जम्मू कश्मीर का परिसीमन और उसका प्रभाव
अब से कोई 11 वर्ष पहले 2008 में चौथी बार परिसीमन हुआ था जिसमें कई राज्य छूट गए थे। उधर 2001 की जनगणना रिपोर्ट को गुवाहाटी हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी और इसलिए 2008 में उत्तर पूर्वी राज्यों का परिसीमन नहीं हो सका। मणिपुर के मामले में भी एक मुकदमा लंबित था। झारखंड का परिसीमन हुआ पर रांची हाई कोर्ट ने उसे लागू नहीं होने दिया। कारण बताया कि अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित विधानसभा सीटों यह संख्या पहले के मुकाबले कम कर दी गई हैं। जम्मू और कश्मीर का परिसीमन नहीं किया गया क्योंकि वहां अलग संविधान था और परिसीमन आयोग यह गठन का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है अतएव राष्ट्रीय परिसीमन आयोग को जम्मू कश्मीर की सीमाओं छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। अब जबकि जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटा ली गई और वहां अलग संविधान नहीं रहा तो यह तर्क दिया जा रहा है की जम्मू कश्मीर के परिसीमन की शुरुआत होनी चाहिए। लेकिन 2008 में जिन राज्यों का परिसीमन नहीं हो सका था वहां भी यह प्रक्रिया अभी लंबित है। ऐसे में जम्मू कश्मीर के परिसीमन की मांग से कई सवाल उठते हैं। पहला सवाल कि अगर वहां परिसीमन किया जाता है तो राज्य पर क्या असर पड़ेगा? क्योंकि, जम्मू और कश्मीर आजादी के बाद से अभी तक भारत के लोकतांत्रिक राजनीति के मुख्यधारा में नहीं था और वहां की जनता का राजनीतिक आचरण वैसा नहीं है जैसा देश के अन्य भागों का है। लोकतंत्र या कहें आधुनिक लोकतंत्र के संदर्भ में जम्मू कश्मीर के राजनीतिक आचरण का समाज वैज्ञानिक अध्ययन अभी तक हुआ नहीं है। उसकी सोच कुछ दूसरे प्रकार की है। वैसे तो कहा जाता है की परिसीमन का उद्देश्य राज्य के सभी विधानसभाओं और लोकसभा क्षेत्रों का आकार एक समान होते हैं जिससे एक मतदाता और एक वोट कर समीकरण कायम रहे । परिसीमन का उद्देश्य संभवत संसदीय क्षेत्रों के आकार में समानता बनाए रखना है ताकि अचानक जनसंख्या में वृद्धि के कारण विभिन्न स्थानों पर अलग अलग कारणों से बढ़ी वोटरों की संख्या में असमानता ना रहे। शहरी क्षेत्रों में खासकर मेट्रोपॉलिटन क्षेत्रों में जनसंख्या में वृद्धि हुआ करती है। यह वृद्धि जन्म और मृत्यु के समीकरण से कहीं ज्यादा होती है। जिसका कारण होता है शहरों में आजीविका के साधनों का जन्म मृत्यु दर से तालमेल नहीं होता। इसी तरह पहाड़ों से आजीविका की अनुपस्थिति के कारण जनसंख्या घटने लगती है । अब ऐसे में कुछ विधानसभाओं या संसदीय क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या असंतुलित हो जाती है। परिसीमन आयोग का काम है कि सभी विधानसभा क्षेत्रों और संसदीय क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या को सामान बनाकर रखे। उनका आकार कमोबेश समान हो। जम्मू कश्मीर के परिसीमन से भी यही उम्मीद की जाती है। लेकिन प्रवास के सामान्य कारणों को देखा जाए तो यह पहले से ही कहा जा सकता है जम्मू कश्मीर विधानसभा क्षेत्रों की संख्याओं में काफी असंतुलन है। अब नए परिसीमन से जम्मू कश्मीर विधानसभा क्षेत्रों की संख्या में बदलाव आ सकता है।
जम्मू और कश्मीर में कुल 87 विधानसभा क्षेत्र हैं । जिनमें 46 कश्मीर में 37 जम्मू में और लद्दाख में केवल चार सीटें हैं । फिलहाल कश्मीर में वोटरों की संख्या 87,778 है जबकि जम्मू में 91,593 यानी कश्मीर की तुलना में जम्मू में लगभग 5हजार से ज्यादा वोटर हैं। लद्दाख विधानसभा क्षेत्रों के आकार छोटे छोटे हैं और यहां तुलनात्मक तौर पर कम वोटर हैं। अब जब परसीमन होगा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाएं नए रूप में होंगी तो यकीनन जम्मू क्षेत्र में सीटों की संख्या बढ़ेगी। जबकि कश्मीर में सीटों की संख्या घटेगी। इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के जनाधार अलग-अलग हैं। I इस परिसीमन का प्रभाव भी राजनीति पर और उन पार्टियों के जनाधार पर पड़ेगा। जम्मू में सीटें बढ़ने से प्रत्यक्ष तौर पर भाजपा को लाभ होगा । अगले कुछ सालों में उसका जनाधार वहां काफी मजबूत हो जाएगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 3 सीटें मिलीं और उसे 46.4% वोट प्राप्त हुए थे। भारत के चुनावी इतिहास में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा था इससे स्पष्ट हो जाता है कि कश्मीर में अपना जनाधार बढ़ाए बिना भी भाजपा राज्य की राजनीति में अपना मुख्य स्थान बना सकती है । उधर पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस कश्मीर की पार्टी हैं और उनका जनाधार कश्मीर में ही मजबूत है। कश्मीर में सीटों की संख्या घटने से राज्य में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की संभावनाओं पर सीधा आघात लगेगा।
इस वर्ष के लोकसभा चुनाव में कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस को 3 सीटें मिली थी लेकिन जम्मू क्षेत्र में उसे केवल 7.9% वोट मिले थे 2014 में पीडीपी को जिन सीटों पर विजय मिली थी वह उसके हाथ से निकल गईं। इसका प्रदर्शन अत्यंत निराशाजनक रहा। उसे महज 2.4% वोट मिले । कांग्रेस का जनाधार भी घट सकता है। पिछले चुनाव में उसे 28.5% वोट मिले थे फिर भी जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों में पार्टी का जनाधार लगभग समान है। लिहाजा परिसीमन के बाद जनसंख्या बदलेगी तब भी कांग्रेस के समीकरण पर कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा। लेकिन यह तय है उसके सामने चुनौतियां आएंगी इसलिए उसे सावधान रहना होगा। धारा 370 हटाए जाने के बाद भाजपा के बढ़ते वर्चस्व के कारण वहां बाहरी ताकतों के हर प्रयास के बावजूद सामाजिक परिवर्तन सकारात्मक होगा और यह स्थिति जम्मू के विकास में जहां सहायक होगी वहीं भारतीय जनता पार्टी के शक्तिशाली होने में भी मददगार होगी। अगर संक्षेप में कहें तो परिसीमन के बाद वहां उभरी नई स्थिति भारत देश के पक्ष में होगी और भाजपा उसका कारक कही जाएगी। यह ताजा समीकरण भारत के अन्य हिस्सों पर भी राजनीतिक बदलाव की प्रक्रिया को तीव्र करेगा।
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