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Friday, November 26, 2010

बिहार में नीतीश की आंधी


उड़ गये लालू-गांधी
बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजे आ गये और जैसा कि अनुमान था नीतीश कुमार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आये और जैसी कि उम्मीद नहीं थी बाकी दल खास कर अपने को बिहार के राजा समझने वाले लालू यादव और कभी के गिनीज बुक अलंकृत रामविलास पासवान बुरी तरह हारे। नीतीश शुक्रवार (२६ नवंबर) को शपथ लेंगे। उन्होंने बिहार के विकास के लिये तीन सूत्री अजेंडा तय किया है, जिस बिहार में नीतीश समर्थक..3 स.. के नाम से पुकारते हैं वे हैं - सड़क, शिक्षा और सुरक्षा। इस बार भी वे इसी के लिये काम करेंगे, ऐसा आश्वासन दिया है।
नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि उन्हें बिहार के लिये काम करने का जनादेश मिला है और वे इसका सम्मान करते हुए केवल बिहार के लिये ही काम करेंगे। इस चुनाव परिणाम से सबसे ज्यादा आघात कांग्रेस को लगा है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के धुआंधार प्रचार के बावजूद कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी नहीं हासिल कर सकी। हालांकि उनके नेता अब खिसियानी बिल्ली की भांति खंभा नोचने की शैली में कह रहे हैं कि वे अपनी पराजय के कारणों का विश्लेषण करेंगे और अगले चुनाव में चुनौती बनकर उभरेंगे।
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तारूढ़ दलों ने विकास को मुद्दा बनाया, जबकि विपक्षी पार्टियों ने सरकार की कथित नाकामी को जनता के बीच उछालने की कोशिश की। सभी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी प्रचार करते रहे तो भाजपा की ओर से लालकृष्ण आडवाणी के अलावा सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, अरुण जेटली, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी जैसे नेता मैदान संभाले रहे। जनता दल (यू) की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं प्रचार की कमान संभाले हुए थे और उनका साथ पार्टी अध्यक्ष शरद यादव दे रहे थे। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी अपना दावा ठोंक रहे थे तो लोजपा के प्रचार का जिम्मा पार्टी अध्यक्ष राम विलास पासवान ने संभाला हुआ था। हालांकि नीतीश ने भाजपा के विवादास्पद नेताओं (नरेंद्र मोदी और वरुण गांधी) को प्रचार अभियान से दूर रखा था। बिहार के इस चुनाव में सबसे प्रमुख मुद्दा विकास का ही रहा है। हालांकि सभी दलों ने जोड़-तोड़, जुगाड़ और जातिवाद का मंत्र अभी भी नहीं छोड़ा था। इसका कारण उनके विश्वास में कमी ही अधिक है। सभी दल ये अच्छी तरह जानते हैं कि भले ही विकास सबसे जरूरी मुद्दा है लेकिन चुनावी वैतरणी केवल इस एक मुद्दे के सहारे नहीं पार की जा सकती।
जबकि बिहारी मतदाता पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हो चुका है। नयी पीढ़ी जो अब इंटरनेट, मोबाइल से वाकिफ हो चुकी है खासकर बिहार के ऐसे लोग जिनके परिवार का कोई सदस्य बाहर निकल कर जीविकोपार्जन कर रहा वह विकास के मसले को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। बिहार में इस बार पहले जितना आसान समीकरण नहीं रह गया था इसको सभी दलों को भली-भांति समझ लेना होगा और अपनी वर्षों चली आ रही परंपरागत राजनीति की हठधर्मिता छोड़ कर विकास के मानदंड को अपनाना होगा। यही बिहार के भविष्य के साथ स्वयं उनके अपने भविष्य के लिए भी सही रास्ता है।

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