CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, September 22, 2019

जादवपुर विश्वविद्यालय : वर्चस्व की लड़ाई का अखाड़ा

जादवपुर विश्वविद्यालय : वर्चस्व की लड़ाई का अखाड़ा

विख्यात दार्शनिक बट्रेंड रसल ने लिखा है कि "किसी भी आदमी या फिर किसी भी भीड़ पर तब तक विश्वास किया जा सकता जा सकता कि वह माननीय ढंग से काम करेगा जब तक  उसके भीतर भय ना हो।"
         रसल की इस उक्ति के संदर्भ में अगर जादवपुर विश्वविद्यालय की घटना को देखें तो बात बिल्कुल सही लगती है। मामला यह था कि  केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एक मीटिंग में शामिल होने के लिए जादवपुर विश्वविद्यालय पहुंचे। उनके साथ हथियारबंद अंगरक्षक भी थे और घंटे भर के बाद नतीजा सामने आया टूटे हुए शीशे बहते हुए खून के रूप में।  हालत यहां तक बिगड़ गई थी कि राज्यपाल को जाकर बाबुल सुप्रियो को छुड़ाना पड़ा। राज्यपाल श्री जगदीश धनखड़ ने बंगाल के इतिहास की गौरव गाथा का जिक्र करते हुए कहा कि वे यहां के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं और हुए शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्रियों ने   अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की है। एक तरफ जहां राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी इस घटना में घायल विश्वविद्यालय के कुलपति सुरंजन दास और प्रति कुलपति प्रदीप घोष का हाल चाल पूछने अस्पताल पहुंचे वहीं राज्य के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कुलपति की आलोचना करते हुए कहा वे पुलिस बुला सकते थे। राज्यपाल महोदय वे जादवपुर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं और खुद जाने के बजाय वहां पुलिस भी भेज सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
        इस घटना के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कुछ छात्रों ने वामपंथी  छात्र  संगठन  के लोग विश्व विद्यालय परिसर में  आये और  तोड़फोड़ तथा गुंडागर्दी आरंभ कर दी।  जिससे कई छात्र घायल हो गए। कला संघ कक्ष में जमकर मारपीट हुई और कई छात्र घायल हो गए। जादवपुर विश्वविद्यालय में जो कुछ भी हुआ वह कोई नई घटना नहीं है। तृणमूल कांग्रेस वामपंथी दलों के बीच संघर्ष का लंबा इतिहास है। लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान विद्यासागर कॉलेज  के बाहर अमित शाह की रैली पर तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों ने हमला किया और विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी। 1980 में अलीमुद्दीन स्ट्रीट का लाल हथोड़ा कलकत्ता विश्वविद्यालय पर भी पड़ा था। प्रोफेसर संतोष भट्टाचार्य अपनी किताब " रेड हैमर ओवर कलकत्ता यूनिवर्सिटी" में  वहां के  अपने कार्यकाल का उल्लेख किया है और बताया है कि कैसे लगातार घेराव और मारपीट हुआ करती थी। यही रहस्यमय लाल हथोड़ा जादवपुर विश्वविद्यालय पर भी गिरा है । वाम पंथी दल राज्य में राजनीति को कब्जा करना चाहते हैं और तृणमूल छात्र परिषद ने ऐसा नहीं होने दिया। एक-एक करके सारे विश्वविद्यालय वामपंथियों के हाथ से निकल गए। परंतु जादवपुर विश्वविद्यालय पर तृणमूल छात्र कांग्रेस अपना झंडा नहीं लहरा सका। जो काम तृणमूल छात्र संघ नहीं कर सकता वही अब भाजपा छात्र संगठन करना चाहता है। विगत 5 वर्षों में जादवपुर विश्वविद्यालय में कई बार हिंसक घटनाएं हुईं। 2016 में इसी तरह की घटना घटी थी जब बाहर के कुछ लोग विश्वविद्यालय में “बुद्ध इन  ट्रैफिक जाम" नाम की एक फिल्म दिखाना चाहते थे। शुक्रवार की घटना के बाद 4 प्राथमिकी दर्ज हुई और कोलकाता पुलिस द्वारा स्वप्रेरण मुकदमा भी आरंभ कर दिया गया। घटना के बाद जादवपुर विश्वविद्यालय टीचर्स यूनियन के अध्यक्ष प्रोफेसर पार्थ प्रतिम विश्वास ने लिखा कि जिस कार्यक्रम में बाबुल सुप्रियो को आमंत्रित किया गया था उस में छात्रों की संख्या बहुत कम थी तो फिर यह घटना क्यों घटी समझ में नहीं आता।  क्यों नहीं सत्तारूढ़ दल के मंत्री सामने आकर इस घटना की निंदा कर रहे हैं। छात्र संघ के सदस्य सत्तारूढ़ संगठन के विरुद्ध रहे हैं। बार-बार तृणमूल छात्र संघ इस पर कब्जा करना चाहता था और अब भाजपा ने शुरू किया है । इस बीच राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हो गया है राज्यपाल धनखड़ जादवपुर विश्वविद्यालय जाने के पहले मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से बात कर चुके थे। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के बाद कोलकाता ऐसा वामपंथी गढ़ बन गया है जिस पर सभी कब्जा करना चाहते हैं । यह पूरी घटना कब की लड़ाई की घटना है और एक दूसरे में भय पैदा करने की कोशिश है, ताकि उन्हें अपने अनुरूप इस्तेमाल किया जा सके। विधानसभा चुनाव धीरे-धीरे करीब आ रहे हैं और ऐसे में यह सब लगातार होता रहेगा।

0 comments: