बातों के सही मायने
अरस्तु का मानना था कि "तर्क के जरिए बातों के सही अर्थ तक पहुंचा जा सकता है और यही कारण है कि सदा सत्य की जीत होती है।" लेकिन अब शायद ऐसा नहीं है। अगर हम अपने आसपास से लेकर दूरदराज की दुनिया भर में हो रही घटनाओं को देखें तो इस cvबात का अंदाजा लगाया जा सकता है। आज हमारे नेता लोगों के भीतर की भावनाओं को उभार कर अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं। जो सत्य, तथ्य और तर्कों से परे है। दुनिया की ताजा स्थिति यूरोपियन नवजागरण के तार्किक विचारों को कमजोर करने वाली है। उदाहरण के लिए देखें ,ह्यूस्टन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया "अबकी बार ट्रंप सरकार।" सुनने में यह साधारण तौर पर ट्रंप के लिए वोट मांगने का नारा है लेकिन इस नारे का अर्थ और इसकी डायनामिक्स का मोदी जी ने अपने लिए उपयोग किया। यह नारा "हाउडी मोदी" कार्यक्रम में मोदी जी ने दिया लेकिन इरादा अपने लिए उपयोग करने का था। बेशक उन्होंने खुद को 130 करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधि बताया। जब उन्होंने कश्मीर से धारा 370 हटाने की बात की तो उसके साथ यह भी कहा कि यह जनता की आकांक्षा थी। इस कार्यक्रम में ज्यादातर लोग यह कह सकते हैं कि लगभग सभी भारतीय थे। अब यह पूछा जा सकता है यह मोदी विदेशों में बसे भारतीयों के लिए क्या कर सकते हैं ? अब इस बात को थोड़ा दूसरी तरफ से देखें और पूछें कि यह प्रवासी भारतीय मोदी जी के लिए क्या कर सकते हैं? मोदी जी अपने मतदाताओं को अच्छी तरह जानते हैं ,समझते हैं । उन्हें मालूम है कि समस्त भारतीयों को प्रभावित करने के लिए प्रवासी भारतीयों को भी प्रभावित करना पड़ेगा। प्रवासी भारतीयों के दिलों में उतरना होगा। एक फिल्म का डायलॉग याद आता है जिसमें हीरो कहता है कि" मैं समझ में नहीं दिल में आता हूं।" एक बार मोदी जी ने न्यूयॉर्क को अपना दूसरा घर बताया था। मोदी जी जब 2014 में सत्तासीन में बहुत से प्रवासी भारतीयों ने उनका समर्थन किया था और उनके लिए प्रचार भी किया था। वह प्रवासी भारतीयों की शक्ति को जानते हैं। यही कारण है कि नरेंद्र मोदी जब भी विदेश आते हैं तो वहां बसे भारतीयों से मिलना नहीं भूलते। प्रवासी भारतीयों के मन में है चिंता का एक भाव होता है और मोदी जी इस भाव को अपने लिए कैश कराते हैं। आंकड़े बताते हैं कि मोदी जी अपने पहले कार्यकाल में 48 विदेश दौरे पर गए थे जिनमें उन्होंने 93 देशों यात्रा की थी। प्रवासी भारतीय विदेश के चाहे जिस देश में हों उनके मन में अपनी संस्कृति को लेकर एक तड़प होती है। हालांकि भारत में जो कुछ हो रहा है उसको देख -सुनकर वे बहुत खुश नहीं होते लेकिन अपनी संस्कृति की तड़प उन्हें मोदी जी के साथ जोड़ती है। यही कारण है कि बहुत से प्रवासी भारतीयों ने इस चुनाव में मोदी जी प्रचार किया था। मोदी खुद को एक काम करने वाले नेता के रूप से ज्यादा सक्रिय प्रधानमंत्री के तौर पर प्रस्तुत करते हैं। विदेशों में रहने वाले भारतीयों को भ्रष्टाचार, भारत की गरीबी ,शहरों की अराजकता इत्यादि से बहुत मतलब नहीं है इसलिए वह अपनी संपत्ति और भारतीयों से मिलने वाले इर्ष्यापूर्ण सम्मान को नहीं छोड़ना चाहते हैं । उन्हें यह मालूम है कि भारत में उन्हें धनवान माना जाता है लेकिन वे भारत नहीं लौटना चाहते। इसके चलते एक मनोवैज्ञानिक विभाजन पैदा हो जाता है। आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 45 लाख भारतीय और उन्हें इस प्रवास बे भारतीय पहचान हैं। इस प्रवास ने उन्हें भारत से दूर कर दिया है। नरेंद्र मोदी में उन्हें एक शानदार विकल्प नजर आया। इसी कारणवश वे मोदी जी के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए कहीं भी चले जाते हैं।मोदी जी के रूप में उन्हें एक ऐसा नेता दिखा जो भारत को सम्मान दिला रहा है तथा भारत को सम्मान का मतलब है उनका सम्मान। इससे भारत से उनके जुड़ाव सरलता होती है। विदेशों में बसे भारतीयों के लिए नरेंद्र मोदी एक शानदार भ्रम हैं। इस भ्रम को बनाए रखने के लिए मोदी जी से चाहे जो बन पड़ता करते हैं । क्योंकि उन्हीं के चलते अमेरिका में या अन्य दूसरे देशों में उनकी जयजयकार होती है। इस जय जयकार से भारत में बसे भारतीयों को गर्व का अनुभव होता है और यही भारतीय उनके असली मतदाता है और यह गर्व चुनाव आने पर वोट में बदल जाता है।
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