CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, November 9, 2010

क्यों मिर्ची लगी चीन व पाक को


अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर दिए समर्थन पर दुनिया भर में जबर्दस्त कूटनीतिक प्रतिक्रिया है। पाकिस्तान का रुख तो वैसे ही भारत विरोधी है, इस घटना के बाद तो उसने कहा कि इससे समस्याएं कम होने के बजाए और बढ़ेंगी।
चीन के प्रमुख अखबार द चाईना डेली के अनुसार यह पश्चिमी देशों की मजबूरी है कि अपनी खराब आर्थिक स्थिति के चलते भारत और चीन जैसे देशों का साथ लें, जिनकी अर्थ व्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। ओबामा का भारत को संयुक्त राष्ट्र के मुद्दे पर समर्थन देना साबित करता है कि भारत अब बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है। लेकिन इससे निश्चित ही चीन और पाकिस्तान में नाराजगी बढ़ेगी।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बड़ी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते कहा है कि उम्मीद है कि अमरीका एशिया की क्षेत्रीय राजनीति से प्रभावित होकर कोई निर्णय नहीं लेगा। पाकिस्तान ने कहा कि अमरीका के इस समर्थन के बाद सुरक्षा परिषद के फिर गठित होने की प्रक्रिया में बाधा पैदा होगी। पाकिस्तान के अनुसार अमरीका को नैतिकता के आधार पर निर्णय लेना चाहिए, क्योंकि भारत को स्थायी सदस्यता संयुक्त राष्ट्र के मूल सिद्धांतों के ही खिलाफ है। भारत हमेशा से कश्मीर के मामले में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों की अनदेखी करता रहा है।
विदेश मंत्रालय का कहना है कि 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव में कहा था कि कश्मीर समस्या का हल, स्थानीय नागरिकों की इच्छा के अनुसार होना चाहिए। लेकिन भारत ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया।
चीन ने तो साफ कह दिया है कि इस अमरीकी प्रस्ताव का परिषद के स्थायी सदस्यों में से कुछ कड़ा विरोध करेंगे। अभी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और अमरीका शामिल हैं। चीन का मानना है कि यह अमरीका की भारत की बड़ी लेकिन अविकसित अर्थ व्यवस्था में घुसपैठ का प्रयास है, जिससे चीन के विकास को रोका जा सके। पश्चिमी देश अपनी बिगड़ती आर्थिक हालातों को देखते हुए भारत और चीन जैसे देशों पर निर्भर हो रहे हैं। चीन ने बड़ी कटुता से कहा कि भारत का स्थायी सदस्यता के सपने को साकार होने में अभी भी कई साल लगेंगे।
वैसे भी ओबामा ने भारत की स्थायी परिषद के लिए समर्थन तो दिया है लेकिन इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की है। चीन सहित कुछ दूसरे स्थायी सदस्य भारत की सदस्यता का विरोध करेंगे। भारत ने कई बार संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के खिलाफ काम किया है। ओबामा के प्रस्ताव का अमरीका में भी विरोध होने की आशंका है क्योंकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अमरीका का कई बार कड़ा विरोध किया है।
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पहले दो दिनों में यह स्पष्ट कर दिया कि अमरीका क्या चाहता है, पर इस बात पर चुप्पी साधे रहे कि इस शिखर सम्मेलन से भारत को क्या मिलेगा। खासकर पाकिस्तान के मसले पर।

राष्ट्रपति ओबामा ने मुंबई में एक भारतीय छात्रा के सवाल के जवाब में कहा कि भारत को पाकिस्तान का राग अलापना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि भारत प्रगति के पथ पर बहुत आगे निकल चुका है। भारत की पीठ थपथपाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि अमरीका, भारत और पाकिस्तान की आपसी बातचीत के बीच नहीं आएगा।
भारत के भी कई चिंतक इस बात के हामी हैं कि पाकिस्तान के मसले पर हमें अमरीका से कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इस विचारधारा में दम है, पर किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि अमरीका, पाकिस्तान का पालक-पोषक है। पाकिस्तान की सेना को आर्थिक और सैन्य मदद करने वाला वह सबसे बड़ा देश है। इस नाते भारत की यह अपेक्षा गलत नहीं है कि वह पाकिस्तानी सत्ता तंत्र पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे। इस उम्मीद को यूं सरसरी तरीके से नकारना जायज नहीं। पाकिस्तान को सबक सिखाने में भारत सक्षम है पर किसी बच्चे को सजा देने से पहले उसके अभिभावक को चेतावनी देना कर्तव्य का हिस्सा है।

ये दलील अब पिट चुकी है कि पाकिस्तान स्वयं आतंक से पीडि़त है। पाकिस्तान में होने वाले रोजाना के खून-खराबे उसी की नीतियों का परिणाम हैं और भारत के लिए यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला है। भारत को आतंक के निर्यात पर आपत्ति है। सोमवार (८-११-२०१०) को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति ओबामा को यह जता दिया कि पाकिस्तान के साथ भारत मधुर संबंध चाहता है, पर यह तब तक संभव नहीं, जब तक पाकिस्तान आतंक का इस्तेमाल बंद नहीं करता।
ओबामा और मनमोहन सिंह इस बात पर सहमत थे कि पाकिस्तान में लोकतंत्र और स्थायित्व दोनों देशों के हित में है, पर इस स्थायित्व की जिम्मेदारी ज्यादा अमरीका की है जिसकी नीतियों से पाकिस्तान का हौसला बढ़ता है।
दरअसल अमरीका अफगानिस्तान में बुरी तरह फंस चुका है और पाकिस्तानी सेना से मदद लेने को मजबूर है। पाकिस्तानी सेना इस स्थिति का दोहन कर रही है। भारत की आपत्ति इस बात पर है कि अमरीकी पैसे और हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ होता है। ओबामा के इस दौरे से दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच रिश्ते और गहरे हुए हैं, पर देर सबेर अमरीका को पाकिस्तान के सवाल से जूझना ही पड़ेगा।

0 comments: