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Wednesday, December 22, 2010

आम ही नहीं सरकारें भी रोई हैं प्याज के कारण


पेट्रोल की कीमत बढ़े अभी कुछ ही दिन बीते हैं कि सरकार डीजल के भी दाम में दो रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस के दाम में बढ़ोतरी का फैसला लेने जा रही है। सरकार इस मसले पर एक हफ्ते के अंदर निर्णय ले लेगी। रही सही कसर प्याज के बढ़ते दामों ने पूरी कर दी है। हालांकि, सरकार की दखल के बाद प्याज के दामों में करीब 30 फीसदी की कमी आई है, लेकिन अब भी यह आम आदमी की पहुंच से दूर है।
महंगाई दर के नवंबर में आए आंकड़े केंद्र की यूपीए सरकार भले ही महंगाई कम होने का दावा कर रही हो, लेकिन दिसंबर महीने में आम आदमी जरूरी चीजों के आसमान छूते दाम से परेशान है और इस संकट का असर सीधे उसके चूल्हे पर पड़ रहा है। महंगाई सिर्फ आम जनता को हमेशा भारी नहीं पड़ती है।

प्याज के दामों ने सिर्फ आम आदमी के आंसू नहीं निकालें हैं, बल्कि इसने सरकारों को भी रोने पर मजबूर कर दिया है। 1980 की चरण सिंह की सरकार प्याज के आसमान छूते दामों की वजह से गयी थी। जबकि 1998 में दिल्ली में बीजेपी के हारने की वजह भी प्याज के दाम बने थे। इन दोनों मौकों पर कांग्रेस को फायदा हुआ था। सन् 1980 में चरण सिंह की कामचलाऊ सरकार के खिलाफ इंदिरा गांधी ने कांग्रेस की ओर से प्याज के आसमान छूते दाम को मुद्दा बनाया था, जबकि 1998 में शीला दीक्षित ने बीजेपी के खिलाफ इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था।
पिछला अनुभव तो यही बताता है कि कृषि मंत्री शरद पवार..सक्रिय.. हों, तो कीमतों पर अंकुश की जगह उछाल आता है। इस बार उन्होंने प्याज पर बयान दिया है, जो कई बार राजनीतिक दलों और सरकारों को रुला चुका है। पर सरकारें तो बाद में (वोट के समय) रोती हैं, जनता पहले रोती है। प्याज के मामले में जनता के आंसू तो पिछले दो महीने से निकल रहे थे, लेकिन आंध्र समेत दक्षिण भारत में बरसात हुई नहीं कि जमाखोरों ने प्याज रोक लिया। आज लगी फसल तो बाजार में आती नहीं, पर आज की फसल खराब हो, तो कल कीमतें बढ़ेंगी ही-खासकर तब, जब धरपकड़ और कीमतों की रखवाली का मुख्य जिम्मा पवार साहब जैसे लोगों के पास है।

शरद पवार ने हाल में यह भी बयान दिया है कि सीबीआई के छापों से कॉरपोरेट क्षेत्र में घबड़ाहट है, अब कंपनियां या कोई व्यक्ति गड़बड़ करे या उसके गड़बड़ का अंदेशा हो, तो मंत्री जी को तो छापों की अगुवाई करनी चाहिए। खैर, न तो मामला अकेले पवार का है और न प्याज का है। जैसे ही थोक मूल्य सूचकांक दहाई से नीचे उतरा है, महंगाई का एक और चक्र चलाने का इंतजाम हो गया लगता है। प्याज तो खैर इंद्र देवता और जमाखोरों-मुनाफाखोरों की..कृपा.. से महंगा हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से चीनी की कीमतें भी तेज होंगी। ऐसे में प्रधानमंत्री अगर मार्च तक महंगाई की दर 5.5 फीसदी होने की भविष्यवाणी करते भी हैं, तो उन पर किसी को भरोसा नहीं होगा। इधर मुद्रास्फीति की दर में गिरावट देखकर रिजर्व बैंक ने बैंकों की नकदी तरलता अनुपात में एक फीसदी कमी करके बाजार में लगभग 45 हजार करोड़ रुपये उतारने का रास्ता साफ कर दिया है। ऐसे में पैसे भी हैं, सामान की कमी भी है और सबसे ऊपर लापरवाही वाली या लूट से आंख मूंदने वाली सरकार भी है। यूपीए-2 की अब तक की अवधि भ्रष्टाचार और महंगाई, दो ही चीजों के हंगामे में बीती है। असल में दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अकेले वायदा कारोबार में दाल, आलू, प्याज और चीनी के धंधे में जितनी लूट पिछले डेढ़-दो वर्षों में हुई है, उसमें 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाला भी छोटा पड़ सकता है। इसलिए आज अगर पेट्रोल, डीजल, गैस और प्याज की कीमतों से हमें परेशानी हो रही है, तो इसे कोई तात्कालिक दोष या मौसमी गड़बड़ भर नहीं मानना चाहिए। और अगर सरकार गंभीर है, तो सिर्फ प्याज निर्यात पर रोक भर से काम नहीं चलेगा, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, वायदा कारोबार की सट्टेबाजी, सब पर अंकुश लगाना होगा।

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