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Thursday, March 3, 2011

भारतीयों को भ्रष्टï बनाया गया है

हरिराम पाण्डेय
2-जी घोटाले में ही केवल भ्रष्टïाचार नहीं है। यह बात दूसरी है कि इसे सियासी लाभ के लिये इतना तूल दिया गया कि पूरा मुल्क हिल गया। भ्रष्टïाचार की सड़ांध क्या क्रिकेट से नहीं आती? 11 नालायक छोकरे इसे खेलते हैं और पांच में से तीन मैच हार जाते हैं लेकिन शोहरत और दौलत बटोर लेते हैं। हाल में आई पी एल की नीलामी हुई दुनिया भर ने उसे टेलीविजन पर देखा। खिलाडिय़ों की बिक्री देख कर लगता था कि वे असबाब हों या ढोर हों या पुराने जमाने के गुलाम हों जिनकी बोलियां लग रहीं हों। कई तो बिके ही नहीं और कई अनाप- शनाप दामों में बिक गये। क्रिकेट ने देश के अन्य खेलों का सत्यानाश कर दिया। इसने मीडिया और विज्ञापन विश्व को मोह लिया है लिहाजा एक उभरती महाशक्ति भारत अन्य खेलों में बहुत पिछड़ गया। आज दुनिया में फुटबॉल में इसका 145वां , बास्केट बॉल में 232वां स्थान है। और दूर कहां जायेंगे चीन को ही देखें यह फकत 30 वर्षों में दुनिया में खेलों में अग्रणी हो गया। विज्ञापनों की जहां तक बात है दूसरे देशों में खिलाड़ी केवल खेल का विज्ञापन करते हैं, लेकिन यहां तो खिलाड़ी कीटनाशक से दूषित शीतल पेय और सोडा के परदे में शराब तक का विज्ञापन करते हैं। क्या इसे भ्रष्टïाचार नहीं कहेंगे? वही हालात फिल्म उद्योग का है। अभिनेताओं को महान मान लिया गया है जबकि वे कुछ नहीं हैं। अधिकांश अभिनेता और फिल्में विदेशी सिनेमा की नकल होती हैं और ये कहे जाने वाले महान लोग किसी एक्टिंग स्कूल से संस्कारित होकर नहीं आते बल्कि बड़े परिवार और रसूख से प्रवेश करते हैं। यही हाल उद्योगों का भी है। एक मोटर सायकिल बनाने वाली कम्पनी एकदम ताजा तकनीक के नाम पर विज्ञापन करती है जबकि सच यह है कि वह तकनीक पश्चिमी दुनिया में 80 में ही त्याग दी गयी। विज्ञापनों को ध्यान से देखें तो उनमें तकनीक का खुलासा नहीं किया जाता है बल्कि कोई मशहूर अभिनेता सुन्दरियों के साथ फर्जी स्टंट का प्रदर्शन करता है। भारतीयों में गोरे होने की ललक है और इस ललक को क्रीम बनाने वाले भुनाते हैं। चार दिनों में गोरा बना देने का दावा करके लोगों को ठगना नहीं है? क्या यह भ्रष्टïाचार का स्वरूप नहीं है? इसके अलावा भी भ्रष्टïाचार के कई गूढ़ स्वरूप हैं मसलन, बैंकों से धोखाधड़ी , रिश्वतखोरी, टैक्स की चोरी वगैरह। यह कितनी दुखद बात है कि बैंक अपने ग्राहकों की ठगी से बचने के लिये पहले इंतजाम करता है ,व्यापार बाद में। अदालत में जहां घूस लेने के मामले पर सुनवाई चलती है वहीं जज के सामने घूस का लेन- देन होता है। इस सबके बावजूद भारतीयों को इस प्रकार के भ्रष्टïाचार के लिये क्षमा किया जा सकता है। क्योंकि हिंदूकुश से लेकर 26/11 के मध्य लगभग 20 शताब्दियों में भारतीयों के मन में आतंक बैठा दिया गया है। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के अनुसार इस अवधि में लाखों भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस नरमेध में केवल हिंदू नहीं थे बल्कि आज के 95 प्रतिशत भारतीय मुसलमानों के पूर्वज भी थे जिन्हें काट डाला गया या धर्म बदल देने के लिये बाध्य किया गया। सीरियाई ईसाई थे जो भारत की मुख्य धारा से जुड़ गये थे उन्हें पुर्तगालियों ने भारत में आकर जबरन कट्टïर ईसाइअत अपनाने पर बाध्य कर दिया और ईसाई धर्म को दो भागों में विभाजित कर दिया। अरबी सैनिकों ने भारत से बौद्ध धर्म को समूल उखाड़ फेंकने का प्रयास किया और बहुत हद तक कामयाब भी रहे। लिहाजा भारतीयों के साइक में आतंक घर कर गया। उन्हें जाने के लिये झूठ बोलने और गलत तंत्र का इस्तेमाल करने की आदत पड़ गयी। यह आदत आजादी के बाद भी कायम रही। इसे रोकने के लिये क्या किया जा सकता है? इसके लिये अच्छा वेतन और दोषी पाये जाने पर बेहद कठोर सजा। वैसे भारत सरकार को चीन का अनुकरण करने की जरूरत नहीं है जहां भ्रष्टïाचार के दोषी पाये जाने वाले राजनीतिकों को गोली मार दी जाती है। पर इतना तो जरूर है कि राजा जो अरबों रुपये के घोटाले से लांछित है उसे कम से कम दस साल जेल में बामशक्कत सजा तो मिलनी ही चाहिये। इससे लोगों के मन में शासन के प्रति विश्वास पैदा होगा और आम आदमी को भी लगेगा कि हमें ईमानदार होना चाहिये। सच तो यह है कि हम भारतीय महान परम्परा के लोग हैं। उन्हें आतंकित कर भ्रष्टï बनने पर बाध्य किया गया है। यह एक बीमारी है। इससे निजात तब ही मिल सकती है जब हम शासन की बागडोर सही आदमी के हाथों में सौंपें।

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