अरुंधति या बुकर अवार्ड अलंकृत अरुंधति राय। मैडम फरमाती हैं कि कश्मीर कभी भारत का हिस्सा रहा ही नहीं। आज हमें आपकी एक बात बहुत खटक रही है। आज हमारे देश में आपकी मौजूदगी और हमारे देश की नारी होने के कारण हमारा सिर शर्म से झुक रहा है। क्या बुकर पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद आपका कद हमारे भारत देश से भी ऊंचा हो गया? आप इतनी बड़ी हो गयीं कि हमारे देश के बारे में कुछ भी बोल सकती हैं?
सच तो यह है कि आप हमारे देश के किसी भी भाग पर अंगुली नहीं उठा सकतीं। इस बात की हम आपको इजाजत नहीं देंगे। जो भारत हमारे हृदय में बसता है, उसके बारे में आपको एक शब्द बोलने की इजाजत नहीं देंगे। कश्मीर के बारे में बोलने से पहले आपने काश! इतिहास पढ़ लिया होता। आपको तो भारतीय इतिहास की इतनी भी जानकारी नहीं है जितनी हाई स्कूल में पढऩे वाले इतिहास के छात्र को होती है।
कश्मीर के पहले प्रामाणिक इतिहासकार कल्हण ने.. राजतरंगिणी.. में लिखा है कि कश्मीर के ज्ञात इतिहास में गोनन्दा -1 पहला राजा था। वह मगध के राजा जरासन्ध का भाई था। गोनन्दा-1 को कृष्ण ने हराया था। युद्ध में गोनन्दा-1 और उसका बेटा दामोदर मारे गए थे। लेकिन कृष्ण ने कश्मीर को दामोदर की पत्नी यशोवती को सौंप दिया। इसके बाद परीक्षित का बेटा, जनमेजय का छोटा भाई और अर्जुन का प्रपौत्र हरनदेव, दामोदर के बेटे गोनंदा-2 को पराजित कर कश्मीर का राजा बना। इसके बाद कश्मीर के राजाओं के रूप में जालुष्क, हालुष्क और कनिष्क का जिक्र आता है। यह मौर्य काल था और अवधि थी 323 से 185 ई. पू. और इनका साम्राज्य कश्मीर ही नहीं अफगानिस्तान और ईरान तक था और यहां तक फैला हुआ था भारत। अरुंधति जी ने इतिहास पढ़ा होता तो उन्हें मालूम होता कि यहां, जी हां इसी कश्मीर में ईसा पूर्व 320 में कनिष्क ने गौतम बुद्ध की तीसरी सभा का आयोजन किया था। उसके बाद गुप्त काल (ई.320 से ई.550), हर्षवर्द्धन - काल (ई.600 से ई.647) फिर आया..राजपूत काल.., पूरा भारत ..यूरोप.. की तरह छोटे- छोटे राज्यों में बदल गया। तब ई. 650 से लेकर ई. 1526 तक भारत राजपूत राजाओं के राज में एक..कल्चरल देश.. था। यही वह समय था, जब भारत कमजोर पड़ गया था। इसकी ताकत छितरा गयी थी। बस विदेशियों को मौका मिल गया। इसके बावजूद मोहम्मद बिन कासिम की सबसे बड़ी शिकस्त ई. 715 में राजपूत राजा बप्पा रावल के हाथों हुई थी। पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को छोड़ दिया था। मोहम्मद गोरी को बुलाने वाला राजा जयचंद भारतीय ही था। एक जयचंद ने भारत को गुलाम करवा दिया था। अब तो हर गली में..जयचंद.. घूमते हैं। मुगलकाल में कश्मीर भारत का हिस्सा था। ब्रिटिश काल में तो था ही कश्मीर भारत का हिस्सा। समझ नहीं आ रहा कि लोग कौन सा इतिहास पढ़ रहे हैं?
जहां तक धर्म का सवाल है, कश्मीर में शैव मत (1800-1020 ई.पू); वैष्णव मत (1020-250 ई.पू); बौद्ध मत- (250 ई.पू-550 ई.); हिन्दू मत (550 ई -1330 ई); इस्लाम 1330 ई.से अब तक) कायम रहा है या कायम है। अरुंधति जी, आपके इतना मुखर होने पर हम यह पूछते हैं कि क्या आपके पास कश्मीर का कोई स्थायी समाधान है? अगर है तो सरकार के समक्ष कोई योजना बनाकर रखिए लेकिन वह भारत हित में होनी चाहिए, हमारे दुश्मनों के हित में नहीं। असलियत यह भी है कि हर भारतीय कश्मीर समस्या का समाधान चाहता है लेकिन आज तक किसी ने भी आप जैसा कदम नहीं उठाया। अरुंधति जी, आप ऐसे लोगों के लिए धिक्कार कहतीं, तो हमारे समझ में बहुत कुछ आता लेकिन आपने उल्टी गंगा बहाने की कोशिश की है। धिक्कार है आप पर...।
Tuesday, November 30, 2010
अरुंधति, काश आपने इतिहास पढ़ा होता!
Posted by pandeyhariram at 12:15 AM
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