कश्मीर पर पाकिस्तान का बदलता सुर एक छलावा
न्यूयॉर्क टाइम्स में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले हफ्ते एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कश्मीर की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से संभावित परमाणु युद्ध की चर्चा की थी। उन्होंने इसके लिए द्वितीय विश्वयुद्ध का उदाहरण दिया था और कहा था कि म्युनिख की तुष्टीकरण के लिए दूसरा विश्व युद्ध हुआ ठीक वैसा ही खतरा विश्व पर फिर मंडरा रहा है लेकिन इस बार उस पर परमाणु की छाया है। दूसरे दिन पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने बीबीसी उर्दू के एक इंटरव्यू में कहा कि कश्मीर समस्या के समाधान के लिए वह( परमाणु युद्ध ) विकल्प नहीं है। उनकी आवाज नरम थी। वे बहुत नरमी से भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता की बात कर रहे थे। इसके विपरीत इमरान खान ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कश्मीर को जब तक भारत 5 अगस्त के पहले वाली स्थिति नहीं प्रदान करता तब तक किसी किस्म की बातचीत का कोई सवाल नहीं उठता है। लेकिन अब इमरान खान की आवाज बदल गई है। उनका कहना है कि "पाकिस्तान भारत से जंग की शुरुआत नहीं करेगा। भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु ताकतें हैं और अगर तनाव बढ़ता है तो दुनिया के सामने खतरा उपस्थित हो जाएगा। मैं भारत से कहना चाहूंगा की जंग किसी समस्या का कोई समाधान नहीं है। जंग में जीतने वाला भी खोता है। जंग कई और समस्याओं को जन्म देती है । " उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे समझा जाए कि पाकिस्तान परमाणु हथियार के पहले उपयोग नहीं करने की अपनी नीति बदल रहा है। उन्होंने कहा कि दो परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र युद्ध के मुहाने पर भी आ जाएंगे तब भी हम पहले युद्ध नहीं आरंभ करेंगे। यही नहीं पाकिस्तान की रणनीति में और भी कई दिलचस्प मोड़ आ गए हैं। इसने भारतीय उच्चायुक्त को बाहर निकाल दिया है। यह एक ऐसी कार्रवाई है जिससे तनाव बढ़ता है, लेकिन जब भारतीय व्यवसायिक उड़ानों के लिए पाबंदियां लगाने की बात आई तो इस्लामाबाद ने फिलहाल ऐसा नहीं करने का फैसला किया और कहा कि दोनों मुल्क अपने युद्धक विमान भेजने के लिए हाथ पांव नहीं मार रहे हैं।
जब भारत ने कश्मीर की संवैधानिक स्थिति बदली उस समय इमरान खान ने भारत को अपने परमाणु जखीरे और आतंकियों का भय दिखाया। उन्होंने कहा कि पुलवामा जैसी घटनाएं हो कर रहेंगी। मैं पहले ही कह सकता हूं कि ऐसा होगा और वे लोग इसका दोष फिर पाकिस्तान पर लगाएंगे। जब पाकिस्तान की सरकार इसे मसला बनाना चाहती है तब जल्दी ही एक बड़ा हमला होता है। 26 नवंबर का वह मुंबई हमला याद होगा। यह हमला उस समय हुआ था जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने कहा था कि उनकी सरकार भारत के खिलाफ पहला परमाणु हमला नहीं करेगी । इस कथन के कुछ ही दिन के बाद मुंबई पर हमला हो गया। जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक पाकिस्तान पहुंच गए तो इसके एक हफ्ते के भीतर ही भारतीय हवाई अड्डे पर हमला हो गया। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता छोड़ दी।
इस बार हालांकि पाकिस्तान ने आतंकी हमले की खुली चेतावनी दी है लेकिन एक महीना बीत गया अभी तक ऐसा नहीं हुआ। