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Thursday, March 10, 2011

इस सुलह का राज क्या?




हरिराम पाण्डेय
कांग्रेस और द्रमुक की तकरार खत्म हो गयी और दोनों दलों में सुलह सफाई हो गयी, अब सीटों के बंटवारे पर मंथन चल रहा है। यह सियासत की अजीब बिसात है। यहां कभी प्यादा बादशाह और वजीर को भी मार देता है और कभी घोड़ा सीधे भी चलने लगता है, लेकिन जब देश को लूट कर अपना झोला भरने वाले दो दल गठबंधन में हों और तकरार के बाद उनकी गांठें खुल जाएं और फिर बंध जाएं तो बिना बोले रहा भी नहीं जा सकता है और लोकतंत्र में आम जनता को हक है यह जानने का आखिर ऐसा क्यों हुआ? कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि जब उनकी नेता सोनिया गांधी ने करुणानिधि के प्रतिनिधियों दयानिधि मारन और एम के अजागिरी को कस के झाड़ा तो अकड़ ढीली हो गयी और जिन तीन सीटों पर विवाद था उसे देने के लिये वे फौरन तैयार हो गये। बड़े अंग्रेजी अखबारों ने लिखा कि 'सोनिया गांधी ने पार्टी की प्रतिष्ठïा के मुकाबले सरकार को मूल्य नहीं दिया और इसी कारण वे विजयी हुईं।Ó लेकिन यह बात उतनी सही नहीं है। कांग्रेस कैम्प की गतिविधियों को देख कर लगता है कि बात इतनी सरल नहीं थी। केवल सी टों के विवाद के कारण करुणानिधि ने अपने मंत्रियों को केंद्र सरकार से हट जाने का हुक्म नहीं दिया था। दरअसल बात यह थी कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई करुणानिधि की बेटी किनिमोझी से पूछताछ करने वाली थी और इससे करुणानिधि सख्त नाराज थे। यदि एक बार वह सीबीआई के हत्थे जा चढ़ी तो सब किया धरा मिट्टïी में मिल जायेगा। पहले तो करुणानिधि ने खौफ दिया कि वे हट जायेंगे तो सरकार गिर जायेगी अतएव किनीमोझी को इस झंझट से बरी किया जाय पर एक तरफ सोनिया जी का अडिय़ल रवैया और दूसरी तरफ राजनीतिक समीकरण के असंतुलन ने करुणानिधि को मजबूर कर दिया। अब समझौते के अलावा उनके पास चारा नहीं था। हालांकि जब बात बिगड़ रही थी तो कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी को उनसे मिलने तथा समझाने के लिये भेजा। वैसे कहते हैं कि करुणानिधि ने ही प्रणव मुखर्जी से बात करने की इच्छा जाहिर की थी। जब प्रणव उनसे मिले तो वे भड़क उठे थे। किंतु प्रणव के पास उनके लिये दिल्ली दरबार का संदेश था और वह था कि 'किनीमोझी को बचा लिया जायेगा।Ó जानकारों का कहना है कि करुणानिधि पहले तो प्रणव पर बिफर पड़े थे पर जब उन्होंने आश्वासन के बारे में जाना तो नरम पड़ गये। हालांकि प्रणव ने समझाया कि 2 जी घोटाले का मामला खुद सुप्रीम कोर्ट मॉनिटर कर रहा है और इसमें बहुत कुछ किया भी नहीं जा सकता है। कहते हैं कि इसी बात पर करुणानिधि आपे से बाहर हो गये। उन्होंने शालीनता छोड़ते हुये प्रणव मुखर्जी से कहा कि 'मुझे सियासत सिखाते हैं मैं पांच बार मुख्यमंत्री रह चुका हूं। Ó आश्वासन की पुडिय़ा छोड़कर प्रणव मुखर्जी वहां से चले आये। इसके बाद नयी दिल्ली में सोनिया जी से करुणानिधि के दूत की बैठक का कोई मतलब नहीं था, वह बेशक एक औपचारिकता थी। अलबत्ता हो सकता है कि इस बैठक में सोनिया जी ने उससे कुछ शिकायतें जरूर की होंगी। पर ऐसा कुछ खास नहीं था। हां, सोनिया जी प्रणव को भेजना नहीं चाहती थीं क्योंकि प्रणव मुखर्जी का अतीत देखते हुये गांधी परिवार उन पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करता है और यह तो एक तरह से उन पर निर्भरता थी लेकिन करुणानिधि के दबाव के कारण उन्हें भेजना पड़ा। मामला सुलझ गया। इस इनकार - इकरार में कांग्रेस के विश्लेषकों ने बड़े- बड़े मसायलों को लोगों के सामने पेश किया पर जो सबसे महत्वपूर्ण था वह नहीं बताया गया। इस पूरे प्रकरण में खास था कि 'लूट के माल पर लड़ रहे थे लुटेरे।Ó

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