गुरुवार की सुबह सन्मार्ग कार्यालय में एक वयोवृद्ध आचार्य का फोन आया। वे बुधवार को दिल्ली में एन डी ए की महारैली पर अपने विचार जाहिर कर रहे थे। उस रैली में आडवाणी जी (जी हां, वही लालकृष्ण आडवाणी) ने पी एम से कहा कि जे पी सी का गठन करें वर्ना इस्तीफा दे दें। लेकिन आचार्य प्रवर ने आडवाणी जी की चर्चा नहीं की। वे खास तौर पर सुषमा स्वराज जी के भाषण की बात कर रहे थे और बड़े निराश लग रहे थे।
बेशक बड़ा जिगर का काम है पॉलिटिशियंस को सुनना। सुषमा जी ने उस रैली में जो भी कहा, उसे पूरे देश ने सुना। वे भ्रष्टाचार पर बोल रही थीं और बड़े प्रभावी ढंग से उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के चारों स्तम्भ - सरकार, संसद, प्रेस और जज - कॉरपोरेट वर्ल्र्ड के सामने बिक गये। वे दरअसल नीरा राडिया टेप कांड का जिक्र कर रही थीं।
सुनने वालों का कलेजा मुंह को आ गया कि वे अब वह कुछ और बोलेंगी, क्योंकि जो बिके, उनका नाम तो सभी ले रहे हैं, कुछ के इस्तीफे भी ले लिए गये हैं, कुछ शर्मसार हो छुपते-छिपते फिर रहे हैं, लेकिन जिन्होंने खरीदा, उनके बारे में सब चुप हैं। लोकतंत्र के चारों खंभों में पैसों की दीमक लगाने वाले इन उद्योगपतियों के बारे में शायद सुषमा जी कुछ कहेंगी, उनको भरी सभा में नंगा करेंगी। लेकिन सबको निराश होना पड़ा।
सुषमा जी ने अपने भाषण में किसी धन्नासेठ का नाम नहीं लिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ..तलवार.. लेकर संग्राम में निकले इन शूरवीरों में से किसी ने इतनी हिम्मत नहीं दिखायी कि वे लोकतंत्र के चारों खंभों को खरीदने की जुर्रत करने वाले किसी भी इंडस्ट्रियलिस्ट का नाम लें।
2 जी स्पेक्ट्रम मामले में पूर्व मंत्री ए राजा फंसे हुए हैं। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने देश को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये का नुकसान कराया। भाजपा के राष्ट्रीय प्रमुख नितिन गडकरी अक्सर इस रकम का बड़े जोश और गुस्से से जिक्र करते हैं। लेकिन अगर देश को 1 लाख 76 हजार करोड़ का नुकसान हुआ तो किसी को 1 लाख 76 हजार करोड़ का फायदा भी हुआ होगा। कौन हैं वे लोग ? यही टेलीकॉम कंपनियों के मालिक। तो इनका नाम लेने में क्यों शर्म आ रही है आपको?
सुषमा जी से दो सवाल हैं, पहला कि जगमोहन जब संचार मंत्री थे तो उन्हें क्यों हटाया गया ? कृपा करके बतायेंगी कि उन्हें हटवाने वाले कौन थे? दूसरा सवाल है कि नीरा राडिया टेप कांड में एक रंजन भट्टाचार्य की भी आवाज है, बता सकेंगी कि वे कौन हैं? सुषमा जी नाम नहीं ले सकेंगी, क्योंकि जिन थैलीशाहों के नाम उछलेंगे वही तो सब राजनीतिज्ञों के अन्नदाता हैं। अपनी थाली में कोई छेद करता है क्या? अगर राम जी की दया से या महंगाई डायन की मदद से सत्ता में आ भी गये तो बाद में खिलायेगा कौन? आचार्य श्री ने बड़ी निराशा से फोन पर कहा था..सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।..
सचमुच भगवा हो या खादी किसी में कोई फर्क नहीं। दोनों का मकसद पहले जनता के वोट के बल पर सत्ता हथियाना है और फिर उस सत्ता के बल पर इन पूंजीपतियों से पैसा कमाना है।
Thursday, December 23, 2010
सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं
Posted by pandeyhariram at 10:57 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment