CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, September 20, 2019

अब फिर राम जन्मभूमि !

अब फिर राम जन्मभूमि !

अब एक बार फिर अयोध्या विवाद पर बात चली है कई दिनों से इस पर मध्यस्थता की चर्चा चल रही थी। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अस्वाभाविक तत्परता दिखाते हुए इस मामले को एक महीने के भीतर खत्म कर देने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के जल्दी हल हो जाने की उम्मीद बढ़ गई है। 130 साल पुराने इस मामले में लगता है अब कुछ न कुछ फैसला होकर रहेगा। न्यायालय ने इस पर बुधवार को भी वही करने का प्रस्ताव रखा है।  साथ ही यह भी कहा है कि संबंधित पक्षकार यदि चाहें तो मध्यस्थता के माध्यम से इस विवाद का सर्वमान्य समाधान निकाल सकते हैं। इसके लिए वे स्वतंत्र हैं। अगर यह मामला सुनवाई के स्तर पर 18 अक्टूबर पर खत्म हो गया तो न्यायाधीशों को फैसला लिखने में  लगभग 1 महीना लगता है। और प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर कर रहे हैं यानी 18 अक्टूबर तक  सुनवाई पूरी हो जाती है तो उम्मीद है कि 17 नवंबर से पहले इस पर फैसला आ सकता है।
         कानून भी अपने आप में एक अजीब बात है। अचानक यह ऐसा रूप बदल देता है जिससे शक्तिशाली लोग  पसंद नहीं करते। क्योंकि इसके नतीजे वैसे नहीं होते जैसा वे चाहते हैं या कभी सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ न्यायाधीश समझ नहीं पाते इसका परिणाम क्या होगा? या, उसे नियंत्रित नहीं कर पाते। लेकिन फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों ने एक साथ मिलकर कुछ ऐसा किया है की उनकी राह में कोई अवरोध ना सके और यह विवादास्पद मामला जल्दी हल हो जाए। लेकिन अब तक जैसा देखा गया है कि यह फैसला या फिर मध्यस्था की अंतिम बातचीत भी इस मामले को नहीं सुलझा सकती। इस फैसले में जो सबसे प्रमुख तथ्य है वह है कि न्यायाधीशों को ऐसी कोई जगह नहीं छोड़नी चाहिए जहां खड़े होकर राजनीतिक दल राजनीति का खेल खेल सकें। यह विवाद बहुत दिनों से चल रहा है लेकिन इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है कि इसमें न जाने कितने लोगों की जानें गईं हैं और न जाने कितने लोगों का राजनीतिक भविष्य चौपट हो गया है। कोर्ट को यह  ध्यान रखना चाहिए फिर ऐसा ना हो।
            सोमवार को अयोध्या मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हिंदू और मुसलमान दोनों इस मसले पर बातचीत करना चाहते हैं ताकि इसका सर्वमान्य हल खोजा जा सके। लेकिन सुप्रीम कोर्ट यह जानता है कि इस मामले में जो विवाद है और उसके साथ जो लोग हैं वह पहले भी ऐसे ही मध्यस्था के लिए बैठे थे लेकिन कुछ परिणाम  हासिल नहीं हो सका। अब फिर सुप्रीम कोर्ट को इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। बहुतों का मानना है कि यह 2. 77 एकड़ जमीन पर विवाद का सिविल मामला है। लेकिन इसका जो मुख्य मुद्दा है वह धर्म है और यही धर्म दोनों तरफ के लोगों पर दबाव डालता रहता है। अब तो इसमें धर्म के साथ-साथ राजनीति भी घुल मिल गई है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में मध्यस्थता के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए। मध्यस्थता समिति ने आवेदन किया है कि इस मामले की सुनवाई चूंकि संविधान पीठ कर रही है इसलिए समानांतर में  मध्यस्थता भी चल सकती है। लेकिन यदि ऐसा होता है तो यह सही नहीं होगा। वास्तविकता से अलग ऐसा भी लगता है कि मध्यस्था से कोई बात नहीं बनेगी। उल्टे सुप्रीम कोर्ट की आलोचना शुरू हो जाएगी। फिर कोई नई बात पैदा होगी तथा मामला लंबा खिंच जाएगा।
             अनाधिकृत रूप से या कहिए गैर सरकारी तौर पर इस मामले को बातचीत के जरिए सुलझाने और सर्वमान्य हल खोजने के के कई बार प्रयास हुए। पहली बार 2017 में भारत के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने इस मामले को धर्म का मामला बताकर दोनों पक्षों के बातचीत करने का विचार प्रस्तुत किया था। लेकिन दोनों पक्षों में इसके प्रति कोई दिलचस्पी नहीं थी और इसलिए मामला शुरू ही नहीं हुआ। इस वर्ष मार्च में कोर्ट ने फिर मध्यस्थता का प्रस्ताव रखा था और 8 हफ्ते का समय दिया था। लेकिन ,कुछ नहीं हो सका तथा प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने स्पष्ट संकेत दिए कि मध्यस्थता के प्रयास निष्फल हो गए।
            अब सवाल उठता है कि क्या मध्यस्थता कामयाब होगी? शायद नहीं। दोनों पक्षों के बीच मोर्चे खुल गए हैं और कोई भी पीछे लौटने को तैयार नहीं है। यदि इस मामले मदरसा से कोई हग निकल दी जाए दो इससे से जुड़े हिंदू पक्ष कुछ ले देकर फैसले को मानने को तैयार भी हो जाते हैं तो क्या भाजपा या संघ इसके लिए तैयार होगी? क्योंकि उन्होने इसी भावुकता पूर्ण मसले पर अपनी राजनीति की बुनियाद रखी है। उसी तरह ऐसा नहीं लगता कि मुसलमान भी मध्यस्थता के फैसले को  मानेंगे और परिणाम स्वरूप दोनों तरफ से दावे और प्रति दावे प्रस्तुत हो जाएंगे। पी वी नरसिंह राव तथा अटल बिहारी वाजपेई जैसे नेताओं ने मध्यस्थता की कोशिश की। लेकिन बुरी तरह पराजित हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस रास्ते को अपनाया लेकिन कोई नतीजा नहीं मिला। इसे सुलझाने का एकमात्र तरीका कानून है।  सुप्रीम कोर्ट को इस रास्ते को छोड़कर दूसरी राह नहीं अपनानी चाहिए। इस मामले में फैसला क्या होगा यह तो अभी से कहना मुश्किल है।  यह है फैसला चाहे जो जिसके भी पक्ष में हो इस पर एक बार फिर राजनीति शुरू होगी और जो शुरू होगा वह किस करवट बैठेगा यह भी जानना बड़ा कठिन है।
           

0 comments: