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Saturday, December 11, 2010

इंडियन मुजाहिदीन : जीवित पर निर्बल


वाराणसी में शीतला मन्दिर के पास दशाश्वमेध घाट से सटे मंगलवार की शाम गंगा आरती के दौरान विस्फोट के विश्लेषण से निष्कर्ष मिलता है कि यदि यह इंडियन मुजाहिदीन का काम है तो वह बेशक सक्रिय है पर बलहीन हो चुका है, उसमें ताकत की कमी है। घटना के बारे में मिली जानकारी के अनुसार यह विस्फोट आई ई डी से हुआ था और विस्फोटक दूध के एक कंटेनर में रखा हुआ था। बम की ताकत भी कम थी। इससे लगता है कि विस्फोट कराने वालों की मंशा फकत अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की थी उनका मकसद बहुत लोगों को मारने का नहीं था वरना वे उसी विस्फोटक के साथ कील, कांच के टुकड़े, लोहे के छर्रे इत्यादि बांध सकते थे जिनकी मार गहरे तक होती है और जान जाने का खतरा होता लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कूड़ेदान में मिले दो बम भी काफी कमजोर थे। जहां बम लगाये गये थे वहां शाम को आरती के समय बड़ी संख्या में देशी- विदेशी श्रद्धालु एकत्र होते हैं और मंगलवार को चूंकि हनुमान जी का दिन माना जाता है अत: उस दिन ज्यादा ही भीड़ थी।

याद होगा कि अबसे चार साल पहले 7 मार्च 2006 को वाराणसी में विस्फोट हुआ था उस दिन भी मंगलवार ही था और स्थान और समय भी लगभग वही था। इस वारदात में शामिल संगठन ने बाबरी मस्जिद को गिराने से उपजे गुस्से को इसका कारण बताया था। जांच के बाद पता चला कि इसे हूजी (बंगलादेश) के गुर्गों की मदद से भारतीय कट्टरपंथियों ने अंजाम दिया था। इसमें शामिल बंगलादेशी तो हाथ नहीं आये पर लगभग सभी भारतीय कट्टरपंथियों को पकड़ लिया गया था। उनसे पूछताछ से पता चला कि उन्हें हूजी ने पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी थी। 7 दिसम्बर 2010 की घटना बाबरी मस्जिद को गिराये जाने की तारीख के एक दिन बाद हुई। कथित रूप से इस घटना के पहले भेजे गये ई मेल में 6 दिसम्बर की ही तारीख थी पर उसे भेजा 7 दिसम्बर को गया था।
इंडियन मुजाहिदीन ने इस घटना की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है और इसका कारण बाबरी मस्जिद के मालिकाने को लेकर अदालती फैसले से उत्पन्न असंतोष को बताया जाता है। ई मेल में कहा गया है कि इससे मुस्लिम क्षुब्ध हैं और फैसला हिंदू आस्था पर आधारित था न कि सबूतों पर। उन्होंने यह यकीन जाहिर किया है कि सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को अमान्य कर देगा। फैसले के दिन ही पुलिस को हिंसा की आशंका थी लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ। सन् 2007 और सन् 2008 में आतंकवादी विस्फोट की कई घटनाएं हुईं और उसमें कई लोग मारे गये। इसके बाद विभिन्न आतंकी संगठनों के लोग बड़ी संख्या में गिरफ्तार किये गये जिससे इनका बल कम हो गया और वे बिखर गये। विशेषकर इंडियन मुजाहिदीन की कमर ही टूट गयी। सितम्बर 2008 से फरवरी 2010 तक तो वह अपने को पुनर्गठित करता रहा। इस साल इंडियन मुजाहिदीन का यह तीसरा हमला था। पहला हमला फरवरी 2010 में जर्मन बेकरी पर हुआ जिसमें 17 लोग मारे गये और दूसरा हमला दिल्ली में हुआ, जिसमें 3 ताइवानी नागरिक घायल हो गये थे। उसमें हमलावरों ने चलती मोटरसाइकिल से गोलियां चलायी थीं। 7 दिसम्बर की घटना में उन्होंने फिर वही पुराना तरीका अपना लिया। घटना के विश्लेषण से साफ लगता हे कि इसमें पाकिस्तानी या बंगलादेशी तत्वों की भूमिका नहीं है और जिस संगठन ने इसे अंजाम दिया वे काफी बलहीन हैं।

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