मोदी दो के 100 दिन में शाह सबसे ताकतवर होकर उभरे
पिछले एक हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत- नेपाल के बीच पाइपलाइन का उद्घाटन किया , स्वदेशी करण से परहेज करने वाले अपने पूर्व प्रिंसिपल सेक्रेट्री नृपेंद्र मिश्रा को बाय-बाय कहा ,प्लास्टिक अलग करने वाली महिलाओं के साथ बैठे, मथुरा में पशु आरोग्य मेला में पशुओं में मुंह और खुर रोग "मुंह पका" बीमारी के उन्मूलन की विशाल परियोजना का श्री गणेश करने के पहले गायों को चारा खिलाया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ऐसे हैं जो "ओम और गाय" का नाम सुनते ही ऐसा महसूस करते हैं जैसे उनके बिजली का करंट लग गया । मोदी जी ने इतना कुछ कहा, इतना कुछ किया लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे पता चले कि उनका मंत्रिमंडल अर्थव्यवस्था को सही करने के लिए कुछ कर रहा है। अब जबकि गाय और पशु की उपमा सामने आई तो मोदी जी कह सकते हैं उन्होंने बिगड़ैल भारतीय अर्थव्यवस्था सिंग पकड़कर पराजित किया और तेजी की ओर रुख किया। वस्तुतः भारतीय अर्थव्यवस्था की इस खराब दशा के बारे में कभी भी मनमोहन सिंह से बात नहीं की गई। मोदी जी ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए मनमोहन सिंह 5 सूत्री फार्मूले को अखबारों में जरूर पढ़ा होगा लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से किसी ने भी उन्हें फोन नहीं किया । उल्टे भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीयों पर आरोप लगाया वे ओला -उबर में सफर करते हैं और गाड़ियां नहीं खरीद रहे हैं इसलिए ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी आ गई है। यही नहीं वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने दिल्ली में व्यापारियों के बोर्ड को संबोधित करते हुए ट्वीट किया हे "गणित में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत खोजने के लिए आइंस्टीन को कोई मदद नहीं की।" सोशल मीडिया में बात बढ़ गयी और गोयल को बाद में स्पष्टीकरण देना पड़ा कि उन्हें गलत ढंग से उद्धृत किया गया है ।
मोदी जी की दूसरी पारी के 100 दिन पूरे हो गए और ऊपर जो कुछ भी कहा गया यह उनके मंत्रिमंडल की प्रतिभा के उदाहरण थे। अब यहां जो सबसे गड़बड़ है वह है कि मोदी जी खुद बहुत बड़े कम्युनिकेटर हैं जबकि उनके अधिकांश मंत्री प्रेस से बात करना नहीं चाहते है । अधिकांश मंत्रियों के अपने चहेते पत्रकार हैं जिसके माध्यम से वे सकारात्मक खबरें प्रसारित करते हैं। जब वे बोलते हैं, ऐसा ही पीयूष गोयल ने किया, तो कहा जा सकता है कि टीवी वगैरह ना देखें।
यह भी स्पष्ट है कि विगत 100 दिनों में जो सबसे ताकतवर इंसान उभरा है वह है गृह मंत्री अमित शाह। उन्होंने संसद में मोर्चा संभाला। धारा 370 और 35ए को खत्म करने की घोषणा की । नागरिकता अधिनियम को पेश किया जिससे 19 लाख लोगों के नाम अगर हटा दिए जाते हैं तो सभी हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता प्राप्त हो जाएगी। पिछले हफ्ते गुवाहाटी में उत्तर पूर्वी काउंसिल के 68 वें सत्र को संबोधित करते हुए अमित शाह ने घोषणा की कि हमारी सरकार धारा 371 का सम्मान करती है इसलिए वह इसमें कोई भी बदलाव नहीं करेगी। शाह इस बात को बखूबी जानते हैं फिर अगर भाजपा को उत्तर पूर्वी क्षेत्र में सत्ता में रहना है तो वह इससे खिलवाड़ नहीं कर सकते, दूसरी तरफ मुस्लिम बहुल कश्मीर में उनका दांव इतना कमजोर है तब भी उन्होंने पीडीपी से पल्ला झाड़ लिया और तब से राष्ट्रवादी एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया। निश्चित रूप से कश्मीर और यू ए पी ए विधेयक तथा तीन तलाक को आपराधिक कार्य घोषित करने के मामले में यकीनन मोदी सामने थे लेकिन इन 100 दिनों में जो सबसे महत्वपूर्ण था वह था कि अमित शाह किस तरह से सामने आए । मोदी और उनके मामले में थोड़ा फर्क था। मोदी के बारे में सब जानते थे यही चुनाव जीत सकते हैं। अमित शाह सदा मोदी से एक कदम पीछे रहते थे और यह भी स्पष्ट हो गया कि मोदी के बाद पिछली कतार में शाह ही हैं। बात यह है कि शाह ने धारा 370 और धारा 371 को अलग कर दिया है । धारा 370 के माध्यम से कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल था जब कि धारा 371 से उत्तर पूर्वी राज्यों को भी कुछ विशेष अधिकार हासिल हैं, खास करके जनजातीय समुदाय के लिए कानून बनाने का अधिकार हासिल है । शाह ने पिछले हफ्ते गुवाहाटी में उत्तर पूर्व जनतांत्रिक गठबंधन को संबोधित करते हुए कहा कि धारा 370 एक अस्थाई व्यवस्था थी जब कि धारा 371 संविधान में एक विशेष प्रावधान है। उन्होंने कहा यह नॉर्थ का अधिकार है इसे कोई नहीं छीन सकता।
लेकिन यहां यह स्पष्ट नहीं हो सका की एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक पर शाह का जो जुझारूपन है वह मोदी की बातों से प्रतिध्वनित नहीं होता है। जबकि मोदी को कश्मीर और असम के हालात के बारे में विदेशी समुदाय को स्पष्ट करना पड़ता है। शाह ने पिछले रविवार को उत्तर पूर्वी काउंसिल की मीटिंग में कहा कि वे असम या देश के किसी भी भाग में एक भी घुसपैठिए को नहीं आने देंगे उनकी इस भाषण के कुछ ही घंटों के बाद जिनेवा में राष्ट्र संघ मानवाधिकार आयोग के आयुक्त मिशेल बेसलेट ने कहा की वे कश्मीर को लेकर ही चिंतित नहीं है बल्कि असम में एनआरसी पर भी उन्हें चिंता है। यहां सवाल उठता है कि क्या शाह मोदी जी के लिए कई मोर्चे खोल रहेगा हैं क्या प्रधानमंत्री को अपने गृह मंत्री से करना पड़ेगा कि वह थोड़ा कम बोलें और प्राथमिकता के तौर पर अर्थव्यवस्था को सुधारने दें। अब आगे क्या होगा यह कुछ ही हफ्तों में पता चल जाएगा।
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