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Friday, September 20, 2019

यह क्या हो रहा है सरस्वती के मंदिर में

यह क्या हो रहा है सरस्वती के मंदिर में?

जादवपुर विश्वविद्यालय में गुरुवार को केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के साथ कुछ छात्रों की हाथापाई हो गई। बाबुल सुप्रियो वहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की विचार गोष्ठी को संबोधित करने के लिए गए हुए थे। हमलावर छात्रों ने आरोप लगाया ,बाबुल सुप्रियो ने कुछ छात्रों को अपमानित किया है, महिला सहपाठियों अपशब्द कहे हैं और उन्हें धमकी दी हैं। बाबुल सुप्रियो के साथ हुई घटना के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बात की और तब मुख्य सचिव मलय कुमार डे से,  और उसके बाद विश्वविद्यालय रवाना हो गए। तृणमूल कांग्रेस ने हालांकि राज्यपाल की इस बात की आलोचना की है। यह बड़ा दुर्भाग्य जनक है कि भाजपा नेता को बचाने के लिए उन्हें जाना पड़ा। इस मामले को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रहे हैं । गवर्नर ने  कहा बाबुल सुप्रियो  गुरुवार को लगभग 2.30 बजे  जादवपुर विश्वविद्यालय में गए। वहां उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा आयोजित एक विचार गोष्ठी को संबोधित करना था। लेकिन, वहां  विरोधियों ने उनका घेराव कर लिया। घेराव करने वाले  वामपंथी छात्र संगठन के छात्र थे। वे काले झंडे लिए हुए थे और "वापस जाओ - वापस जाओ " के नारे लगा रहे थे। सुप्रियो ने लौटने से इंकार कर दिया और छात्रों से बहस करने लगे। विश्वविद्यालय के कुलपति सुरंजन दास ने बीच-बचाव की कोशिश की और सुप्रिया से कहा वह विचार गोष्ठी के प्रेक्षागृह में चले जाएं।  लेकिन, ऐसा नहीं होने दिया गया। सुप्रियो को घंटे भर तक रोका गया। जब सुप्रियो प्रेक्षागृह में प्रवेश कर गये तब भी बाहर विरोधी नारे लगते रहे। इसके बाद छात्रों में 5 घंटे तक घेराव किया और उन्हें विश्वविद्यालय परिसर से बाहर जाने से रोके रखा। इसपर कुछ छात्रों का कहना है कि सुप्रियो ने  हाथ से बहुत ही खराब इशारे किए। अब हम उन्हें तब तक नहीं जाने देंगे जब तक वो माफ़ी ना मांगे। कुलपति सुरंजंदास ने सुप्रियो से कहा वे प्रेक्षा गृह में जाएं इस पर भाजपा नेता ने कहा कि "अगवानी के समय वह वहां क्यों नहीं थे? एक राजनीतिज्ञ होने के अलावा उनकी एक अलग पहचान भी है। वह एक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, एक मंत्री हैं।  कुलपति उनकी अगवानी के लिए क्यों नहीं उपस्थित थे।" सुरंजन दास ने कहा उनको आमंत्रित नहीं किया गया था। इस पर मंत्री ने कहा "मैं तो आपके यहां आमंत्रित था। आपको  आना चाहिए था। मुझे पूरा भरोसा है कि आप वामपंथी हैं।  एक केंद्रीय मंत्री आपके परिसर में आ रहा है और आप चाहते हैं यह सब हो।" सुप्रियो ने कुलपति से कहा कि वह पुलिस बुला लें। किंतु कुलपति ने ऐसा नहीं किया। धक्का मुक्की के बाद बाबुल सुप्रीयो कथित रूप से बीमार पड़ गए। उन्हें समीप के अस्पताल में दाखिल कराया गया। सुप्रियो का आरोप है कि "उन पर हमले हुए ,उनका केश  पकड़कर खींचा गया, लात - घूसों से मारा गया। यह जादवपुर विश्वविद्यालय छात्रों से उम्मीद नहीं की जाती थी। अगर उन्हें मेरे आने से कोई समस्या से तो हमसे बात कर सकते थे।" उन्होंने कहा कि "पश्चिम बंगाल में शिक्षा की यही हालत है। उन्होंने मुझे मारा मैं क्यों माफी मांगू। कुछ गुंडे गड़बड़ी पैदा कर रहे हैं उन्हें निकाला जाना चाहिए।"
          अब यहां एक बात आती है कि राज्यपाल को  हस्तक्षेप की क्या जरूरत थी? क्योंकि घेराव दोपहर में भी चलता रहा और राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पहले फोन किया और उसके बाद मुख्य सचिव इसके बाद वे लगभग 7.00 बजे विश्वविद्यालय परिसर पहुंचे। उन्होंने अपनी गाड़ी में सुप्रियो को बिठाया। लेकिन , छात्रों ने उनका रास्ता रोक दिया। यही घंटे भर तक चलता रहा और राज्यपाल धनखड़ तथा सुप्रियो गाड़ी के भीतर बैठे रहे । लगभग 8.00 बजे जब एक पुलिस टुकड़ी आई और दोनों को दूसरे गेट से बाहर निकाला गया।
राजभवन से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में राज्यपाल ने इसे बहुत गंभीर घटना बताया है।  कहा है कि " एक मंत्री को रोके रखा गया यह राज्य में कानून और व्यवस्था तथा  कानून लागू करने वाली  एजेंसी  के आचरण की स्थिति का प्रतिबिंब है।" इस घटना को लेकर भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने अलग-अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाजपा के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष ने इसकी तीव्र निंदा की है और कहा है कि बंगाल में  केंद्रीय मंत्री भी सुरक्षित नहीं हैं वरना राज्यपाल को हस्तक्षेप नहीं करना पड़ता। दूसरी तरफ तृणमूल के वरिष्ठ नेता तापस राय ने कहा कि हम ऐसी लोकतांत्रिक पद्धति का समर्थन नहीं करते। तृणमूल  नेता पार्थ चटर्जी ने  यद्यपि राज्यपाल की भी आलोचना की और कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और दहला देने वाली घटना है। हमारे संविधान के पालक को भाजपा नेता बाबुल सुप्रियो को बचाने के लिए जाना पड़ा।
       जो कुछ भी हुआ और उसका चाहे जो भी कारण हो लेकिन हिंसा की राजनीति कम से कम लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है  और वह भी शिक्षा के केंद्र में । राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बिल्कुल आम बात है लेकिन एक मंत्री के साथ वह भी शिक्षा संस्थान में मारपीट किया जाना सर्वथा अनुचित है। क्योंकि इससे लोकतंत्र की गरिमा और शिक्षा शालीनता दोनों नष्ट होती है। शिक्षा और लोकतंत्र दोनों हमें शालीन, गरिमा पूर्ण और धैर्यवान बनने की सीख देते हैं। हमारे समाज में  शिक्षा  संस्थान  सरस्वती का मंदिर माना जाता है। हमारे यहां एक बहुत पुरानी कहावत है "विद्या ददाति विनयम।" किंतु  यहां न शालीनता दिख रही है न विनय ना ही धैर्य। यह कैसी शिक्षा पा रहे हैं हमारे छात्र। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी पर शारीरिक हमला कर गुस्से का इजहार अत्यंत गलत और निंदनीय है।

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