चंद्रयान दो के पास अभी भी देने के लिए बहुत कुछ है
इसरो प्रमुख के शिवम शनिवार को प्रधानमंत्री के समक्ष रो पड़े और प्रधानमंत्री ने उन्हें गले लगा लिया। इस भावुक को दृश्य ने देश की आंखें गीली कर दी। कहा जा रहा है कि लेंडर विक्रम सही काम नहीं कर पा रहा है लेकिन वैज्ञानिक बिरादरी का मानना है कि ब्लेंडर का चाहे जो हो चंद्रयान2 मिशन अभी भी बहुत कुछ ऐसा भेज सकता है जिससे चांद के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी पड़े और उसका वैज्ञानिक विश्लेषण हो सके। रविवार को खबर आई लेंडर विक्रम को खोज लिया गया है और जल्दी ही उससे संपर्क किया जाएगा । अधिकांश वैज्ञानिक आंकड़े तो आर्बिटर से मिलने हैं, लेंडर और रोवर से नहीं । भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान -1 में जो उपस्कर लगे थे उन्हें अन्य देशों से मंगाया गया था। लेकिन चंद्रयान- 2 मे जो कुछ भी भेजा गया है वह भारत में निर्मित है। केवल एक उपस्कर लेजर रिफ्लेक्टर है जो नासा से लिया गया है। इस बार जो चंद्रयान भेजा गया उसके कुल 3 भाग में 14 वैज्ञानिक उपस्कर थे । जिनमें आठ चंद्रयान के आर्बिटर में लगे थे जिसे सफलतापूर्वक चांद की कक्षा में स्थापित कर दिया गया है और वह 1 वर्ष तक चांद के चारों ओर घूमता रहेगा। यह उपस्कर इसरो को वैज्ञानिक आंकड़े भेजते रहेंगे जिससे हमारे वैज्ञानिकों को चांद के बारे में और भी बहुत कुछ जानने में मदद मिलेगी। दूसरी तरफ लेंडर और प्रज्ञान रोवर महज 14 दिनों तक सक्रिय रहेंगे। इसरो के एक बयान के मुताबिक इस मिशन की उम्र बहुत लंबी है लगभग 7 वर्ष, यद्यपि इसकी योजना 1 वर्ष की ही थी। विक्रम लेंडर को योजना अनुसार 35 किलोमीटर की कक्षा में उतरना था और चांद की सतह से 2 किलोमीटर तक पहुंचना था। इस बिंदु तक लेंडर के सभी सेंसर और सिस्टम सही-सही । काम कर रहे थे और कई नई तकनीकों की शुद्धता तथा उनके अचूक होने की जांच में भी खरे उतरे। ऐसे मिशन में प्रत्येक चरण की सफलता का आकलन किया जाता है और आज तक मिशन का उद्देश्य 90 से 95% पूरा हो चुका है। जिस लेंडर में गड़बड़ी हुई है उसे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था। अब कुछ लोग, सही कहें तो नकारात्मक विचार वाले ,लोग यह कह कर आलोचना करते सुने जा रहे हैं कि दक्षिणी ध्रुव को चुनना ही गलत था। इस पर सोचने से पहले यह जानना जरूरी है कि दक्षिणी ध्रुव ही क्यों ? दक्षिणी ध्रुव चांद का वह क्षेत्र है जो अभी भी वैज्ञानिक जानकारी के अंधेरे में है। इसके बारे में बहुत कम जानकारी है। यहां सूरज की रोशनी बहुत कम पड़ती है। यही नहीं, चंद्रमा की धुरी यहां थोड़ी सी झुकी हुई है इसलिए यहां कुछ क्षेत्रों में सूरज की रोशनी भी बहुत कम पहुंचती है। यहां विशाल गड्ढे भी हैं जिन्हें कोल्ड ट्रेक्स कहते हैं। यहां का तापमान औसतन शून्य से 200 डिग्री नीचे रहता है जिसके चलते न केवल पानी बल्कि कई तत्व और गैसें भी जमी हुई अवस्था में रहती हैं।
इस यान के आर्बिटर पर जो पेलोड भेजा गया है उनमें जो कैमरे हैं जिसके माध्यम से वह एक ही जगह की दो हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें प्रेषित कर सकता है। इसके अलावा एक अन्य कैमरा टीएमसी 2 है जिसे वैज्ञानिक भाषा में टेरेन मैपिंग कैमरा कहते हैं, चांद की सतह की 3D तस्वीरें भेजेगा। इन दोनों से भविष्य के मिशन के लिए तैयारियों में मदद मिलेगी। इसके अलावा जो पेलोड है वह है सोलर एक्सरे मॉनिटर इससे सूरज के कोरोना का एक्स-रे मापा जाता है और यह चंद्रयान2 के बड़े क्षेत्र के सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर के साथ काम करता है। एक और उपस्कर है रिगोलिथ। यह उपस्कर चांद की सतह पर सिलिकॉन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, अल्मुनियम ,आयरन और सोडियम जैसे तत्व की मात्रा को निश्चित करेगा। दो और उपस्कर हैं जो वहां पानी उपस्थिति का अध्ययन करेंगे इसके अलावा यह सूरज से होने वाले विकिरण की भी जांच करेंगे।
बेशक लेंडर खो गया है और चांद के दक्षिणी ध्रुव से इसरो को आंकड़े नहीं प्राप्त होंगे । जो प्राप्त करना है वह चंद्रयान 2 योजना में था लेकिन ऑर्बिटर और नासा के एल आर ओ से जो आंकड़े तथा चित्र भेजे जाएंगे उससे भारत के भविष्य के चंद्र मिशन के लिए बहुत मदद मिलेगी। अतः हमारे वैज्ञानिकों का नैतिक बल और प्रतिभा बल दोनों काफी सुदृढ़ रहेंगे। इसमें मायूस होना तथा इसे असफलता समझना गलत है।
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