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान दुनिया की निगाह में है और दबाव में है। वह डोनाल्ड ट्रंप से बातचीत कर रहा है तथा कंगाली से जूझ रहा है । कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सितंबर के अंत में जब राष्ट्र संघ महासभा की 74 वीं बैठक खत्म हो जाएगी, तब आतंकी हमला हो सकता है। मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर कोई आक्रमण नहीं किया। यद्यपि इसके लिए भारत पर बहुत ज्यादा घरेलू दबाव था। इसी तरह भारत ने करगिल युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा नहीं लांघी। ना ही 1999 में कंधार हवाई हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया। यही नहीं 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद भी भारत ने सैनिक कार्रवाई नहीं की। हालांकि ऐसा करने के लिए चेतावनी दी जा रही थी। इसके पीछे विचार यही था कि भारत पाकिस्तान के मुकाबले दुनिया के सामने ज्यादा जिम्मेदार दिखे ताकि पाकिस्तान के खिलाफ लॉबी तैयार की जा सके। यह रणनीतिक संयम दुनिया भर में पाकिस्तान की साख हो मटियामेट करने के उद्देश्य से अपना ही गई थी। इसका उद्देश्य था की अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को एक आतंकी मुल्क के रूप में चित्रित किया जाए ऐसी रणनीति का देश पर कोई सैनिक व नहीं भरता है उल्टे अन्य देशों से संबंध रखते हैं पर्यटकों का आगमन होता है आन मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के हवाई हमले के साथ ही इस नीति को बदल दिया। अभी जो कश्मीर में पाबंदियां जारी हैं उसे देखते हुए पाकिस्तान इसे बदले का एक अवसर मानता है और इसी उद्देश्य से व अपना सुर बदल रहा है । ताकि ,दुनिया उसे बुरा देश ना माने। लेकिन शायद ऐसा नहीं हो सकेगा क्योंकि पाकिस्तान से मदद पाने वाले आतंकी कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने की गरज से और दुनिया भर में सुर्खियों में लाने के लिए कुछ करेंगे और अगर ऐसा है तो फिर पाकिस्तान को फौजी कार्रवाई की क्या जरूरत। एक कारण है कि पाकिस्तान गायक हमला केवल कश्मीर तक सीमित नहीं है वाह मोदी के भारत को एक अधिनायक वादी सत्ता के रूप में चित्रित करना चाहते हैं वह दुनिया भर में यह फैला रहा है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं और उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता। इस रणनीति के एक हिस्से के रूप में इमरान खान और उनकी सरकार बार-बार "आर एस एस फासिस्ट हिटलर जैसे शब्दों का उपयोग कर रही हो न्यूयॉर्क टाइम्स के अपने लेख में इमरान खान ने लगभग ए एक चौथाई भाग यह कहने में खर्च किया कि भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का विकास हो रहा है उन्होंने ईसाईयों और दलितों के प्रति चिंता भी जाहिर की है वे अपने भाषणों में बार-बार गौ रक्षकों द्वारा लिंचिंग और असम में एनआरसी का जिक्र करते हैं उनके विदेश मंत्री दो भारत में धर्मनिरपेक्षता को श्रद्धांजलि देते सुने जाते हैं एक जमाना था जब पाकिस्तान ने धर्मनिरपेक्षता को खारिज कर दिया था यूनिसेफ की बैठक हो या बर्नी सांडर्स कि कश्मीर पर बातचीत हो पाकिस्तान की यह अभिव्यक्तियां दोहराई जा रही हैं। कुछ ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने कश्मीर के फैसले को लेकर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को जोखिम में डालने का फैसला किया है। इसके पीछे विचार यह है दुनिया के सामने वह एक ताकतवर मुल्क की तरह खड़े हों और दुनिया के मामले की वह कश्मीर के खिलाफ किसी भी हमले के मुकाबले में अड़े रहेंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था नीचे की ओर आ रही है और कश्मीर के मामले में ऐसा करके सौदेबाजी की अपनी क्षमता को घटा रही है। उधर भारत कश्मीर पर जितनी देर तक पाबंदियां कायम रखेगा उतने दिनों तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसकी चर्चा रहेगी। पाबंदियां हमेशा कायम नहीं रह सकती। आजकल में वह खत्म हो जायेंगी। लेकिन, इसके बाद कश्मीर में व्यापक हिंसा हो सकती है और पाकिस्तान इसी अवसर की प्रतीक्षा में है। अब यहां यह बात नहीं है कि घटना कैसे मोड़ लेती है लेकिन पाकिस्तान भारत की छवि को खराब करने में लगा हुआ है। भारत को पाकिस्तान के नरम सुर के छलावे में नहीं आना चाहिए और उसे काफी समझदारी के साथ कदम उठाना चाहिए। पाकिस्तान ने रणनीति बदली है स्वभाव नहीं।
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