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Monday, September 30, 2019

शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती तादाद

शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती तादाद

अंतरिक्ष में विजय पताका फहराने  से लेकर हाउडी मोदी के जश्न तक हम भारतीय अपने कारनामों का बखान करने में मगन थे उसी बीच दो जरूरी रपट सामने आयी लेकिन उन्हें देखा नहीं गया या देखा भी गया तो उस पर  ध्यान नहीं दिया गया। वह रपट थी शिक्षा पर केंद्रित   आठवां वार्षिक सर्वेक्षण 2018- 19। यह रपट मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जारी किया।  इसी के आसपास एक और रिपोर्ट "सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी- ए स्टैटिसटिकल प्रोफाइल ,मई अगस्त 2019।" यह रपट हर साल तीन बार प्रकाशित होती है। अगर इन दोनों रपटों को एक साथ रख कर देखें तो हमारे देश की एक अलग तस्वीर उभरती है। उस तस्वीर में हमारे शिक्षित बेरोजगार नौजवानों का बड़ा विकराल रूप दिखता है। बेरोजगारी का यह रूप आर्थिक मंदी का एक संकेत है और आने वाले दिनों में सरकार के लिए एक विशेष चुनौती बन सकता है। यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन हकीकत है कि उच्च शिक्षा के जो आंकड़े उपलब्ध है वह अपनी गुणवत्ता में स्कूली शिक्षा के मौजूदा आंकड़ों से भी कमतर हैं । इस बात को भांपकर केंद्र सरकार ने 2011- 12 में "ए आई एस एच डी" स्थापना की थी। आज हमारे पास आंकड़े हैं जिनसे पता चल सकता है कि इस देश में उच्च शिक्षा के कितने और किस प्रकार के संस्थान हैं। प्रत्येक संस्थान में कितने लोगों का नामांकन होता है और उसमें से उत्तीर्ण होने वाले छात्र की संख्या कितनी है। यही नहीं यह आंकड़े बताते हैं कि इन संस्थानों में अध्यापकों और शिक्षण कार्य से जुड़े लोगों की संख्या कितनी है। लेकिन यह भी पढ़ने- पढ़ाने और शोध की गुणवत्ता के बारे में कोई जानकारी नहीं देते। "प्रथम" नाम की गैर सरकारी संस्था "असर" की रिपोर्ट या फिर एनसीईआरटी से प्रकाशित होने वाला ऑल इंडिया स्कूल सर्वे हमारे पास आधार है। यह जानने का कि हमारे पढ़े-लिखे किशोर या नौजवान कितने कुशल हैं हाल में प्रकाशित ए आई एस एच डी 2018 19 की रिपोर्ट में आंकड़ों के पर्दे में हकीकत को पोशीदा करने का एक बड़ा दिलचस्प नमूना सामने आया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि  देश में विश्वविद्यालयों की संख्या 993 तक हो गई है, जबकि 2011- 12 में यह संख्या 642 थी। यानी 8 वर्षों में देश में विश्वविद्यालयों की संख्या में 50% का इजाफा हुआ है। लेकिन अगर गंभीरता से इसे देखें तो पता चलेगा यह 50% निजी विश्वविद्यालय हैं। आलोच्य अवधि के भीतर जो 351 विश्वविद्यालय बने हैं उनमें से 119 को राज्य सरकारों की मान्यता प्राप्त है और यह निजी विश्वविद्यालय हैं। इन निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षा की क्वालिटी क्या है इसके बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं है। वैसे यह तो साफ पता चलता है कि यह निजी विश्वविद्यालय शिक्षा की दुकानदारी है और शिक्षा इससे  कलंकित होती है। इसलिए इन विश्वविद्यालयों की वृद्धि कोई अच्छी बात नहीं है।
        जहां तक उच्च शिक्षा के संस्थानों में छात्रों के दाखिले का सवाल है आलोच्य अवधि में  कुल तीन करोड़ 74 लाख नौजवानों में इन संस्थानों में दाखिला लिया। और ऐसी पढ़ाई की जिस पढ़ाई की कोई उपयोगिता नहीं है। तीन करोड़ 74 लाख का यह आंकड़ा सुनने में तो बड़ा इंप्रेसिव लगता है लेकिन यह जानकर मन में उदासी भर जाती है कि हमारे देश में 18 साल से 23 साल की उम्र के नौजवानों की संख्या जितनी है उसका महज एक चौथाई हिस्सा ही उच्च शिक्षा के संस्थानों में दाखिला पा सका है। इसका मतलब है कि जिन तीन चौथाई भाग को संस्थानों में होना चाहिए वे वहां नहीं है और यूं ही बेकार बैठे हैं। यह बेकार की जमात जिंदा बम की तरह खतरनाक है। उच्च शिक्षा के हमारे संस्थान हर साल लगभग एक करोड़ छात्रों को डिग्रियां बांटते हैं। जिनमें 59 लाख स्नातक की डिग्री पाने वाले हैं और स्नातक स्तर पर डिग्री पाने वाले इन छात्रों में हुनर या रोजगार पा सकने लायक कौशल बहुत ही कम है। इसे देखते हुए यह साफ जाहिर होता है थे हमारे शिक्षा संस्थानों के सामने दोहरी चुनौती है- एक तो छात्रों की लगातार बढ़ती संख्या एक दूसरे शिक्षा की क्वालिटी।
      अब इन आंकड़ों के बरक्स अगर हम बेरोजगारी पर केंद्रित सीएमआईई की ताजा रिपोर्ट देखते हैं तो संकेत मिलता है कि बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती हुई मई 7.03 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त में 8.19 प्रतिशत जा पहुंची। बेरोजगारी का आकलन  जिस पद्धति से किया गया है वह नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों के तौर-तरीकों से थोड़ा अलग है, और इन आंकड़ों को अगर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारत में बेरोजगारों की संख्या सबसे ज्यादा है। जैसे- जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है बेरोजगारी बढ़ती जा रही है अशिक्षित लोगों में बेरोजगारी बहुत कम है। बेरोजगारी की यह बढ़ती संख्या देश में खौलते ज्वालामुखी की तरह है।यह ज्वालामुखी किसी भी दिन फट सकती  है। बेरोजगारी के बढ़ते हुए मंजर पर जरा आर्थिक मंदी का रंग देखिए तो साफ दिखेगा कि देश एक बहुत बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है । ऐसी स्थिति में कई देशों में दंगे हुए, तनाव हुआ है। बेरोजगारी के मोर्चे पर खराब हो सकती है। देश की स्थिति से बेखबर  हाउडी बोलने में जुटे हमारे नौजवान और हमारी सरकार इसे दूर करने के लिए कोई उपक्रम नहीं कर रही है और अगर कर भी रही है तो यह जनता को दिख नहीं रहा है।

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