीं बनने वाली। लोगों को पता चलना चाहिए कि किन लोगों की सांठगांठ से बहुमूल्य 2 जी स्पेक्ट्रम को इतना सस्ता बेच दिया गया। इसका फायदा किन लोगों को मिला, और इस सिलसिले में उनसे कुछ रिकवरी की जा सकती है या नहीं।
इन सारे सवालों की पड़ताल के लिए जेपीसी एक कारगर हथियार हो सकती है, लेकिन अभी तत्काल इसको गठित कर दिया जाना इतना जरूरी नहीं है कि इसे मुद्दा बनाकर संसद न चलने दी जाए। लोकसभा में सत्तापक्ष के नेता प्रणव मुखर्जी का यह कहना भी वाजिब है कि बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली लोक लेखा समिति (पीएसी) इस संबंध में अभी तक ज्ञात सारे तथ्यों की छानबीन कर सकती है।
सरकार 2 जी स्पेक्ट्रम से संबंधित सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी के पास भेजेगी और विपक्ष को आर-पार की लड़ाई में जाने से पहले उसकी राय आने का इंतजार करना चाहिए। यह रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं हुई है, लिहाजा कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता कि इसमें स्पेक्ट्रम घोटाले से सरकारी खजाने को कुल कितना नुकसान हुआ बताया गया है।
इसके बावजूद कहने वाले इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये का घोटाला कर लिए जाने की बात इस तरह कह रहे हैं, जैसे यह कोई प्रामाणिक तथ्य हो। दरअसल, भड़काऊ बयानों और आकाशीय आंकड़ों से सिर्फ कुछ गिने-चुने राजनेताओं की गोटी लाल होती है। आम आदमी के लिए इनका महत्व व्यवस्था के प्रति अविश्वास बढ़ाने के सिवाय और कुछ नहीं होता।
संसद को अगर मामले की जड़ तक पहुंचना है तो उसे सीएजी की रिपोर्ट और सीबीआई की जांच-पड़ताल के अलावा ए. राजा की इस सफाई पर भी गौर करना चाहिए कि उन्होंने स्पेक्ट्रम की बिक्री के दौरान पहले से चली आ रही नीतियों का पालन करने के अलावा और कुछ नहीं किया है।
दाल में कुछ काला है, इसे साबित करने के लिए आकाश-पाताल एक करना जरूरी नहीं है। सस्ते में खरीदा गया स्पेक्ट्रम कुछ कंपनियों ने जिस तरह महंगे दामों पर बेचा, या नीरा राडिया जैसे दलालों की टेपित बातचीत में सौदों के जो ब्यौरे सुनने को मिले, उसके बाद राजा के लिए खुद को पाक-साफ बताने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
यह सब प्रमाण है कि भ्रष्टाचार को लेकर हमारी राजनीति किस कदर संवेदनहीन हो चुकी है। मुश्किल से ही कोई पार्टी बची है जिसका इस संवेदनहीनता में साझा न हो। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीएजी ने सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन किया है।
चह्वाण और कलमाडी के बाद हफ्तेभर में यह तीसरा इस्तीफा है। कांग्रेस इन्हें इस तरह प्रस्तुत कर रही है कि ये राजनीति की शुचिता में उसके विश्वास की अभिव्यक्ति हैं। इस आत्मवंचना के बजाय पार्टी और उसके नेतृत्व वाले गठबंधन को देखना चाहिए कि यह नौबत क्यों आ रही है कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे उनके नेताओं को एक के बाद एक इस्तीफे देने पड़ रहे हैं।
Sunday, November 21, 2010
अब क्या?
Posted by pandeyhariram at 1:09 AM
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